बलिया : सरसों की फसल को कीट-रोग से करें सुरक्षा - प्रो. रवि प्रकाश
सरसों की फसल को कीट-रोग से करें सुरक्षा - प्रो. रवि प्रकाश
बलिया 11 जनवरी 2020 ।। इस समय अधिकतर सरसों की फसल में फूल आ गये है, फलियाँ बनना भी प्रारम्भ हो गयी है। ऐसी अवस्था में कीट व रोगों से सरसों की फसल पर विशेष नजर रखना चाहिये। आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौधोगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र सोहाँव बलिया के अध्यक्ष प्रो. रवि प्रकाश मौर्य ने बताया कि इस समय सरसो की फसल पर माहूँ कीट का मुख्य रूप से लगने का ज्यादा डर रहता है। जो झुंड के रूप में पत्तियों, फूलों, डंठलों, फलियों में रहते हैं। यह कीट छोटा, कोमल शरीर वाला और हरे मटमैले भूरे रंग का होता है। इस कीट का प्रकोप बादल घिरे रहने पर तेजी से होता है। इसकी रोकथाम के लिए 1 लीटर डाइमिथिएट (30 ईसी) या 1 लीटर मिथाइल ओ डिमेटान (25 ईसी) रसायन को 500-750 लीटर पानी मे घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने से फसल को कीट से सुरक्षित रखा जा सकता है।
प्रारम्भिक अवस्था मे माहू्ँ से प्रभावित टहनियों को तोड़ कर नष्ट कर देना चाहिए। सरसों के नाशीजीवों के प्राकृतिक शत्रुओं जैसे इन्द्रगोप भृंग, क्राईसोपा, सिरफिडफ्लाई का फसल वातावरण में संरक्षण करें।सरसों में झुलसा रोग का प्रकोप ज्यादा हो सकता है। इस रोग में पत्तियों और फलियों पर गहरे कत्थई रंग के धब्बे बन जाते हैं, जिन में गोल छल्ले केवल पत्तियों पर दिखाई देते हैं। इस रोग पर नियंत्रण करने के लिए 2 किग्रा. मैंकोजेब 75 ℅ घुलनशील चूर्ण या 2 किग्रा जीरम 80 ℅ घु.चू. का 500-750 लीटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। पहला छिड़काव रोग के लक्षण दिखाई देने पर और दूसरा छिड़काव पहले छिड़काव के 15 से 20 दिनों के अंतर पर करें। अधिकतम 2से 3बार छिड़काव करने से फसल को सुरक्षित रखा जा सकता है।
बलिया 11 जनवरी 2020 ।। इस समय अधिकतर सरसों की फसल में फूल आ गये है, फलियाँ बनना भी प्रारम्भ हो गयी है। ऐसी अवस्था में कीट व रोगों से सरसों की फसल पर विशेष नजर रखना चाहिये। आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौधोगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र सोहाँव बलिया के अध्यक्ष प्रो. रवि प्रकाश मौर्य ने बताया कि इस समय सरसो की फसल पर माहूँ कीट का मुख्य रूप से लगने का ज्यादा डर रहता है। जो झुंड के रूप में पत्तियों, फूलों, डंठलों, फलियों में रहते हैं। यह कीट छोटा, कोमल शरीर वाला और हरे मटमैले भूरे रंग का होता है। इस कीट का प्रकोप बादल घिरे रहने पर तेजी से होता है। इसकी रोकथाम के लिए 1 लीटर डाइमिथिएट (30 ईसी) या 1 लीटर मिथाइल ओ डिमेटान (25 ईसी) रसायन को 500-750 लीटर पानी मे घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने से फसल को कीट से सुरक्षित रखा जा सकता है।
प्रारम्भिक अवस्था मे माहू्ँ से प्रभावित टहनियों को तोड़ कर नष्ट कर देना चाहिए। सरसों के नाशीजीवों के प्राकृतिक शत्रुओं जैसे इन्द्रगोप भृंग, क्राईसोपा, सिरफिडफ्लाई का फसल वातावरण में संरक्षण करें।सरसों में झुलसा रोग का प्रकोप ज्यादा हो सकता है। इस रोग में पत्तियों और फलियों पर गहरे कत्थई रंग के धब्बे बन जाते हैं, जिन में गोल छल्ले केवल पत्तियों पर दिखाई देते हैं। इस रोग पर नियंत्रण करने के लिए 2 किग्रा. मैंकोजेब 75 ℅ घुलनशील चूर्ण या 2 किग्रा जीरम 80 ℅ घु.चू. का 500-750 लीटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। पहला छिड़काव रोग के लक्षण दिखाई देने पर और दूसरा छिड़काव पहले छिड़काव के 15 से 20 दिनों के अंतर पर करें। अधिकतम 2से 3बार छिड़काव करने से फसल को सुरक्षित रखा जा सकता है।