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बलिया और देश के प्रथम अमर शहीद मंगल पांडेय की 163 वी पुण्यतिथि पर विशेष : वही थे पहले विद्रोही, पहले पाण्डे.. .

  बलिया और देश के प्रथम अमर शहीद मंगल पांडेय की 163 वी पुण्यतिथि  पर विशेष : वही थे पहले विद्रोही, पहले पाण्डे.. .

 डॉ. निर्मल कुमार पाण्डेय (लेखक ,इतिहासकार ,बलिया के मूल निवासी ,  जयप्रकाश विश्वविद्यालय छपरा में इतिहास के प्राध्यापक है)


बलिया 8 अप्रैल 2020 ।। 29 मार्च 1857 को बैरकपुर के परेड ग्राउंड में चली गोली ‘स्वधर्म और स्वराज’ की रक्षा के लिए बर्तानिया हुकूमत के खिलाफ विद्रोह की पहली गोली थी, जिसने अपराजेय और बुलेटप्रूफ़ ब्रिटिश ढांचे में दरार पैदा की। गोली चलाने वाले का नाम था मंगल पाण्डेय। ईस्ट इंडिया कंपनी की फ़ौज में एक साधारण सिपाही। जो इतिहास में असाधारण स्वातंत्र्य वीर के रूप में दर्ज हैं। 163 साल पहले आज ही के दिन 8 अप्रैल 1857 को मंगल पाण्डेय को फांसी दी गयी। बलिदान दिवस पर उस अमर बलिदानी को कोटिशः नमन।

श्रीपांथ ‘मंगल पाण्डे का मुकदमा’ में लिखते हैं, ‘वह विद्रोही था। विद्रोह का प्रतीक था। जिसने 1857 के भारतीय स्वातंत्र्य समर में पहली गोली दाग कर महाविद्रोह को हवा दी। बारूद के ढेर पर उसी ने सबसे पहले जलती मशाल फेंकी थी। उसके बाद किसी को डरने की जरुरत महसूस नहीं हुई। सभी जैसे पलक झपकते ही मंगल पाण्डे में बदल गए। जिधर नज़र जाती उधर ही अनगिनत मंगल पाण्डे नज़र आते। मंगल पाण्डे उन विद्रोहियों में पहला था। वही पहला पाण्डे था। इसके बाद जितने भी विद्रोही हुए पाण्डे कहलाये।’

अंग्रेजी शब्द कोश में मिलता है, ‘पाण्डे (PANDY) मतलब 1857-58 के विद्रोह में शामिल होने वाले।’ ब्रिटिश सैन्य दस्तावेजों से पता चलता है, कि बैरकपुर में सबसे पहले जिन दो विद्रोहियों को फांसी सी गई, दोनों ही पाण्डे थे (आठ अप्रेल को मंगल पाण्डेय, इक्कीस अप्रैल को ईश्वरी पाण्डे)। तभी से विद्रोहियों के लिए पाण्डे कहा जाने लगा। चार्ल्स बॉल ने लिखा है, ‘द नेम पाण्डे हैज बिकम अ रिकाग्नाइज्ड डिस्टिंक्शन फॉर दी रेबेलियस सिपॉय्ज थ्रूआउट इंडिया।’ सन सत्तावन के महासमर पर न जाने कितनी पुस्तकें लिखी गयीं, कितने लेख लिखे गए, न जाने कितनी चर्चा-परिचर्चा हुई, (हालाँकि उनकी वर्तनी और उच्चारण में एकरूपता नहीं है), हर जगह पाण्डे ही नज़र आएंगे। अंग्रेजी मेम को हमेशा यही डर सताता ‘कहीं पाण्डे लोग न आ जाएं’। अंग्रेज सैनिक/अधिकारी परेशां हो, सोचते थे, ‘न जाने पाण्डे लोग क्या कर बैठें?’

विनायक दामोदर सावरकर पहले थे, जिन्होंने 1909 में लन्दन से प्रकाशित अपनी ‘फर्स्ट वॉर ऑफ़ इंडिपेंडेंस’ कृति में मंगल पाण्डेय को हुतात्मा अर्थात् अमर बलिदानी (शहीद) का दर्जा दिया। 'हिस्ट्री ऑफ़ सेपॉय वार' में इतिहासकार जे. डब्ल्यू. के (Kaye) मंगल पाण्डे को फ्युगलमैन (अगुआ) बताते हैं।

बैरकपुर में चली गोली से उठे और 1857-58 में बृहत्तर भारत में फ़ैल जाने वाले विद्रोह में भाग लेने वाले विद्रोहियों के प्रेरणास्रोत थे मंगल। मंगल पाण्डे उनके अगुआ थे। वही थे पहले विद्रोही। पहले पाण्डे। 

प्रसिद्ध नारायण सिंह ने मंगल पाण्डेय पर अपनी ‘विद्रोह’ कविता में यूँ ही नहीं कहा:
मचि गइल रारि, पड़ि गइल स्याह, गोरन के गालन के लाली
जब बलिया के बाँका शूर चलल, पहिला बाग़ी मशहूर चलल।
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एक बात और, क्या आप जानते हैं कि आमतौर पर प्रयोग में आने वाला मंगल पाण्डेय का चित्र आर्टिस्ट इम्प्रैशन (कलाकार की कल्पना) है, यह तस्वीर गाथाओं में वर्णित महानायक के गौरव और शौर्य का कूंची द्वारा रूपांतरण है। संलग्न पोस्ट कार्ड 5 अक्टूबर 1984 का है, मंगल पाण्डेय के नाम से जारी डाक-टिकट के प्रथम अवतरण का दिन।
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भारतीय स्वातंत्र्य समर के उन्हीं पहले सिपाही हुतात्मा मंगल पाण्डेय का आज बलिदान दिवस है, तो आइए उन्हें याद करें।
प्रण लें, कि अन्याय होता देख हम चुप न रहें, उठें, आवाज़ उठाएँ, मंगल पाण्डेय बनें, विद्रोह का बिगुल बजाएँ।

मंगल पांडे बनो, आज फ़िर देशभक्ति का दुर्गम पथ लो,
महापर्व के पुण्यस्मरण पर मर मिटने की उठो शपथ लो ...


बलिया जिला प्रशासन की लोगो से अपील

कोरोना के प्रति जागरूक करता भोजपुरी गीत




यह हिंदी गाना भी आपको कोरोना के सम्बंध में बता रहा है



डॉ विश्राम यादव वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी अपनी कविता का पाठ करते हुए










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