देश के प्रथम राष्ट्रपति की प्रतिमा को पत्नी संग 25 वर्षों से अनावरण का है इंतजार-कब तक बंधनमुक्त प्रतिमा को करेगी दिल्ली व प्रदेश की सरकारें,जनता कर रही है सवाल ?
देश के प्रथम राष्ट्रपति की प्रतिमा को पत्नी संग 25 वर्षों से अनावरण का है इंतजार-कब तक बंधनमुक्त प्रतिमा को करेगी दिल्ली व प्रदेश की सरकारें,जनता कर रही है सवाल ?
मधुसूदन सिंह
मधुसूदन सिंह
बलिया 12 मई 2020 ।। देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद की धर्मपत्नी राजमाता राजवंशी देवी की 58 वी पुण्यतिथि 12 मई मंगलवार को उनके विद्यालय अपराजिता सरस्वती राजवंशी देवी बालिका जूनियर हाई स्कूल रामपुर के प्रांगण में लॉक डाउन की नियमों को अंतर्गत मनाया गया ।इसमें उनके चित्र पर माल्यार्पण कर स्मरण किया गया ।वक्ताओं ने कहा है कि राजमाता राजवंशी देवी इस भूमि से अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ नौजवानों को संगठित कर उनके भीतर राष्ट्रीय चेतना जागृति कर देश के लिए मर मिटने का शंखनाद फूंकी थी और भारत माता को आजाद करने तक संघर्षरत रही थी । वक्ताओं ने यह भी कहा है पूर्व राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद तथा उनकी धर्मपत्नी राजमाता राजवंशी देवी मूर्ति का स्थापना आज से लगभग 25 वर्ष पूर्व किया गया था । तत्कालीन प्रधान सर्वदेव प्रसाद उर्फ चुन्नू जी ने प्रतिमा की स्थापना की थी । पर राजनीति में आये जातिवाद और चारित्रिक क्षरण के चलते पिछले 25 सालों से देश के किसी भी पार्टी के बड़े नेता के पास इतनी फुर्सत नही है कि देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद व इनकी धर्मपत्नी राजमाता राजवंशी देवी की प्रतिमा को बंधनमुक्त करके अनावरित कर दे । जबकि मूर्ति को स्थापित करने वाले चुन्नू लाल अपने जीवन काल मे इसको अनावरित कराने के लिये तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी तक से विनती कर के सहमति ले भी लिये थे लेकिन प्रदेश की तत्कालीन सरकार के नौकरशाहों द्वारा अनापत्ति प्रमाण पत्र व अन्य आवश्यक जानकारियों को, जिसको राष्ट्रपति भवन से मांगी गई थी, भेजी ही नही । जिसके चलते राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का कार्यक्रम नही लग पाया । इस अवसर पर विद्यालय के प्रधानाचार्य अभिषेक कुमार श्रीवास्तव सहायक अध्यापक चंद्रभान उमेश पांडेय सुशील राजाराम राज किशोर सिंह महावीर यादव राजदेव राम मौजूद रहे कार्यक्रम की अध्यक्षता शिक्षक रजनीश कुमार श्रीवास्तव का संचालन लिपिक सुजान राहुल श्रीवास्तव ने किया ।
राजमाता राजवंशी देवी और डॉ राजेन्द्र प्रसाद की प्रतिमा मानो आज कह रही है --
भाई, छेड़ो नहीं, मुझे
खुलकर रोने दो।
यह पत्थर का हृदय
आँसुओं से धोने दो।
रहो प्रेम से तुम्हीं
मौज से मजुं महल में,
मुझे दुखों की इसी
झोपड़ी में सोने दो।
खुलकर रोने दो।
यह पत्थर का हृदय
आँसुओं से धोने दो।
रहो प्रेम से तुम्हीं
मौज से मजुं महल में,
मुझे दुखों की इसी
झोपड़ी में सोने दो।
(माखन लाल चतुर्वेदी )