सनबीम स्कूल बलिया के छात्रों ने अनूठे अन्दाज में मनाया मातृ दिवस : माँ का कोइ दिन नहीं होता साहेब... इनकी तो सदियाँ होती है...
सनबीम स्कूल बलिया के छात्रों ने अनूठे अन्दाज में मनाया मातृ दिवस :
माँ का कोइ दिन नहीं होता साहेब...
इनकी तो सदियाँ होती है...
बलिया 10 मई 2020 ।। हालांकि दुनिया में हर चीज के लिए कोई ना कोई दिन मुकर्रर है उसी क्रम में मातृ दिवस के लिए भी यह दिन निर्धारित किया गया है। माँ तो अपने आप में पूरी दुनिया है। यह एक शब्द माँ जिसमें सम्पूर्ण जगत ही समाहित है उसके लिए कोई एक दिन निर्धारित नहीं किया जा सकता है।
मातृ दिवस के अवसर पर सनबीम स्कूल बलिया के इन नन्हे मुन्ने बच्चों ने अपने अपने अनूठे अन्दाज से अपनी जननी को गौरवान्वित करने का एक छोटा सा प्रयास किया है। कुछ छात्रों ने स्वंय निर्मित कार्ड के माध्यम से अपनी भावनाओं को कागज पर उकेरा है , तो कुछ ने सुन्दर सी कविता के माध्यम से अपने मन की भावना अपनी माँ तक पहुंचाने की कोशिश की है। वहीं कुछ बच्चों ने अपने नन्हे हाथों से माँ की पसंद का व्यंजन बनाकर उन्हें स्पेशल महसूस कराने का प्रयास किया है। किसी ने माँ को अपनी शक्ति का प्रतिक माना है, तो कुछ ने माँ को अपने सपनों को हकीकत का आधार माना है।
चलती फिरती हुई आंखों में अजाँ देखी है।
हमने जन्नत तो नहीं देखी माँ देखी है।
बलिया एक्सप्रेस के उप संपादक डॉ सुनील कुमार ओझा ने कुछ इस तरह मां को नमन किया
मातृत्व दिवस के शुभ अवसर पर
स्पर्श
~~~~~~~~~
सुना था माँ का स्वर, सुषुप्ता में,
आहट देकर, जिसनें हमें जगाया।
अब भूल गए, खोकर बडप्पन में,
निधियां छोड़, निन्दा गले लगाया।।
जिसका रहा गर्व यहां, सदियों से,
उस भाषा से जब समाज शर्माया।
फिर उत्कंठित किस मुख से अब,
तड़पते, गरजते, लोग ये भरमाया।।
घर फूंक, तमाशा देखने वालों के,
हाथ कुछ, लगते नहीं, कभी कहीं।
जगा लो जगती, आत्मा ये अपनी,
बरना, कोसेगी पीढ़ियां, यहीं कहीं।।
मातृत्व मिला, हिन्दी से, हिन्दू को,
हिन्दुस्तान खड़ा है, इसको सहेज।
आततायी आये और चले गये पर,
मिला उन्हें जीवन, जब रहे सहेज।।
बावरा 'स्वार्थी', तुझसे उत्तम नहीं,
सर्वोत्तम, गुणों की खान है अन्दर।
पहचान लो, अब भी, स्वयं को ही,
रुप तेरा, अच्छा नहीं, जैसा बन्दर।।
उपसंपादक (बलिया एक्सप्रेस )साप्ताहिक खबर °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
डॉ सुनील कुमार ओझा (स्वार्थी)
प्राध्यापक-अमर नाथ मिश्र पी0 जी0 कालेज दुबेछपरा, बलिया(उ0प्र0)
माँ का कोइ दिन नहीं होता साहेब...
इनकी तो सदियाँ होती है...
बलिया 10 मई 2020 ।। हालांकि दुनिया में हर चीज के लिए कोई ना कोई दिन मुकर्रर है उसी क्रम में मातृ दिवस के लिए भी यह दिन निर्धारित किया गया है। माँ तो अपने आप में पूरी दुनिया है। यह एक शब्द माँ जिसमें सम्पूर्ण जगत ही समाहित है उसके लिए कोई एक दिन निर्धारित नहीं किया जा सकता है।
मातृ दिवस के अवसर पर सनबीम स्कूल बलिया के इन नन्हे मुन्ने बच्चों ने अपने अपने अनूठे अन्दाज से अपनी जननी को गौरवान्वित करने का एक छोटा सा प्रयास किया है। कुछ छात्रों ने स्वंय निर्मित कार्ड के माध्यम से अपनी भावनाओं को कागज पर उकेरा है , तो कुछ ने सुन्दर सी कविता के माध्यम से अपने मन की भावना अपनी माँ तक पहुंचाने की कोशिश की है। वहीं कुछ बच्चों ने अपने नन्हे हाथों से माँ की पसंद का व्यंजन बनाकर उन्हें स्पेशल महसूस कराने का प्रयास किया है। किसी ने माँ को अपनी शक्ति का प्रतिक माना है, तो कुछ ने माँ को अपने सपनों को हकीकत का आधार माना है।
चलती फिरती हुई आंखों में अजाँ देखी है।
हमने जन्नत तो नहीं देखी माँ देखी है।
बलिया एक्सप्रेस के उप संपादक डॉ सुनील कुमार ओझा ने कुछ इस तरह मां को नमन किया
मातृत्व दिवस के शुभ अवसर पर
स्पर्श
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सुना था माँ का स्वर, सुषुप्ता में,
आहट देकर, जिसनें हमें जगाया।
अब भूल गए, खोकर बडप्पन में,
निधियां छोड़, निन्दा गले लगाया।।
जिसका रहा गर्व यहां, सदियों से,
उस भाषा से जब समाज शर्माया।
फिर उत्कंठित किस मुख से अब,
तड़पते, गरजते, लोग ये भरमाया।।
घर फूंक, तमाशा देखने वालों के,
हाथ कुछ, लगते नहीं, कभी कहीं।
जगा लो जगती, आत्मा ये अपनी,
बरना, कोसेगी पीढ़ियां, यहीं कहीं।।
मातृत्व मिला, हिन्दी से, हिन्दू को,
हिन्दुस्तान खड़ा है, इसको सहेज।
आततायी आये और चले गये पर,
मिला उन्हें जीवन, जब रहे सहेज।।
बावरा 'स्वार्थी', तुझसे उत्तम नहीं,
सर्वोत्तम, गुणों की खान है अन्दर।
पहचान लो, अब भी, स्वयं को ही,
रुप तेरा, अच्छा नहीं, जैसा बन्दर।।
उपसंपादक (बलिया एक्सप्रेस )साप्ताहिक खबर °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
डॉ सुनील कुमार ओझा (स्वार्थी)
प्राध्यापक-अमर नाथ मिश्र पी0 जी0 कालेज दुबेछपरा, बलिया(उ0प्र0)