कोरोना के नाम पर जिला प्रशासन की तानाशाही से 110 सालों की परंपरा टूटने की कगार पर
सांकेतिक चित्र
मधुसूदन सिंह
बलिया ।। जनपद के प्रमुख ऐतिहासिक व सांस्कृतिक आयोजनों में से एक महाबीरी झंडा जुलूस के 110 वर्षो के निर्बाध क्रम (1920 में आयी वैश्विक आपदा स्पेनिश फ्लू के बावजूद नही रुका था महाबीरी झंडा जुलूस) को जिला प्रशासन की तानाशाही रवैये और वर्तमान स्थानीय राजनैतिक नेताओ की जनपद के इस धरोहर के प्रति उपेक्षित वर्ताव के चलते इस वर्ष महाबीरी झंडा जुलूस को नही निकलने दिया जा रहा है । जबकि सबके सामने भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा का उदाहरण भी है । जब रथयात्रा सादगी व कम संख्या व कोविड19 के नियमो के अधीन निकल सकती है तो क्या बलिया का महाबीरी झंडा जुलूस सांकेतिक रूप से ध्वज लेकर सीमित संख्या में अखाड़ेदारो के साथ नही निकल सकता है ? वर्तमान में बलिया का जिला प्रशासन सिर्फ बन्द करना जानता है,समस्याओं के समाधान पर ध्यान देने से बचता है । कोविड के संक्रमण को रोकने के लिये भी जिला प्रशासन ने दुकान हाट बाजार सब बन्द करा दिया बावजूद बलिया में बेतहाशा कोरोनो संक्रमण को रोकने में कामयाबी मिली क्या ?
इसके पहले महाबीरी झंडा सत्ता पक्ष के नेताओ के लिये भी अहम होता था । राजनेता कैसे झंडा बेहतर तरीके से निकले इसके लिये प्रशासनिक अधिकारियों से संपर्क में रहकर अपने सुझाव देते थे पर इस वर्ष न जाने जनपद के नेताओ को अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिये मार्गदर्शन के लिये भी क्यो समय नही है,यह लोगो के समझ से परे है । कोविड19 के इस काल मे प्रभु श्रीराम के मंदिर निर्माण के लिये भूमिपूजन हो रहा है कि नही ? वैसे ही अगर बलिया के ऐतिहासिक व सांस्कृतिक परंपरा को कोरोना के नियमो व दिशा निर्देशों के तहत सांकेतिक रूप से ही निकलने दिया जाता तो बलिया में कौन सी बड़ी आफत आ जाती, हम बलिया वासियों को तो समझ मे नही आ रही है, यह समझ हमारे जिले के आला अधिकारियों को है , हो सकता है महाबीरी झंडा रोक देने से बलिया में कोरोना का संक्रमण रुक जाय ? बलिया की तीन सांस्कृतिक धरोहरें है -महाबीरी झंडा,बलिदान दिवस और ददरी मेला । वर्तमान जिला प्रशासन की कार्यशैली से साफ दिख रहा कि महाबीरी झंडा जुलूस को निकलने से रोकने तानाशाही कृत्य का आगाज है, 10 अगस्त से 19 अगस्त तक चलने बलिया बलिदान दिवस के कार्यक्रमो को रोक कर प्रशासन अपनी ताकत को अंजाम तक पहुंचाएगा ।
बलिया के सभी राजनेताओ को प्रशासन द्वारा सांस्कृतिक धरोहर के इतिहास को खंडित करने के प्रयास को मूकदर्शक बनकर देखने के लिये बलिया की जनता की दिल की गहराइयों से साधुवाद ।