विश्व वन्य दिवस 3 मार्च पर विशेष,बलिया :8 मिलियन जीवधारियों व पादपों की प्रजातियों में से 1 मिलियन हो गयी है विलुप्त,शीघ्र ही 10 लाख विलुप्त होने की कगार पर : डॉ गणेश पाठक
विश्व वन्य दिवस 3 मार्च पर विशेष :8 मिलियन जीवधारियों व पादपों की प्रजातियों में से 1 मिलियन हो गयी है विलुप्त,शीघ्र ही 10 लाख विलुप्त होने की कगार पर : डॉ गणेश पाठक
डॉ सुनील कुमार ओझा (उप संपादक बलिया एक्सप्रेस)
बलिया 2 मार्च 2020 ।। अमरनाथ मिश्र पी. जी. कालेज दूबेछपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य पर्यावरणविद् डा० गणेश कुमार पाठक ने वन्य जीवों के विनाश एवं उससे उत्पन्न संकट के बारे में बलिया एक्सप्रेस के उप संपादक डॉ सुनील ओझा से एक भेंटवार्ता में बताया कि वन्यजीवों का विनाश खासतौर से अनियंत्रित रूप से किए गए वन विनाश की देन है और यह वन विनाश अंधाधुन्ध विकास एवं मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु किया गया। वनों के विनाश होने से जीव- जंतुओं की प्राकृतिक शरणस्थली भी समाप्त होती गयी , फलतः इन जंगलों में निवास करने वाले या तो सदैव के लिए समाप्त हो गए या समाप्ति के कगार पर हैं। वन कटने से एवं वन्यजीवों के विनाश से पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित होती जा रही है, जिसके चलते अनेक प्राकृतिक आपदाएँ जन्म लेकर मानव का भी विनाश करने को तत्पर हैं।
डा० पाठक ने बताया कि आई.पी.बी.इ.एस. की एक रिपोर्ट के अनुसार अब तक 40 प्रतिशत जीव प्रजातियाँ लुप्तप्राय हो चुकी हैं। 1556 प्रजातियां सदैव के लिए विलुप्त हो गयी हैं। 10 लाख प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं। प्रत्येक चार में से एक प्रजाति विलुप्ति के कगार पर है। 6190 स्तनधारी प्रजातियों में से 559 सदैव के लिए विलुप्त हो गयी हैं और 1000 प्रजातियों के विलुप्त होने की सम्भावना है। समुद्र में भी बढ़ते प्रदूषण से 267 समुद्री प्रजातियों के लिए संकट बरकरार है। संयुक्तराष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार कुछ दशकों में ही 10 लाख से अधिक प्रजातियां विलुप्त हो जायेंगी।
8 मिलियन जीवधारियों व पादपों की प्रजातियों में से 1 मिलियन हो गयी है विलुप्त
डा० पाठक ने बताया कि आई.बी.पी.इ.एस. के एक रिपोर्ट के अनुसार आगामी दशक के दौरान हमारी धरती पर विद्यमान अनुमानित 8 मिलियन जीवधारियों एवं पादपों की प्रजातियों में से लगभग एक मिलियन प्रजातियों के विलुप्त होने की सम्भावना है। पृथ्वी की 75 प्रतिशत भूमि एवं 66 प्रतिशत समुद्री पर्यवरण में विशेष रूप से बदलाव आया है।आर्द्र भूमियों में से 86प्रतिशत भूमि का क्षेत्र समाप्त हो गया है। 40 प्रतिशत उभयचर एवं 33 प्रतिशत जलीय स्तनधारी प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं। मानव गतिविधियों के कारण 680 कशेरूकी प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं। कुल ज्ञात 5.5 मिलियन कीटों की प्रजातियों में से लगभग 10 प्रतिशत पर विलुप्ति का खतरा मँडरा रहा है। 3.5 प्रतिशत घरेलू प्रजाति के पक्षी विलुप्त हो चुके हैं। अब तक 68 प्रतिशत वैश्विक वन विनषँट किए जा चुके हैं। इस प्रकार आज वन विनष्ट होने से जल, जंगल, जीव, जमीन एवं जीवन के लिए घोर संकट उत्पन्न हो गया है।बलिया सहित पूर्वांचल के जिलों में वन्यजीवों का है घोर अभाव है।
बलिया सहित पूर्वांचल में स्थिति भयावह
यदि बलिया जनपद सहित पूरे पूर्वांचल के जनपदों में वन एवं वन्यजीवों की स्थिति को देखा जाय तो स्थिति अत्यन्त भयावह है । कारण कि इन क्षेत्रों में प्राकृतिक वन नहीं के बराबर हैं। प्राकृतिक वनस्पतियों के नाम पर मात्र झाड़ियाँ एवं मूँज,नरकल आदि ही देखने को मिलते हैं। वो भी अब समाप्ति के कगार पर हैं। मानव द्वारा रोपित वृक्ष भी मात्र दो से तीन प्रतिशत तक ही हैं, जबकि 33 प्रतिशत भूमि पर वनों का विस्तार होना चाहिए। जहाँ तक बलिया जनपद का प्रश्न है तो यहाँ कि स्थिति और भयावह है। इस जनपद के गंगा एवं घाघरा नदियों के दियारे क्षेत्र में एवं जिले के पश्चिमी क्षेत्र में अर्थात् बाँगर क्षेत्र में कुछ प्राकृतिक वनस्पतियां मिल जाया करती थीं, जिनमें अनेक तरह के छोटे- बड़े जीव जन्तु दिख जाया करते थे। जिनमें हिरन, उदबिलाँव, जंगली सुअर, खरगोश, जंगली बिल्ली, नीलगाय, शाही, सियार, खरहा, चूहे, अनेक तरह के सर्प, अनेक तरह की पक्षियाँ कुलाँचे भरते एवं कलरव करते दिखाई देते रहते थे। इन जीव जंतुओं का इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी संतुलन को बनाए रखने में अहम् भूमिका रहती थी। किन्तु दुर्भाग्यवश ये प्राकृतिक झाड़ियाँ भी समाप्त हो गयी और साथ ही साथ ये जीव- जंतु भी समाप्त हो गये। मानव द्वारा लगाए गये बाग- बगीचे भी समाप्त कर दिए गये। वन्यशून्य इस जनपद में पारिस्थितिकी संकट चरम पर बढ़ गया है ,जिसका खामियाजा भी हमें भूगतना पड़ रहा है।
प्रश्न यह है कि वन्यजीवों का संरक्षण कैसे किया जाय। यदि हम अपने देश के परिप्रेक्ष्य में देखें तो भारतीय संस्कृति अरण्य संस्कृति रही है, जिसमें पूरी प्रकृति के संरक्षण की विचारधारा प्यस्तुत है। खासतौर से वन एवं वन्यजीव के संरक्षण की बात देखें तो हमारी संस्कृति में वृक्षों की पूजा का विधान बनाया गया है,ताकि उनका संरक्षण किया जा सके। हिंसक एवं अहिंसक जीवों की सुरक्षा हेतु उन्हें देवी- देवताओं का वाहन बना दिया गया, ताकि उनको कोई मार न सके। आज हमें पुनः इन अवधारणाओं को जानने की आवश्यकता है एवं जनजागरूकता फैलाने की आवश्यकता है ,ताकि वनवृक्षों एवं वन्यजीवों को बचाकर पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी की सुरक्षा की जा सके।
पूर्वांचल के जिलों में वनों के अन्तर्गत क्षेत्रफल( हेक्टेयर में)
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जिला वन क्षेत्र
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आजमगढ़ 110
मऊ 560
बलिया 26
जौनपुर 99
गाजीपुर 121
चंदौली 77400
वाराणसी 00
संतरविदास नगर 175
मिर्जापुर 109236
सोनभद्र 325741
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स्रोतः सांख्यिकीय डायरी,उत्तर प्रदेश, 2012.
भारत में विलुप्त हो रहे जीव जंतुओं की संख्या
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प्रजाति विलुप्त विलुप्त होने
हो चुकी के कगार पर
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पेड़- पौधे 384 19079
मछलियाँ 23 343
उभयचर 02 50
सरीसृप। 21 170
बिना रीढ़
वाले जंतु 98 1355
पक्षी 113 1037
स्तनधारी 83 497
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योग 724 22,530
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डॉ सुनील कुमार ओझा (उप संपादक बलिया एक्सप्रेस)
बलिया 2 मार्च 2020 ।। अमरनाथ मिश्र पी. जी. कालेज दूबेछपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य पर्यावरणविद् डा० गणेश कुमार पाठक ने वन्य जीवों के विनाश एवं उससे उत्पन्न संकट के बारे में बलिया एक्सप्रेस के उप संपादक डॉ सुनील ओझा से एक भेंटवार्ता में बताया कि वन्यजीवों का विनाश खासतौर से अनियंत्रित रूप से किए गए वन विनाश की देन है और यह वन विनाश अंधाधुन्ध विकास एवं मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु किया गया। वनों के विनाश होने से जीव- जंतुओं की प्राकृतिक शरणस्थली भी समाप्त होती गयी , फलतः इन जंगलों में निवास करने वाले या तो सदैव के लिए समाप्त हो गए या समाप्ति के कगार पर हैं। वन कटने से एवं वन्यजीवों के विनाश से पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित होती जा रही है, जिसके चलते अनेक प्राकृतिक आपदाएँ जन्म लेकर मानव का भी विनाश करने को तत्पर हैं।
डा० पाठक ने बताया कि आई.पी.बी.इ.एस. की एक रिपोर्ट के अनुसार अब तक 40 प्रतिशत जीव प्रजातियाँ लुप्तप्राय हो चुकी हैं। 1556 प्रजातियां सदैव के लिए विलुप्त हो गयी हैं। 10 लाख प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं। प्रत्येक चार में से एक प्रजाति विलुप्ति के कगार पर है। 6190 स्तनधारी प्रजातियों में से 559 सदैव के लिए विलुप्त हो गयी हैं और 1000 प्रजातियों के विलुप्त होने की सम्भावना है। समुद्र में भी बढ़ते प्रदूषण से 267 समुद्री प्रजातियों के लिए संकट बरकरार है। संयुक्तराष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार कुछ दशकों में ही 10 लाख से अधिक प्रजातियां विलुप्त हो जायेंगी।
8 मिलियन जीवधारियों व पादपों की प्रजातियों में से 1 मिलियन हो गयी है विलुप्त
डा० पाठक ने बताया कि आई.बी.पी.इ.एस. के एक रिपोर्ट के अनुसार आगामी दशक के दौरान हमारी धरती पर विद्यमान अनुमानित 8 मिलियन जीवधारियों एवं पादपों की प्रजातियों में से लगभग एक मिलियन प्रजातियों के विलुप्त होने की सम्भावना है। पृथ्वी की 75 प्रतिशत भूमि एवं 66 प्रतिशत समुद्री पर्यवरण में विशेष रूप से बदलाव आया है।आर्द्र भूमियों में से 86प्रतिशत भूमि का क्षेत्र समाप्त हो गया है। 40 प्रतिशत उभयचर एवं 33 प्रतिशत जलीय स्तनधारी प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं। मानव गतिविधियों के कारण 680 कशेरूकी प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं। कुल ज्ञात 5.5 मिलियन कीटों की प्रजातियों में से लगभग 10 प्रतिशत पर विलुप्ति का खतरा मँडरा रहा है। 3.5 प्रतिशत घरेलू प्रजाति के पक्षी विलुप्त हो चुके हैं। अब तक 68 प्रतिशत वैश्विक वन विनषँट किए जा चुके हैं। इस प्रकार आज वन विनष्ट होने से जल, जंगल, जीव, जमीन एवं जीवन के लिए घोर संकट उत्पन्न हो गया है।बलिया सहित पूर्वांचल के जिलों में वन्यजीवों का है घोर अभाव है।
बलिया सहित पूर्वांचल में स्थिति भयावह
यदि बलिया जनपद सहित पूरे पूर्वांचल के जनपदों में वन एवं वन्यजीवों की स्थिति को देखा जाय तो स्थिति अत्यन्त भयावह है । कारण कि इन क्षेत्रों में प्राकृतिक वन नहीं के बराबर हैं। प्राकृतिक वनस्पतियों के नाम पर मात्र झाड़ियाँ एवं मूँज,नरकल आदि ही देखने को मिलते हैं। वो भी अब समाप्ति के कगार पर हैं। मानव द्वारा रोपित वृक्ष भी मात्र दो से तीन प्रतिशत तक ही हैं, जबकि 33 प्रतिशत भूमि पर वनों का विस्तार होना चाहिए। जहाँ तक बलिया जनपद का प्रश्न है तो यहाँ कि स्थिति और भयावह है। इस जनपद के गंगा एवं घाघरा नदियों के दियारे क्षेत्र में एवं जिले के पश्चिमी क्षेत्र में अर्थात् बाँगर क्षेत्र में कुछ प्राकृतिक वनस्पतियां मिल जाया करती थीं, जिनमें अनेक तरह के छोटे- बड़े जीव जन्तु दिख जाया करते थे। जिनमें हिरन, उदबिलाँव, जंगली सुअर, खरगोश, जंगली बिल्ली, नीलगाय, शाही, सियार, खरहा, चूहे, अनेक तरह के सर्प, अनेक तरह की पक्षियाँ कुलाँचे भरते एवं कलरव करते दिखाई देते रहते थे। इन जीव जंतुओं का इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी संतुलन को बनाए रखने में अहम् भूमिका रहती थी। किन्तु दुर्भाग्यवश ये प्राकृतिक झाड़ियाँ भी समाप्त हो गयी और साथ ही साथ ये जीव- जंतु भी समाप्त हो गये। मानव द्वारा लगाए गये बाग- बगीचे भी समाप्त कर दिए गये। वन्यशून्य इस जनपद में पारिस्थितिकी संकट चरम पर बढ़ गया है ,जिसका खामियाजा भी हमें भूगतना पड़ रहा है।
प्रश्न यह है कि वन्यजीवों का संरक्षण कैसे किया जाय। यदि हम अपने देश के परिप्रेक्ष्य में देखें तो भारतीय संस्कृति अरण्य संस्कृति रही है, जिसमें पूरी प्रकृति के संरक्षण की विचारधारा प्यस्तुत है। खासतौर से वन एवं वन्यजीव के संरक्षण की बात देखें तो हमारी संस्कृति में वृक्षों की पूजा का विधान बनाया गया है,ताकि उनका संरक्षण किया जा सके। हिंसक एवं अहिंसक जीवों की सुरक्षा हेतु उन्हें देवी- देवताओं का वाहन बना दिया गया, ताकि उनको कोई मार न सके। आज हमें पुनः इन अवधारणाओं को जानने की आवश्यकता है एवं जनजागरूकता फैलाने की आवश्यकता है ,ताकि वनवृक्षों एवं वन्यजीवों को बचाकर पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी की सुरक्षा की जा सके।
पूर्वांचल के जिलों में वनों के अन्तर्गत क्षेत्रफल( हेक्टेयर में)
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जिला वन क्षेत्र
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आजमगढ़ 110
मऊ 560
बलिया 26
जौनपुर 99
गाजीपुर 121
चंदौली 77400
वाराणसी 00
संतरविदास नगर 175
मिर्जापुर 109236
सोनभद्र 325741
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स्रोतः सांख्यिकीय डायरी,उत्तर प्रदेश, 2012.
भारत में विलुप्त हो रहे जीव जंतुओं की संख्या
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प्रजाति विलुप्त विलुप्त होने
हो चुकी के कगार पर
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पेड़- पौधे 384 19079
मछलियाँ 23 343
उभयचर 02 50
सरीसृप। 21 170
बिना रीढ़
वाले जंतु 98 1355
पक्षी 113 1037
स्तनधारी 83 497
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योग 724 22,530
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