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अयोध्या मामला: विवादित जमीन रामलला की, जानिए फैसले की बड़ी बातें,जाने क्या कहा मुस्लिम पक्षकार अंसारी ने ?

अयोध्या मामला: विवादित जमीन रामलला की, जानिए फैसले की बड़ी बातें, जाने क्या कहा मुस्लिम पक्षकार अंसारी ने ?
ए कुमार

नईदिल्ली 9 नवम्बर 2019 ।। सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले पर अपना फैसला सुना दिया है. कोर्ट ने विवादित जमीन रामलला को देने के फैसला किया है वहीं मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ की वैकल्पिक जमीन कहीं और दी जाएगी. कोर्ट ने केंद्र सरकार को तीन महीने के अंदर मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया है. कोर्ट में 5 जजों की बेंच मौजूद थी. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने 10.30 बजे फैसला पढ़ना शुरू किया और 30 मिनट तक पढ़ते रहे. आइए जानते हैं फैसले की बड़ी बातें....
सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही शुरू होते ही सबसे पहले केस नंबर 1501, शिया बनाम सुन्नी वक्फ बोर्ड केस में एक मत से फैसला आया. इस मामले में शिया वक्फ बोर्ड का दावा खारिज कर दिया गया. कोर्ट ने 1946 का फैसला बरकरार रखा, सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या भूमि विवाद में निर्मोही अखाड़े के दावे को खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि दावा 6 साल की समय सीमा के बाद दाखिल हुआ. कोर्ट ने कहा है कि निर्मोही अपना दावा साबित नहीं कर पाया है. निर्मोही अखाड़ा सेवादार भी नहीं है. रामलला को कोर्ट ने मुख्य पक्षकार माना है. यानी दो में से एक हिंदू पक्ष का दावा खारिज कर दिया है. रामलला juristic person हैं. राम जन्मस्थान को यह दर्जा नहीं दे सकते. पुरातात्विक सबूतों की अनदेखी नहीं कर सकते. वह हाई कोर्ट के आदेश पर पूरी पारदर्शिता से हुआ. उसे खारिज करने की मांग गलत है, अयोध्या मामले पर जज ने कहा- मस्ज़िद 1528 की बनी बताई जाती है लेकिन कब बनी इससे फर्क नहीं पड़ता, कोर्ट ने कहा है कि ASI यह नहीं बता पाए कि मंदिर तोड़कर विवादित ढांचा बना था या नहीं. 12वीं सदी से 16वीं सदी पर वहां क्या हो रहा था, साबित नहीं, कोर्ट ने कहा है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बहस में अपने दावे को बदला. पहले कुछ कहा, बाद मे नीचे मिली रचना को ईदगाह कहा. साफ है कि बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बना था. नीचे विशाल रचना थी. वह रचना इस्लामिक नहीं थी. वहां मिली कलाकृतियां भी इस्लामिक नहीं थी. ASI ने वहां 12वीं सदी की मंदिर बताई. विवादित ढांचे में पुरानी संरचना की चीज़ें इस्तेमाल हुईं. कसौटी का पत्थर, खंभा आदि देखा गया, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- नमाज पढ़ने की जगह को मस्ज़िद मानने के हक को हम मना नहीं कर सकते. 1991 का प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट धर्मस्थानों को बचाने की बात कहता है. एक्ट भारत की धर्मनिरपेक्षता की मिसाल है, कोर्ट ने कहा- जगह नजूल की ज़मीन है लेकिन राज्य सरकार हाई कोर्ट में कह चुकी है कि वह ज़मीन पर दावा नहीं करना चाहती. कोर्ट हदीस की व्याख्या नहीं कर सकता, जज ने कहा है कि कोर्ट को देखना है कि एक व्यक्ति की आस्था दूसरे का अधिकार न छीने. मस्ज़िद साल 1528 की बनी बताई जाती है, लेकिन कब बनी इससे फर्क नहीं पड़ता. दिसंबर को मूर्ति रखी गयी. जगह नजूल की ज़मीन है. लेकिन राज्य सरकार हाई कोर्ट में कह चुकी है कि वह ज़मीन पर दावा नहीं करना चाहती, सुप्रीम कोर्ट ने कहा खि साफ है कि बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनी थी. नीचे विशाल रचना थी, वह रचना इस्लामिक नहीं थी. वहां मिली कलाकृतियां भी इस्लामिक नहीं थी, कोर्ट ने कहा है कि सिर्फ विवादित ढांचे के नीचे एक पुरानी रचना से हिंदू दावा माना नहीं जा सकता. मुसलमान दावा करते हैं कि मस्ज़िद बनने से साल 1949 तक लगातार नमाज पढ़ते थे, लेकिन 1856-57 तक ऐसा होने का कोई सबूत नहीं है, कोर्ट ने कहा  कि हिंदुओं के वहां पर अधिकार की ब्रिटिश सरकार ने मान्यता दी. 1877 में उनके लिए एक और रास्ता खोला गया. अंदरूनी हिस्से में मुस्लिमों की नमाज बंद हो जाने का कोई सबूत नहीं मिला, कोर्ट ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को वैकल्पिक ज़मीन देना ज़रूरी है. केंद्र सरकार 3 महीने में ट्रस्ट बनाए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केंद्र सरकार के ट्रस्ट के मैनेजमेंट के नियम बनाए. मन्दिर निर्माण के नियम बनाए. अंदर और बाहर का हिस्सा ट्रस्ट को दिया जाए. मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ की वैकल्पिक ज़मीन मिले. या तो केंद्र 1993 में अधिगृहित जमीन से दे या राज्य सरकार अयोध्या में ही कहीं दे. हम अनुच्छेद 142 के तहत मिली विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए मुस्लिम पक्ष को ज़मीन दे रहे हैं. सरकार ट्रस्ट में निर्मोही को भी उपयुक्त प्रतिनिधित्व देने पर विचार करे.

अयोध्या ब्रेकिंग

मुस्लिम मुख्य पक्षकार इकबाल अंसारी ने कहा मैंने पहले भी कहा था कोर्ट के फैसले का सम्मान करेंगे सो हम सम्मान करते है,
आज फैसला आया मामला ख़तम हुआ सरकार हमे कहा जमीन देगी उसको देखेंगे ।