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अयोध्या: सिर्फ़ विवाद ही नहीं इस दोस्ती के लिए भी रखा जाएगा याद


अयोध्या: सिर्फ़ विवाद ही नहीं इस दोस्ती के लिए भी रखा जाएगा याद

समीरात्मज मिश्र

अयोध्या 11 नवम्बर 2019 ।।
अयोध्या में रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद के क़रीब सत्तर साल पुराने विवाद के चलते भले ही हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच दूरियां बढ़ी हों, यह विवाद कई दंगों की वजह बना हो लेकिन इस मुक़दमे की पैरवी करने वाले अयोध्या के दो लोगों की अटूट दोस्ती की चर्चा न सिर्फ़ अयोध्या में होती है बल्कि इस विवाद से परिचित हर शख़्स करता होगा.
अयोध्या में दिगंबर अखाड़े के महंत रहे रामचंद्र परमहंस और अयोध्या क़स्बे के रहने वाले एक सामान्य दर्जी हाशिम अंसारी एक दूसरे के ख़िलाफ़ इस मुक़दमे की आजीवन पैरवी करते रहे लेकिन दिलचस्प बात ये है कि अदालती कागज़ों के अलावा उनकी ये दुश्मनी ज़मीन पर कभी नहीं दिखी.
अयोध्या के लोग बताते हैं कि दोस्ती की यह मिसाल तब देखने को मिलती थी जब ये दोनों एक ही रिक्शे पर बैठकर अदालत में मुक़दमा लड़ने जाते थे.
सुप्रीम कोर्ट से इस विवाद का अब फ़ैसला आ गया है, विवाद और आंदोलन से जुड़े तमाम लोगों की चर्चाएं हो रही हैं तो इन दोनों शख़्सियतों की दोस्ती की मिसाल को सांप्रदायिक सौहार्द के प्रतीक के रूप में लोग एक बार फिर याद कर रहे हैं.
अयोध्या के स्थानीय पत्रकार महेंद्र त्रिपाठी कहते हैं कि इस सांप्रदायिक सद्भाव को न सिर्फ़ दिगंबर अखाड़े के महंत सुरेश दास और हनुमानगढ़ी के महंत स्वामी ज्ञानदास समेत तमाम साधु संतों और हाशिम अंसारी के बेटे इक़बाल अंसारी ने बनाए रखा है बल्कि इसकी वजह से पूरे अयोध्या में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक सौहार्द क़ायम है.


साल 2016 में हाशिम अंसारी की मृत्यु के बाद उनके बेटे इक़बाल अंसारी बाबरी मस्जिद के मुख्य पक्षकार बने. इक़बाल अंसारी याद करते हैं. "दोनों लोग अपने हक़ की लड़ाई लड़ रहे थे, लेकिन आपस में न तो कोई दुश्मनी थी और न ही मनमुटाव.
"दोनों एक-दूसरे के सुख-दुख में साथ रहते थे, अक्सर एक-दूसरे से मिलते-जुलते रहते थे और यहां तक मुक़दमा लड़ने के लिए भी कोर्ट तक एक ही रिक्शे या फिर तांगे से साथ जाते थे."
इक़बाल अंसारी बताते हैं कि कभी-कभी तो दोनों किसी जगह बैठकर ताश भी खेलते थे और जमकर हँसी-मज़ाक करते थे.
उनके मुताबिक, "होली-दिवाली, नवरात्र, ईद सभी त्योहारों पर एक-दूसरे के यहां जाना होता था. यही वजह है कि हम लोग भी अपने हिन्दू भाइयों के त्योहारों में शामिल होते हैं और वो हमारे त्योहारों में. साल 1992 में बाबरी मस्जिद गिरने के बाद कुछ बाहरी लोगों ने हमारे घर पर भी हमला किया था जिसका महंत जी ने बहुत विरोध किया था."
हाशिम अंसारी वही व्यक्ति थे जो साल 1949 में गर्भगृह में मूर्तियां रखे जाने के मामले को फ़ैज़ाबाद की ज़िला अदालत में ले गए थे जबकि उनके ख़िलाफ़ हिन्दू पक्षकार के तौर पर दिगंबर अखाड़े के महंत रामचंद्र परमहंस अदालत पहुंचे और साल 1950 में उन्होंने वहां पूजा-अर्चना के लिए अर्जी दाख़िल की.



दोस्ती जिसने झगड़ों से बचाया

दोनों ने दशकों तक इस मुक़दमे की पैरवी की लेकिन आपस में किसी तरह का बैर कभी नहीं पाला. यही नहीं, हाशिम अंसारी के रिश्ते अयोध्या के दूसरे हिन्दुओं से भी कभी ख़राब नहीं हुए.
साल 2003 में महंत रामचंद्र परमहंस की 92 वर्ष की उम्र में मृत्यु हो गई.
दिगंबर अखाड़े के महंत सुरेश दास बताते हैं, "महंत जी की मौत की ख़बर से हाशिम अंसारी को बहुत सदमा पहुंचा था. रात भर वो उनके शव के ही पास बैठे रहे और दूसरे दिन उनके अंतिम संस्कार के बाद ही अपने घर गए. वो कई दिनों तक परेशान रहे."
रामघाट के पास रहने वाले दिनेश केसरवानी कहते हैं कि इनकी दोस्ती की वजह से अयोध्या में आज तक कभी हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच कोई झगड़ा नहीं हुआ.
दिनेश के मुताबिक, "अयोध्या के हिन्दू-मुसलमान आज भी सद्भाव से रहते हैं. यहां का माहौल बाहरी लोगों ने कई बार ख़राब करने की कोशिश की लेकिन ऐसी ही दोस्ती के चलते ये माहौल कभी ख़राब नहीं हो पाया ।


(साभार बीबीसी हिंदी सेवा)

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