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रचनात्मक प्रतिभाओं ने निकाली जीवन जीने की राह : वैश्विक आपदा के समय भी उनकी जिजीविषा सराहनीय



 


 डॉ भगवान प्रसाद उपाध्याय 
प्रयागराज ।। रचना धर्मियों  के जीवंत शहर और संस्कृति कर्मियों का उत्प्रेरक महानगर ज्ञान वैराग्य और कर्म की त्रिवेणी प्रयागराज में कवियों साहित्यकारों लेखकों और पत्रकारों ने जीवन जीने की नई शैली अपनाकर यह सिद्ध कर दिया की जीवन जीने की कला संकट काल में भी कोई इनसे सीखे.
     एक ओर जहां विधर्मियों और मानवता विरोधी  दुर्जनों की ओर से विषाणु फैलाकर लोगों को संक्रमित करने के लिए थूकने और भीड़ इकट्ठा करने की कुंठित मानसिकता काम कर रही थी वहीं पर सामाजिक संरचना में स्वयं को समर्पित करने वालों ने न केवल जीवन जीने की  नई  राह निकाली बल्कि महामारी की आपदा से ग्रस्त लोगों को हौसला भी दिया और हर संभव मदद करके उनके लिए आदर्श उदाहरण बने  .   प्रयागराज महानगर की अनेक साहित्यिक संस्थाओं और साहित्य  संस्कृति और कलात्मक गतिविधियों को बढ़ावा देने वाली  मूर्धन्य प्रतिभाओं ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी अलबत्ता इसमें उनकी सहायता के लिए वर्तमान में संचार क्रांति ने बहुत ही साथ दिया  .  ढाई महीने का समय कितनी आसानी से बीत गया यह रचना  धर्मियों  को पता ही नहीं चला किसी ने सैकड़ों सम्मान और पुरस्कार दे डाले तो किसी ने अपनी आधी अधूरी पुस्तकें लिख डाली किसी ने समाज सेवा का कीर्तिमान बना लिया तो किसी ने उन्मुक्त भाव से इस महामारी में भी हजारों हजार लोगों को निस्वार्थ भाव से भोजन और अन्य सामग्री देकर पुण्य लाभ लिया प्रयागराज को यूं ही तीर्थराज नहीं कहा जाता यहां सम्राट हर्षवर्धन अपना सर्वस्व निछावर कर देते थे मानस की चौपाई इन ढाई महीनों में पूरी तरह चरितार्थ हुई --

भाव    कुभाव  अनख  आलसहूं 
 मंगल नाम जपत  दिशि  दसहूं

जो जिस भाव से प्रेरित था जिस भाव से ग्रसित था उसी भाव से उसने समाज को वह सब कुछ परोसा जो उसके पास था किसी ने महामारी फैलाई तो किसी ने इस पर अंकुश लगाने के लिए अनेक प्रयत्न किए और सफलता भी पाई अब जबकि जीवनशैली नई दिशा की ओर बढ़ने लगी है लोग अपने बीते हुए पल से बहुत कुछ सीख भी ले रहे हैं न केवल दैनिक दिनचर्या में परिवर्तन बल्कि अपनी कार्यशैली में भी आमूलचूल परिवर्तन करने का संकल्प लोगों ने लिया भौतिक जगत में पूरी तरह स्वयं को रंग देने वालों ने भी अपने आप को बदलने की कोशिश की समाज के प्रत्येक वर्ग के लोगों ने इस महामारी को अपने अपने ढंग से लिया और इसकी गंभीर चुनौती स्वीकार की ।
     जिन   देवालयों में तालाबंदी रही वहां सामाजिक सेवा के नए मानदंड स्थापित किए गए और जिन संस्थानों ने अपनी तथाकथित धर्म भीरुता के चलते भीड़ एकत्र करने से भी गुरेज नहीं किया उन्होंने महामारी के विस्तार में सहयोग करके देश को आपदा की ओर धकेलने की नाकाम कोशिश की लेकिन आम जनमानस को जो इससे संघर्ष के लिए तैयार था उसकी मन: स्थिति पर बार-बार चोट भी की गई यहां तक कि सत्तासीन दलों और न्याय प्रक्रिया ने भी कमोवेश समाज विरोधी तत्वों का ही ज्यादा साथ देने का उदाहरण प्रस्तुत किया जो लोगो वैश्विक आपदा से दो हाथ करने को तैयार थे और तैयार हैं आज भी अपने कर्तव्य से मुंह नहीं मोड़ रहे हैं बल्कि इसे एक नए दृष्टिकोण से देख रहे हैं ।

उनके इस पावन संकल्प में सोने में सुहागा वाला काम कर रही वे संस्थाएं जो लोगों को प्रोत्साहन सम्मान और पुरस्कृत कर रही हैं एक और जहां ऑनलाइन आयोजनों और प्रतियोगिताओं ने एक नई संस्कृति को जन्म दिया वही विभिन्न आयोजनों पर होने वाले हजारों लाखों रुपए की बचत का एक रास्ता भी खोल दिया कहना ना होगा कि आने वाले दिनों में ऑनलाइन आयोजनों की एक अटूट श्रृंखला चलेगी और इसमें मोबाइल क्रांति को पूरा श्रेया मिलेगा  जीवन जीने की नई राह दिखाने वालों की जिजीविषा बहुत ही सराहनीय और प्रशंसनीय है जिन्होंने दुख में भी सुख का अनुभव किया यही तो हमारी सांस्कृतिक विरासत है जिसने कभी हमें न तो टूटने दिया ना कभी झुकने दिया ।