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बड़ी खबर :सावधान - बलिया के कुहरा में घुला हो सकता है- विषैला तत्व - डा० गणेश पाठक

बड़ी खबर :सावधान - बलिया के कुहरा में घुला हो सकता है- विषैला तत्व - डा० गणेश पाठक
डॉ सुनील कुमार ओझा की रिपोर्ट

बलिया 2 नवम्बर 2019 ।। अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य पर्यावरणविद् डा० गणेश पाठक ने एक भेंटवार्ता में बताया कि नवम्बर प्रारम्भ होते ही घने कुहरे ने बलिया को अपने आगोश में लेना प्रारम्भ कर दिया है और वो भी यह कुहरा जाड़े का सामान्य कुहरा नहीं लगता है, बल्कि इस कुहरे की तीखी गंध एवं इससे आँखों में होने वाली जलन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इस कुहरे में वायु के विषैला धुँआ सहित अन्य खतरनाक विषैली गैसें मिली हो सकती हैं , जिससे यह कुहरा धूम कुहरा के रूप में बदलता जा रहा है।
     डा० पाठक ने बताया कि जब सामान्य कुहरे में धुँआ और वायु में घुली अन्य विषैली गेसें मिल जाती हैं तो उसका प्रभाव मानव स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी खतरनाक हो जाता है और उसकी दृश्यता भी कम हो जाती है, फलतः आगे की वस्तुएँ दिखाई नहीं देती हैं और दुर्घटना की सम्भावनाएं बढ़ जाती हैं। जस कुहरा हल्का होता है और उससे 2 किमी० तक की वस्तुएं दिखाई देती हैं तो ऐसे कुहरे को कुहासा ( मिस्ट) कहा जाता है, जबकि कुहरा को 'फाग' एवं धूम कुहरा को 'स्माग' कहा जाता है।
       कुहरे की उत्पत्ति के संबंध में डा० पाठक ने बताया कि कुहरे की उत्पत्ति धरातल के पास विकिरण, परिचालन एवं गर्म तथा ठंढी वायु राशियों के मिश्रण के कारण होता है।धरातल के पास जब नम वायु का तापमान ओसांक को पहुँच जाता है एवं जब वायु ओर ठंढी हो जाती है तो संघनन के कारण जलवाष्प वायुमंडल में व्याप्त धूलिकण, धुँआ आदि कू चारों तरफ एकत्रित होकर छोटे- छोटे जलसीकरों में बदल जाता तो हल्का होने के कारण वायु में लटके रसते हैं एवं उनका एकत्रित समूह धुएँ के बादल के समान दिखाई पड़ता है। इसे ही 'कुहरा'कहा जाता है।
         डा० पाठक ने बताया कि अभी एक -दो दिनों से बलिया में जो कुहरा दिखाई दे रहा है , वह गर्म एवं ठंढी वायुराशियों के मिश्रण की ही देन है। ऐसा देखने में आया है कि 30 एवं 31 अक्टूबर तक पूर्वी हवा का प्रभाल रहा है , जबकि 31 अक्टूबर की रात से ही पश्चिमी हवा का प्रभाव हो गया। इस तरह दोनों हवाओं के ने कुहरे को जन्म दिया।
      डा० पाठक ने बताया कि पश्चिमी वायु प्रवाहित होने के कारण वायु के साथ इस कुहरे में उत्तरी- पश्चिमी औद्योगिक क्षेत्रों जैसे- दिल्ली, आगरा, मेरठ, गाजियाबाद, कानपुर एवं लखनऊ जैसे महानगरों से निःसृत विषैली गैसें , दीवाली में छोड़े गये पटाखों की विषैली गैसें तथा पंजाब एवं हरियाणा सहित अन्य क्षेत्रों में जलायी जाने वाली पराली से निकली विषैली गैसें एवं धुँआ पश्चिमी वायु के साथ प्रवाहित होटर बलिया में छाए कुहरा एवं  वायु के साथ मिलकर इस क्षेत्र में भी धूँम कुहरा जैसी स्थिति उत्पन्न कर लोगों को डरा दिया है, क्यों इसका प्रभाव स्वास्थ्य सहित कृषि क्षेत्र एवं वाहन दुर्घना के रूप में परिलक्षित हो सकता है।