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नईदिल्ली : एक और बंटवारा करने वाला है यह नागरिकता संशोधन बिल ,हिटलर के कानून से भी है बद्तर कहकर असदुद्दीन ओवैसी ने लोकसभा में फाड़ा बिल

एक और बंटवारा करने वाला है यह नागरिकता संशोधन बिल ,हिटलर के कानून से भी है बद्तर कहकर असदुद्दीन ओवैसी ने लोकसभा में फाड़ा बिल 


नईदिल्ली 9 दिसंबर 2019 ।। आज लोकसभा के पटल पर पेश हुए नागरिकता संशोधन बिल के पक्ष में 293 और विरोध में  82 वोट पड़े। वहीं इस पर लोक सभा मे खूब गरमा गरम चर्चा हो रही है । एक तरफ इसको पेश करते हुए गृह मंत्री ने कहा कि यह बिल किसी के अधिकारों को कम करने वाला नही है , यह सदन में अगर चर्चा के दौरान साबित हो जाय तो इसे मैं वापस ले लूंगा । वही कांग्रेस के मनीष तिवारी ने इस बिल को एक देश दो विधान करने वाला बताया । शिवसेना ने बिल का समर्थन किया । जनता दल (बीजद) ने  इसमे श्रीलंका से आये हुए शरणार्थियों को भी शामिल करने की मांग की । वही चर्चा के दौरान एआईएमआईएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने गुस्से में नागरिकता संशोधन बिल की कॉपी फाड़ डाली। ओवैसी ने कहा कि यह बिल एक और बंटवारा करवाने जा रहा है। यह बिल हिटलर के कानून से भी बदतर है।

आईएमआईएम ने नागरिकता संशोधन बिल का विरोध किया है। असदुद्दीन ओवैसी ने बिल का विरोध करते हुए कहा, 'चीन के बारे में सरकार क्यों नहीं बोलती। नागरिकता बिल हिटलर के कानून से भी बदतर है। एक और बंटवारा होने जा रहा है. नागरिकता बिल से देश को खतरा है।' वहीं गांधी का नाम लेते हुए ओवैसी ने बिल की कॉपी फाड़ी.


इससे पहले नागरिकता संशोधन विधेयक पर सोमवार को लोकसभा में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और तेलंगाना राष्ट्र समिति ने विरोध दर्ज कराते हुए विधेयक पर पुनर्विचार की और इसमें ‘मुस्लिम’ शब्द शामिल करने की मांग की, वहीं बीजू जनता दल ने विधेयक का समर्थन किया। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) की सुप्रिया सुले ने कहा कि वह सरकार की मंशा पर सवाल नहीं उठा रहीं, लेकिन धारणाओं को लेकर प्रश्नचिह्न खड़ा होता है। उन्होंने कहा कि मुस्लिमों में असुरक्षा का माहौल बन रहा है। क्या एनआरसी विफल हो गया है, इसलिए सरकार विधेयक लाई है? सरकार को देश के दूसरे सबसे बड़े समुदाय की चिंताओं पर ध्यान देना चाहिए।

सुले ने कहा कि गृह मंत्री ने संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) में विधेयक पर सहमति की बात कही जो तथ्यात्मक रूप से गलत है क्योंकि जेपीसी में इस पर कई सदस्यों ने असहमति जताई थी।

उन्होंने सवाल किया कि विधेयक लाने की तत्काल जरूरत क्या आन पड़ी। यदि पूर्वोत्तर को अभी शामिल नहीं किया जा सकता तो सरकार इसे इतनी जल्दबाजी में क्यों लाई।

राकांपा सदस्य ने विधेयक वापस लेकर सरकार से इस पर पुनर्विचार की मांग की और कहा कि यह विधेयक संसद से पारित हो गया तो उच्चतम न्यायालय में नहीं टिकेगा। बीजू जनता दल (बीजद) की शर्मिष्ठा सेठी ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि इस विधेयक को एनआरसी से नहीं जोड़ा जाए, सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए।

उन्होंने इसमें श्रीलंका को भी शामिल करने की मांग की

बीजद सदस्य ने सुझाव दिया कि इसमें मुस्लिम समुदाय के लोगों को भी शामिल करने पर विचार किया जाए। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के अफजाल अंसारी ने कहा कि यह संशोधन विधेयक संविधान की मूल भावना के विपरीत है इसलिए उनकी पार्टी इसका विरोध कर रही है।

उन्होंने कहा कि जिन तीन देशों की बात हो रही है, उनमें धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ अच्छा बर्ताव नहीं होने की बात ठीक हो सकती है लेकिन यह भी कटु सत्य है कि भारत से पाकिस्तान जाने वाले मुसलमानों के साथ भी वहां के नागरिकों के समान व्यवहार नहीं किया जाता।

अंसारी ने कहा कि सरकार इन देशों में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के खिलाफ उन्हें पनाह देने की दरियादिली दिखा रही है तो थोड़ा और बड़ा दिल करके उसे मुस्लिमों को भी इसमें शामिल करना चाहिए।

तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के नामा नागेश्वर राव ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि धार्मिक आधार पर नागरिकता देना संविधान के मूल सिद्धांत के खिलाफ है। उन्होंने विधेयक में अन्य धर्मों के साथ ‘मुस्लिम’ समुदाय को भी शामिल करने की मांग की।

समाजवादी पार्टी (सपा) के एस टी हसन ने कहा कि यह विधेयक ऐसा लगता है कि एनआरसी की भूमिका निभा रहा है जिससे मुसलमानों में डर का माहौल है। उन्होंने विधेयक का विरोध करते हुए इस पर पुनर्विचार करने की और इसमें मुसलमानों को भी समाहित करने की मांग की। आईयूएमएल के पी के कुन्हालीकुट्टी और माकपा के एस वेंकटेशन ने भी विधेयक का विरोध किया।

कुन्हालीकुट्टी ने कहा कि आज आजाद भारत के लिए काला दिन है और पहली बार ऐसा भेदभाव वाला विधेयक लाया गया है। इससे सरकार का सांप्रदायिक एजेंडा स्पष्ट हो जाता है। उन्होंने भी कहा कि यह विधेयक उच्चतम न्यायालय में कानूनी पड़ताल में टिक नहीं पाएगा।