पत्रकार सूचना को जनजन तक पहुंचाने का सशक्त माध्यम,इसकी सुरक्षा हो सर्वोपरि
बलिया ।। फेफना निवासी सहारा समय के पत्रकार रतन सिंह को मौत कई सवालों को खड़ा करती है । आज के भागमभाग माहौल में छोटी छोटी सूचनाओं को एकत्रित करने के लिये सुबह से लेकर रात तक भागने वाले पत्रकारों को आखिर में मिलता क्या है ? कितनी सुरक्षा है ? क्या संस्थान दुर्दिन में दिवंगत पत्रकारों के परिजनों को सहयोग के लिये आगे आता है ? फेफना के दिवंगत पत्रकार रतन सिंह की पत्नी को 2 लाख रुपये की सहायता देते हुए बसपा नेता व रसड़ा विधायक उमाशंकर सिंह ने बड़ी बात कही कि पत्रकार तो हम लोगो को देश दुनिया की खबरों से पल पल अपडेट करता है, रूबरू कराता है, ऐसे लोगो की हत्या तो दूर गलत निगाह से देखने वालों को भी ऐसी कठोर सजा देनी चाहिये कि भविष्य में कोई भी अपराधी किसी पत्रकार पर हमला करने से पहले सौ बार सोचे । बलिया के पुलिस अधीक्षक देवेन्द्र नाथ ने भी मीडिया कर्मियों को भरोसा दिलाया कि इस जघन्य हत्याकांड में जो कार्यवाही होगी वह भविष्य के लिये एक नजीर बनेगी, और पत्रकारों की सुरक्षा में मील का पत्थर साबित होगी ।
वही फायर ब्रांड बैरिया विधायक सुरेंद्र सिंह ने भी कहा कि अगर पुलिसकर्मियों के मरने पर आरोपियों के घर को गिराया जा सकता है तो लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के हत्यारों के मकानों को भी गिरा देना चाहिये।
यही मांग भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ ने भी की है । साथ ही राज्य सरकार से पत्रकारों की सुरक्षा के लिये महत्वपूर्ण कदम उठाने की भी पुरजोर मांग अपने पूरे प्रदेश के जिला इकाइयों के माध्यम से पत्रक भेजकर की है । सुबह से रात तक भागमभाग के बाद पत्रकारों को मिलता क्या है , यह किसी से छुपा नही है । ऐसे में अगर पत्रकारों को कार्य करने के लिये सुरक्षा भी न मिले तो लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कैसे खड़ा रह पाएगा, अगर यह इसी तरह लहूलुहान होता रहा तो जनता तक सच कैसे पहुंचेगा , यह बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है । सबसे बड़ा दुर्भाग्य पत्रकारों का यह है कि इनके मरने के बाद इनके संस्थान ,यह भी पूंछने की कोशिश नही करते है कि आप को किस चीज की तकलीफ है, न कोई सहायता देते है । हां, यह बड़े जोरशोर से पब्लिसिटी अपने ब्रांड का जरूर करते है कि हम ही सच के सारथी है, देखिये इस राह पर चलते हुए हमारा एक साथी शहीद हो गया है ।
बलिया के रतन सिंह हत्याकांड में यह देखने को जरूर मिला कि इस हत्याकांड को चाहे पक्ष हो या विपक्ष सबने भर्त्सना की और पीड़ित परिजनों के सहयोग में आगे आये । यह जरूर पीड़ा दायक रहा कि जिस संस्थान से रतन सिंह जुड़े थे ,वहां का कोई बड़ा अधिकारी आकर परिजनों को सहयोग नही दिया, सांत्वना के दो शब्द भी नही बोला । यह अलग बात है कि स्थानीय सहयोगियों ने प्रशासनिक कार्यवाही कराने में कोई कोर कसर नही छोड़ी ।
बलिया ।। फेफना निवासी सहारा समय के पत्रकार रतन सिंह को मौत कई सवालों को खड़ा करती है । आज के भागमभाग माहौल में छोटी छोटी सूचनाओं को एकत्रित करने के लिये सुबह से लेकर रात तक भागने वाले पत्रकारों को आखिर में मिलता क्या है ? कितनी सुरक्षा है ? क्या संस्थान दुर्दिन में दिवंगत पत्रकारों के परिजनों को सहयोग के लिये आगे आता है ? फेफना के दिवंगत पत्रकार रतन सिंह की पत्नी को 2 लाख रुपये की सहायता देते हुए बसपा नेता व रसड़ा विधायक उमाशंकर सिंह ने बड़ी बात कही कि पत्रकार तो हम लोगो को देश दुनिया की खबरों से पल पल अपडेट करता है, रूबरू कराता है, ऐसे लोगो की हत्या तो दूर गलत निगाह से देखने वालों को भी ऐसी कठोर सजा देनी चाहिये कि भविष्य में कोई भी अपराधी किसी पत्रकार पर हमला करने से पहले सौ बार सोचे । बलिया के पुलिस अधीक्षक देवेन्द्र नाथ ने भी मीडिया कर्मियों को भरोसा दिलाया कि इस जघन्य हत्याकांड में जो कार्यवाही होगी वह भविष्य के लिये एक नजीर बनेगी, और पत्रकारों की सुरक्षा में मील का पत्थर साबित होगी ।
वही फायर ब्रांड बैरिया विधायक सुरेंद्र सिंह ने भी कहा कि अगर पुलिसकर्मियों के मरने पर आरोपियों के घर को गिराया जा सकता है तो लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के हत्यारों के मकानों को भी गिरा देना चाहिये।
यही मांग भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ ने भी की है । साथ ही राज्य सरकार से पत्रकारों की सुरक्षा के लिये महत्वपूर्ण कदम उठाने की भी पुरजोर मांग अपने पूरे प्रदेश के जिला इकाइयों के माध्यम से पत्रक भेजकर की है । सुबह से रात तक भागमभाग के बाद पत्रकारों को मिलता क्या है , यह किसी से छुपा नही है । ऐसे में अगर पत्रकारों को कार्य करने के लिये सुरक्षा भी न मिले तो लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कैसे खड़ा रह पाएगा, अगर यह इसी तरह लहूलुहान होता रहा तो जनता तक सच कैसे पहुंचेगा , यह बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है । सबसे बड़ा दुर्भाग्य पत्रकारों का यह है कि इनके मरने के बाद इनके संस्थान ,यह भी पूंछने की कोशिश नही करते है कि आप को किस चीज की तकलीफ है, न कोई सहायता देते है । हां, यह बड़े जोरशोर से पब्लिसिटी अपने ब्रांड का जरूर करते है कि हम ही सच के सारथी है, देखिये इस राह पर चलते हुए हमारा एक साथी शहीद हो गया है ।
बलिया के रतन सिंह हत्याकांड में यह देखने को जरूर मिला कि इस हत्याकांड को चाहे पक्ष हो या विपक्ष सबने भर्त्सना की और पीड़ित परिजनों के सहयोग में आगे आये । यह जरूर पीड़ा दायक रहा कि जिस संस्थान से रतन सिंह जुड़े थे ,वहां का कोई बड़ा अधिकारी आकर परिजनों को सहयोग नही दिया, सांत्वना के दो शब्द भी नही बोला । यह अलग बात है कि स्थानीय सहयोगियों ने प्रशासनिक कार्यवाही कराने में कोई कोर कसर नही छोड़ी ।