बलिया : जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय में 'पं दीनदयाल उपाध्याय के सपनों का भारत'विषयक संगोष्ठी सम्पन्न
बलिया : जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय में 'पं दीनदयाल उपाध्याय के सपनों का भारत'विषयक संगोष्ठी सम्पन्न
बलिया,11 फरवरी 2020 ।। पं दीन दयाल उपाध्याय शोधपीठ, जननायक चन्द्रशेखर विश्व-विद्यालय, बलिया के तत्वाधान में, 'पं *दीन दयाल उपाध्याय के सपनों का भारत'* विषय पर एक संगोष्ठी जननायक चन्द्रशेखर विश्व-विद्यालय स्थित हजारी प्रसाद अकादमी भवन पर आयोजित की गई। मुख्य अतिथि एवं वक्ता गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय, विलासपुर, छतीसगढ़ के कुलाधिपति व नेशनल रिसर्च प्रोफेसर, (मानव संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली), प्रो. अशोक गजानन मोदक जी, स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय संगठक श्री अजय उपाध्याय व कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. योगेंद्र सिंह जी द्वारा मां सरस्वती, भारत माता व पं दीन दयाल उपाध्याय जी के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन के साथ, सरस्वती वंदना, राष्ट्रगीत 'वन्दे मातरम' व स्वागत गीत के साथ संगोष्ठी का शुभारंभ हुआ।
अतिथियों का परिचय व कार्यक्रम का संचालन डॉ, रामकृष्ण उपाधयाय जी ने किया।
बतौर मुख्य अतिथि प्रो.अशोक गजानन मोदक जी ने *"पं दीनदयाल उपाध्याय जी के एकात्म मानववाद व उनके सपनों का भारत"* पर विस्तार से चर्चा किया।
अपने सम्बोधन में प्रो. गजानन मोदक जी ने कहा कि गंगा में स्नान करने से पापों का नाश होता है तथा रात्रि के समय जब चन्द्रमा का जागरण होता है तब जो दिनभर की सूर्य की तपिश होती है उसका हरण होता है। पं दीनदयाल जी ने जिस सपनों के भारत का चिंतन किया है उसका हमें भी गहरायी से चिंतन करना चाहिए। पं दीन दयाल जी ऐसे भारत का निर्माण करना चाहते थे जो भूतकाल के भारत से अधिक उन्नत हो। पं जी ने चिंतन किया कि प्रत्येक नर नारायण बनें, अर्थात आर्थिक चिंतन किया। पं दीन दयाल जी ने कहा था कि व्यक्ति केवल अपने में ही सीमित न रहकर विश्व से भी परिचित हो। उन्होंने आगे बताया कि पं दीन दयाल जी का हम सबके ऊपर गहरा ऋण है। उन्होंने समाज को एक नई राह दिखाई जिस पर चलकर व्यक्ति नर से नारायण हो सकता है।
उन्होंने बताया कि जो व्यक्ति खुद के उत्थान के लिए कार्य करता है, असत्य को प्रतिष्ठित करता है उसका कभी उत्थान नहीं हो सकता है। ऐशो-आराम से जीना हमारा हेतु नहीं होना चाहिए।
उन्होंने आगे बताया कि प्रत्येक व्यक्ति न्यूनतम जीवन स्तर का स्वामी होना चाहिए और राष्ट्र भी सामर्थ्यवान बने इसका भी चिंतन होना चाहिए। पं दीन दयाल जी ने कहा था कि प्रत्येक व्यक्ति को रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य, शिक्षा, व सम्मान मिलना ही चाहिए। पं जी कभी एकांगी नहीं थे, बल्कि वो सर्वांगी विचारधार के पोषक थे।
पं दीन दयाल उपाध्याय जी ने कहा कि समाज के सर्वांगीण विकास के लिए एकात्म मानववाद के मार्ग पर चलना होगा। इसी मार्ग को अपनाकर विकास के रास्ते पर आगे बढ़ा जा सकता है। उन्होंने बताया कि पं दीनदयाल उपाध्याय के दर्शन को वाद की श्रेणी में रखा ही नहीं जा सकता,क्योंकि यह निर्विवाद है। एकात्म मानववाद वह विचारधारा है जो यह बताती है कि मनुष्य का केवल सुखी होना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसमें विश्व कल्याण का बोध होना चाहिए। आगे उन्होंने बताया कि पं दीनदयाल उपाध्याय कहा करते थे कि दरिद्र नारायण की सेवा ही ईश्वर की सच्ची सेवा है।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानववाद के दर्शन पर श्रेष्ठ विचार व्यक्त किये हैं। एकात्म मानववाद के विचार आज के युग में भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने कि उनके काल में थे। एकात्म मानववाद पर उनका कहना था कि हमारे यहां समाज को स्वयंभू माना गया है। राज्य एक संस्था के नाते है। राज्य के समान और संस्थायें भी समय−समय पर पैदा होती हैं। प्रत्येक व्यक्ति इनमें से प्रत्येक संस्था का अंग रहता है। समाज, समाज के आगे पूर्ण मानवता पर विचार करें तो उसका भी अंग हूं। मानव से बढ़कर यदि हम इस चराचर जगत का विचार करें तो मैं उसका भी अंग हूं। वास्तविकता यह है कि व्यक्ति नाम की जो वस्तु है, वह एकांगी नहीं बल्कि बहुअंगी है परन्तु महत्वपूर्ण बात यह है कि वह अनेक अंगों वाला होकर भी परस्पर सहयोग, समन्वय को पूरकता और एकात्मकता के साथ चल सकता है। हर व्यक्ति को कुछ गुण मिला हुआ है। जो व्यक्ति इस गुण का ठीक से उपयोग कर ले वो सुखी, व जो गुण का ठीक प्रकार से उपयोग न कर सके वह दुखी, उसका विकास ठीक नहीं होगा। दीनदयाल उपाध्याय की तत्व दृष्टि थी कि भारतीय संस्कृति समग्रतावादी है। यह सार्वभौमिक भी है। पश्चिम की दुनिया में हजारों वाद हैं। पूरा पश्चिमी जगत विक्षिप्त है। पश्चिम के पास सुस्पष्ट दर्शन का अभाव है। वही अभाव यहां के युवकों को भारत की ओर आकर्षित करता है। अमेरिका का प्रत्येक व्यक्ति आनंद की प्यास में भारत की ओर टकटकी लगाये हुए है। भारत ने सम्पूर्ण सृष्टि रचना में एकत्व देखा है। भारतीय संस्कृति इसीलिए सनातन काल से एकात्मवादी है। पंडित जी के अनुसार सृष्टि के एक−एक कण में परम्परावलम्बन है। भारत ने इसे ही अद्वेत कहा है। भारत ने सभ्यता के विकास में परस्पर सहकार को ही मूल तत्व माना है। वस्तुतः एकात्म मानव दर्शन ही है। किन्तु इसे 'एकात्म मानववाद' इसलिए कहा गया कि पंडित जी भारत की राष्ट्रवादी पार्टी भारतीय जनसंघ के शिखर पुरुष थे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानववाद के सर्वांगीण विकास और अभ्युदय के लक्ष्य भी भारतीय दर्शन से ही निरूपित किये थे।
विशिष्ट अतिथि श्री अजय जी ने पं दीनदयाल जी के स्वदेशी विचारधारा का विस्तृत उल्लेख करते हुए कहा कि पं दीनदयाल जी स्वदेशी समानों के हिमायती थे।
अंत में राष्ट्रगान के साथ संगोष्ठी का समापन हुआ।
इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग प्रचारक श्रीप्रकाश जी, करुणेश जी, डॉ. चन्द्रशेखर पांडेय गिरीश जी, करुणा निधि तिवारी, अशोक पांडेय, टाउन डिग्री कालेज के प्राचार्य प्रदीप जी, डॉ. सन्तोष तिवारी, मंगलदेव चौबे, मारुति नन्दन, सोमदत्त सिंह, अशोक ओझा, विनय सिंह, अम्बरीश शुक्ल, ज्ञानेंद्र पांडेय, सुरेश मिश्र, समाज के गणमान्य लोग व छात्र एवं छत्राएँ उपस्थित रहे।
बलिया,11 फरवरी 2020 ।। पं दीन दयाल उपाध्याय शोधपीठ, जननायक चन्द्रशेखर विश्व-विद्यालय, बलिया के तत्वाधान में, 'पं *दीन दयाल उपाध्याय के सपनों का भारत'* विषय पर एक संगोष्ठी जननायक चन्द्रशेखर विश्व-विद्यालय स्थित हजारी प्रसाद अकादमी भवन पर आयोजित की गई। मुख्य अतिथि एवं वक्ता गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय, विलासपुर, छतीसगढ़ के कुलाधिपति व नेशनल रिसर्च प्रोफेसर, (मानव संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली), प्रो. अशोक गजानन मोदक जी, स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय संगठक श्री अजय उपाध्याय व कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. योगेंद्र सिंह जी द्वारा मां सरस्वती, भारत माता व पं दीन दयाल उपाध्याय जी के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन के साथ, सरस्वती वंदना, राष्ट्रगीत 'वन्दे मातरम' व स्वागत गीत के साथ संगोष्ठी का शुभारंभ हुआ।
अतिथियों का परिचय व कार्यक्रम का संचालन डॉ, रामकृष्ण उपाधयाय जी ने किया।
बतौर मुख्य अतिथि प्रो.अशोक गजानन मोदक जी ने *"पं दीनदयाल उपाध्याय जी के एकात्म मानववाद व उनके सपनों का भारत"* पर विस्तार से चर्चा किया।
अपने सम्बोधन में प्रो. गजानन मोदक जी ने कहा कि गंगा में स्नान करने से पापों का नाश होता है तथा रात्रि के समय जब चन्द्रमा का जागरण होता है तब जो दिनभर की सूर्य की तपिश होती है उसका हरण होता है। पं दीनदयाल जी ने जिस सपनों के भारत का चिंतन किया है उसका हमें भी गहरायी से चिंतन करना चाहिए। पं दीन दयाल जी ऐसे भारत का निर्माण करना चाहते थे जो भूतकाल के भारत से अधिक उन्नत हो। पं जी ने चिंतन किया कि प्रत्येक नर नारायण बनें, अर्थात आर्थिक चिंतन किया। पं दीन दयाल जी ने कहा था कि व्यक्ति केवल अपने में ही सीमित न रहकर विश्व से भी परिचित हो। उन्होंने आगे बताया कि पं दीन दयाल जी का हम सबके ऊपर गहरा ऋण है। उन्होंने समाज को एक नई राह दिखाई जिस पर चलकर व्यक्ति नर से नारायण हो सकता है।
उन्होंने बताया कि जो व्यक्ति खुद के उत्थान के लिए कार्य करता है, असत्य को प्रतिष्ठित करता है उसका कभी उत्थान नहीं हो सकता है। ऐशो-आराम से जीना हमारा हेतु नहीं होना चाहिए।
उन्होंने आगे बताया कि प्रत्येक व्यक्ति न्यूनतम जीवन स्तर का स्वामी होना चाहिए और राष्ट्र भी सामर्थ्यवान बने इसका भी चिंतन होना चाहिए। पं दीन दयाल जी ने कहा था कि प्रत्येक व्यक्ति को रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य, शिक्षा, व सम्मान मिलना ही चाहिए। पं जी कभी एकांगी नहीं थे, बल्कि वो सर्वांगी विचारधार के पोषक थे।
पं दीन दयाल उपाध्याय जी ने कहा कि समाज के सर्वांगीण विकास के लिए एकात्म मानववाद के मार्ग पर चलना होगा। इसी मार्ग को अपनाकर विकास के रास्ते पर आगे बढ़ा जा सकता है। उन्होंने बताया कि पं दीनदयाल उपाध्याय के दर्शन को वाद की श्रेणी में रखा ही नहीं जा सकता,क्योंकि यह निर्विवाद है। एकात्म मानववाद वह विचारधारा है जो यह बताती है कि मनुष्य का केवल सुखी होना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसमें विश्व कल्याण का बोध होना चाहिए। आगे उन्होंने बताया कि पं दीनदयाल उपाध्याय कहा करते थे कि दरिद्र नारायण की सेवा ही ईश्वर की सच्ची सेवा है।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानववाद के दर्शन पर श्रेष्ठ विचार व्यक्त किये हैं। एकात्म मानववाद के विचार आज के युग में भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने कि उनके काल में थे। एकात्म मानववाद पर उनका कहना था कि हमारे यहां समाज को स्वयंभू माना गया है। राज्य एक संस्था के नाते है। राज्य के समान और संस्थायें भी समय−समय पर पैदा होती हैं। प्रत्येक व्यक्ति इनमें से प्रत्येक संस्था का अंग रहता है। समाज, समाज के आगे पूर्ण मानवता पर विचार करें तो उसका भी अंग हूं। मानव से बढ़कर यदि हम इस चराचर जगत का विचार करें तो मैं उसका भी अंग हूं। वास्तविकता यह है कि व्यक्ति नाम की जो वस्तु है, वह एकांगी नहीं बल्कि बहुअंगी है परन्तु महत्वपूर्ण बात यह है कि वह अनेक अंगों वाला होकर भी परस्पर सहयोग, समन्वय को पूरकता और एकात्मकता के साथ चल सकता है। हर व्यक्ति को कुछ गुण मिला हुआ है। जो व्यक्ति इस गुण का ठीक से उपयोग कर ले वो सुखी, व जो गुण का ठीक प्रकार से उपयोग न कर सके वह दुखी, उसका विकास ठीक नहीं होगा। दीनदयाल उपाध्याय की तत्व दृष्टि थी कि भारतीय संस्कृति समग्रतावादी है। यह सार्वभौमिक भी है। पश्चिम की दुनिया में हजारों वाद हैं। पूरा पश्चिमी जगत विक्षिप्त है। पश्चिम के पास सुस्पष्ट दर्शन का अभाव है। वही अभाव यहां के युवकों को भारत की ओर आकर्षित करता है। अमेरिका का प्रत्येक व्यक्ति आनंद की प्यास में भारत की ओर टकटकी लगाये हुए है। भारत ने सम्पूर्ण सृष्टि रचना में एकत्व देखा है। भारतीय संस्कृति इसीलिए सनातन काल से एकात्मवादी है। पंडित जी के अनुसार सृष्टि के एक−एक कण में परम्परावलम्बन है। भारत ने इसे ही अद्वेत कहा है। भारत ने सभ्यता के विकास में परस्पर सहकार को ही मूल तत्व माना है। वस्तुतः एकात्म मानव दर्शन ही है। किन्तु इसे 'एकात्म मानववाद' इसलिए कहा गया कि पंडित जी भारत की राष्ट्रवादी पार्टी भारतीय जनसंघ के शिखर पुरुष थे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानववाद के सर्वांगीण विकास और अभ्युदय के लक्ष्य भी भारतीय दर्शन से ही निरूपित किये थे।
विशिष्ट अतिथि श्री अजय जी ने पं दीनदयाल जी के स्वदेशी विचारधारा का विस्तृत उल्लेख करते हुए कहा कि पं दीनदयाल जी स्वदेशी समानों के हिमायती थे।
अंत में राष्ट्रगान के साथ संगोष्ठी का समापन हुआ।
इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग प्रचारक श्रीप्रकाश जी, करुणेश जी, डॉ. चन्द्रशेखर पांडेय गिरीश जी, करुणा निधि तिवारी, अशोक पांडेय, टाउन डिग्री कालेज के प्राचार्य प्रदीप जी, डॉ. सन्तोष तिवारी, मंगलदेव चौबे, मारुति नन्दन, सोमदत्त सिंह, अशोक ओझा, विनय सिंह, अम्बरीश शुक्ल, ज्ञानेंद्र पांडेय, सुरेश मिश्र, समाज के गणमान्य लोग व छात्र एवं छत्राएँ उपस्थित रहे।