बड़ा सवाल :यूपी में क्यों अर्श से फर्श की तरफ जा रही है अनुदानित महाविद्यालयों के स्ववित्तपोषित शिक्षको की जिंदगी---डॉ घनश्याम दुबे
बड़ा सवाल :यूपी में क्यों अर्श से फर्श की तरफ जा रही है अनुदानित महाविद्यालयों के स्ववित्तपोषित शिक्षको की जिंदगी---डॉ घनश्याम दुबे
बलिया 25 अप्रैल 2020 ।। बलिया एक्सप्रेस ने यूपी में बद से बदत्तर होती जा रही अनुदानित स्व वित्तपोषित शिक्षकों की जिंदगियों के लिये क्या कारण जिम्मेदार है ? आखिर क्यों उच्च शिक्षित वर्ग दिहाड़ी मजदूरों से भी खराब हालत में जी रहा है, जो दूसरों की जिंदगी को उज्ज्वल बनाने की जी जान से कोशिश तो कर रहा है लेकिन सरकार की उपेक्षित नीतियों के चलते जो अपने जीवन मे बढ़ रहे अभाव के अंधकार को दूर नही कर पा रहे है , ऐसे अनुदानित स्ववित्तपोषित शिक्षकों की आवाज को उठाने के लिये बलिया एक्सप्रेस ने छोटी कोशिश की है ।
बलिया एक्सप्रेस के उपसम्पादक डॉ सुनील कुमार ओझा ने डी0सी0एस0के0 पी0 जी0 कालेज मऊ के प्राध्यापक एवं अनुदानित महाविद्यालय के स्ववित्तपोषित शिक्षक के जिला महामंत्री डॉ घनश्याम दुबे से दूरभाष पर शिक्षको की दुर्दशा पर टेलीफोनिक वार्ता की । डॉ धनश्याम दुबे ने कहा कि
आदि गुरु शंकराचार्य जी ने कहा था "सा विद्या विमुक्तये " अर्थात जो विद्या मुक्ति दिलाए वही सच्ची विद्या है और आज की विद्या जड़ता दिलाती है । देश आजाद हुआ, शिक्षा की दशा और दिशा जानने के लिए , प्रो दौलत राम कोठारी कमीशन बैठा । अपनी पड़ताल में उन्होंने जो पाया वह बड़ा भयावह था ,लिखा --भारत के भाग्य का निर्माण उसकी कक्षाओं में हो रहा है ,और कक्षाओं की जो आज स्थित है बड़ी सोचनीय है । 1997 में जब मुख्यमंत्री श्री राजनाथ ने शिक्षा को सेल्फ फाइनेन्स स्किम के तहत , बाजार के हवाले करना शुरू किया तो किसी को इल्म ही नही रहा कि जो भारतीय जनता पार्टी मूल्यों की राजनीति करती है , संस्कार और संस्कृति की सबसे बड़ी पैरोकार है वह ये कृत्य करेगी ।अफसोस इस बात का है अरसा बिता यूथ इस तरफ आकर्षित हुआ । कुछ शिक्षक पढ़ाने के लिए ,कुछ छात्र पढ़ने के लिए निकले जब वह इस व्यवस्था से जुड़ कर आगे आये तो शोषण का ऐसा अंतहीन सिलसिला शुरू हुआ जिसका न भूत ठीक था, न भविष्य ठीक दिख रहा है, वर्तमान की तो पूछना ही नही । 9 मई 1999 के शासनादेश में था कि सेल्फ फाइनेन्स स्किम के अंतर्गत जो फीस आएगी , उसके शिक्षण शुल्क से शिक्षकों को वेतन दिया जाएगा सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती महँगाई में शिक्षकों के जीवन यापन के लाले पड़ गए तो सेल्फ फाइनेन्स स्किम को सरकार ने संशोधित किया । कहा कि ऐसे पाठ्यक्रम की सकल आमदनी का 20%कालेज अपने विकास के लिए खर्च करेगा और 80% शिक्षकों को वेतन दिया जाएगा ,लेकिन ये सभी कागज पर ही रह गया। सरकार कभी धरातल पर न इसकी जांच पड़ताल की , न इसका पुरसा हाल जाना । विवश होकर लखनऊ खण्डपीठ में एक याचिका अनुदानित कालेज में स्ववित्तपोषित शिक्षको के द्वारा दायर हुई । विद्वान न्यायाधीश डीपी सिंह ने सरकार से आखिरकार पूछ ही लिया कि ,गुरुओं की ये दुर्दशा है ,इनको आप वेतन कब दे रहे है। सरकारी काउंसलर ने कहा, सरकार के पास बजट नही है , हम कहाँ से देगे , तब बेंच नेे उन्हें डांटते हुए कहा कि ऐसे शिक्षा नही चलेगी । सरकार के पास अन्य विभाग के लिए बजट है , शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषय के लिए बजट नही, ये नही चलेगा इनको न्यूनतम वेतन दीजिए । इस आदेश के महीनों बाद पालन न होने की दशा में अवमानना वाद माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में दाखिल हुआ जिसमें सरकार हार गयी । फिर अखिलेश सिंह यादव की सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गयी ,वह वहाँ भी हार गई ।डॉ नीरज श्रीवास्तव के अवमानना वाद में 22 फरवरी 2020 को माननीय न्यायाधीश श्री अजय भनोट के आदेश के विपरीत जाकर बी0 जे0 पी0 की वर्तमान सरकार ने फिर 80% का शपथपत्र लगाया है । इधर डॉ दिनेश शर्मा उच्च शिक्षामंत्री ने एक कमेटी बनाकर सकल आमदनी से घटाकर पुनः शिक्षण शुल्क और उसमें कर्मचारियों ( जबकि अनुदानित में चल रहे स्ववित्तपोषित में शिक्षक के अलावे कोई कर्मचारी रखने की कभी बात ही नही रही, न विज्ञापन, न कुछ और )को वेतन का नया शासनादेश 13 मार्च 2020 को लाये है ।इससे सरकार की नियति पर ही प्रश्नवाचक चिन्ह लग गया । सेल्फ फाइनेन्स स्किम के अन्तर्गत 331 एडेड डिग्री कालेज उत्तरप्रदेश में है । इस समय कुल लगभग 4000 शिक्षक इस व्यवस्था में कार्यरत है , जिनकी माली हालत बहुत ही खराब है , कई शिक्षक आत्म हत्या कर लिए , कुछ बीमारी से दवा के अभाव में असमय काल के गाल में चले गए जो बचें है वो रोज कालेज प्रशासन की धमकियों से त्रस्त है ,कि कब निकाल दिए जाएंगे । कंगाली में आटा गिला कोरोना वायरस ने कर दिया लोग भूखों मरने पर विवश है । दुर्भाग्य से ये अपनी पीड़ा किसी से कह नही सकते क्योकि ये उच्च शिक्षित गुरुजी जो ठहरे। अपने छात्रों के जीवन मे प्रकाश और समाज को रोशनी देने वाले के जीवन मे आज निराशा की घोर अमावस की घुप काली रात है। किसी की माँ बीमार है , किसी की बच्ची की शादी पड़ी है , उसके हाथ पीले करने के बजाय आज गुरु जी खुद पीले हो गए है। सरकार सेल्फ फाइनेन्स शिक्षा के क्षेत्र में स्किम लाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली है। न कोई आडिट ,न सुनवाई , कालेज प्रशासन , संचालक , प्रचार्य, धृतराष्ट्र की तरह लक्ष्मी मोह में अंधे हुए है। ऐसे में शिक्षक द्रोपदी की तरह अपने सम्मानों के चिर हरण को होते देखने के लिए विवस है। सारे जिम्मेदार लोग यथा मुख्यमंत्री, शिक्षामंत्री, डायरेक्टर हायर एजुकेशन, क्षेत्रीय, कुलपति, कुल सचिव , सभी पितामहः भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य की भूमिकाओं में है । एक बार सङ्गठन के कुछ नेता काशी नगरी में तब के प्रदेश अध्यक्ष बीजेपी ,श्री लक्ष्मी कांत बाजपेयी से अपनी बात रखे थे तो उन्होंने कहा कि जब इतनी दिक्कत है तो इस स्किम में आये क्यों छोड़ दे ,ये जिम्मेदार लोगों के बोल है । आज शिक्षा की अधोगति के लिए लार्ड मैकाले के बाद बीजेपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री राजनाथ सिंह , और शिक्षा मंत्री के रूप में श्री ओमप्रकाश सिंह जिम्मेदार है । कभी चाणक्य ने कहा था कि शिक्षक कभी कमजोर नही होता, निर्माण और प्रलय उसकी गोद मे पलते है इतिहास साक्षी है, जब जब गुरुओं व उसके परिवार पर संकट आया है ,एक महाभारत की पृष्ठभूमि तैयार हुई है , जैसे गुरु द्रोणाचार्य।
बलिया जिला प्रशासन की लोगो से अपील
कोरोना के प्रति जागरूक करता भोजपुरी गीत
बलिया 25 अप्रैल 2020 ।। बलिया एक्सप्रेस ने यूपी में बद से बदत्तर होती जा रही अनुदानित स्व वित्तपोषित शिक्षकों की जिंदगियों के लिये क्या कारण जिम्मेदार है ? आखिर क्यों उच्च शिक्षित वर्ग दिहाड़ी मजदूरों से भी खराब हालत में जी रहा है, जो दूसरों की जिंदगी को उज्ज्वल बनाने की जी जान से कोशिश तो कर रहा है लेकिन सरकार की उपेक्षित नीतियों के चलते जो अपने जीवन मे बढ़ रहे अभाव के अंधकार को दूर नही कर पा रहे है , ऐसे अनुदानित स्ववित्तपोषित शिक्षकों की आवाज को उठाने के लिये बलिया एक्सप्रेस ने छोटी कोशिश की है ।
बलिया एक्सप्रेस के उपसम्पादक डॉ सुनील कुमार ओझा ने डी0सी0एस0के0 पी0 जी0 कालेज मऊ के प्राध्यापक एवं अनुदानित महाविद्यालय के स्ववित्तपोषित शिक्षक के जिला महामंत्री डॉ घनश्याम दुबे से दूरभाष पर शिक्षको की दुर्दशा पर टेलीफोनिक वार्ता की । डॉ धनश्याम दुबे ने कहा कि
आदि गुरु शंकराचार्य जी ने कहा था "सा विद्या विमुक्तये " अर्थात जो विद्या मुक्ति दिलाए वही सच्ची विद्या है और आज की विद्या जड़ता दिलाती है । देश आजाद हुआ, शिक्षा की दशा और दिशा जानने के लिए , प्रो दौलत राम कोठारी कमीशन बैठा । अपनी पड़ताल में उन्होंने जो पाया वह बड़ा भयावह था ,लिखा --भारत के भाग्य का निर्माण उसकी कक्षाओं में हो रहा है ,और कक्षाओं की जो आज स्थित है बड़ी सोचनीय है । 1997 में जब मुख्यमंत्री श्री राजनाथ ने शिक्षा को सेल्फ फाइनेन्स स्किम के तहत , बाजार के हवाले करना शुरू किया तो किसी को इल्म ही नही रहा कि जो भारतीय जनता पार्टी मूल्यों की राजनीति करती है , संस्कार और संस्कृति की सबसे बड़ी पैरोकार है वह ये कृत्य करेगी ।अफसोस इस बात का है अरसा बिता यूथ इस तरफ आकर्षित हुआ । कुछ शिक्षक पढ़ाने के लिए ,कुछ छात्र पढ़ने के लिए निकले जब वह इस व्यवस्था से जुड़ कर आगे आये तो शोषण का ऐसा अंतहीन सिलसिला शुरू हुआ जिसका न भूत ठीक था, न भविष्य ठीक दिख रहा है, वर्तमान की तो पूछना ही नही । 9 मई 1999 के शासनादेश में था कि सेल्फ फाइनेन्स स्किम के अंतर्गत जो फीस आएगी , उसके शिक्षण शुल्क से शिक्षकों को वेतन दिया जाएगा सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती महँगाई में शिक्षकों के जीवन यापन के लाले पड़ गए तो सेल्फ फाइनेन्स स्किम को सरकार ने संशोधित किया । कहा कि ऐसे पाठ्यक्रम की सकल आमदनी का 20%कालेज अपने विकास के लिए खर्च करेगा और 80% शिक्षकों को वेतन दिया जाएगा ,लेकिन ये सभी कागज पर ही रह गया। सरकार कभी धरातल पर न इसकी जांच पड़ताल की , न इसका पुरसा हाल जाना । विवश होकर लखनऊ खण्डपीठ में एक याचिका अनुदानित कालेज में स्ववित्तपोषित शिक्षको के द्वारा दायर हुई । विद्वान न्यायाधीश डीपी सिंह ने सरकार से आखिरकार पूछ ही लिया कि ,गुरुओं की ये दुर्दशा है ,इनको आप वेतन कब दे रहे है। सरकारी काउंसलर ने कहा, सरकार के पास बजट नही है , हम कहाँ से देगे , तब बेंच नेे उन्हें डांटते हुए कहा कि ऐसे शिक्षा नही चलेगी । सरकार के पास अन्य विभाग के लिए बजट है , शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषय के लिए बजट नही, ये नही चलेगा इनको न्यूनतम वेतन दीजिए । इस आदेश के महीनों बाद पालन न होने की दशा में अवमानना वाद माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में दाखिल हुआ जिसमें सरकार हार गयी । फिर अखिलेश सिंह यादव की सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गयी ,वह वहाँ भी हार गई ।डॉ नीरज श्रीवास्तव के अवमानना वाद में 22 फरवरी 2020 को माननीय न्यायाधीश श्री अजय भनोट के आदेश के विपरीत जाकर बी0 जे0 पी0 की वर्तमान सरकार ने फिर 80% का शपथपत्र लगाया है । इधर डॉ दिनेश शर्मा उच्च शिक्षामंत्री ने एक कमेटी बनाकर सकल आमदनी से घटाकर पुनः शिक्षण शुल्क और उसमें कर्मचारियों ( जबकि अनुदानित में चल रहे स्ववित्तपोषित में शिक्षक के अलावे कोई कर्मचारी रखने की कभी बात ही नही रही, न विज्ञापन, न कुछ और )को वेतन का नया शासनादेश 13 मार्च 2020 को लाये है ।इससे सरकार की नियति पर ही प्रश्नवाचक चिन्ह लग गया । सेल्फ फाइनेन्स स्किम के अन्तर्गत 331 एडेड डिग्री कालेज उत्तरप्रदेश में है । इस समय कुल लगभग 4000 शिक्षक इस व्यवस्था में कार्यरत है , जिनकी माली हालत बहुत ही खराब है , कई शिक्षक आत्म हत्या कर लिए , कुछ बीमारी से दवा के अभाव में असमय काल के गाल में चले गए जो बचें है वो रोज कालेज प्रशासन की धमकियों से त्रस्त है ,कि कब निकाल दिए जाएंगे । कंगाली में आटा गिला कोरोना वायरस ने कर दिया लोग भूखों मरने पर विवश है । दुर्भाग्य से ये अपनी पीड़ा किसी से कह नही सकते क्योकि ये उच्च शिक्षित गुरुजी जो ठहरे। अपने छात्रों के जीवन मे प्रकाश और समाज को रोशनी देने वाले के जीवन मे आज निराशा की घोर अमावस की घुप काली रात है। किसी की माँ बीमार है , किसी की बच्ची की शादी पड़ी है , उसके हाथ पीले करने के बजाय आज गुरु जी खुद पीले हो गए है। सरकार सेल्फ फाइनेन्स शिक्षा के क्षेत्र में स्किम लाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली है। न कोई आडिट ,न सुनवाई , कालेज प्रशासन , संचालक , प्रचार्य, धृतराष्ट्र की तरह लक्ष्मी मोह में अंधे हुए है। ऐसे में शिक्षक द्रोपदी की तरह अपने सम्मानों के चिर हरण को होते देखने के लिए विवस है। सारे जिम्मेदार लोग यथा मुख्यमंत्री, शिक्षामंत्री, डायरेक्टर हायर एजुकेशन, क्षेत्रीय, कुलपति, कुल सचिव , सभी पितामहः भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य की भूमिकाओं में है । एक बार सङ्गठन के कुछ नेता काशी नगरी में तब के प्रदेश अध्यक्ष बीजेपी ,श्री लक्ष्मी कांत बाजपेयी से अपनी बात रखे थे तो उन्होंने कहा कि जब इतनी दिक्कत है तो इस स्किम में आये क्यों छोड़ दे ,ये जिम्मेदार लोगों के बोल है । आज शिक्षा की अधोगति के लिए लार्ड मैकाले के बाद बीजेपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री राजनाथ सिंह , और शिक्षा मंत्री के रूप में श्री ओमप्रकाश सिंह जिम्मेदार है । कभी चाणक्य ने कहा था कि शिक्षक कभी कमजोर नही होता, निर्माण और प्रलय उसकी गोद मे पलते है इतिहास साक्षी है, जब जब गुरुओं व उसके परिवार पर संकट आया है ,एक महाभारत की पृष्ठभूमि तैयार हुई है , जैसे गुरु द्रोणाचार्य।
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कोरोना के प्रति जागरूक करता भोजपुरी गीत
यह हिंदी गाना भी आपको कोरोना के सम्बंध में बता रहा है
डॉ विश्राम यादव वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी अपनी कविता का पाठ करते हुए
एक अपील
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