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रोजगार डूब गए हैं और लोग हो रहे है आध्यात्मिक :रौशन सिंह "चंदन "



बलिया ।।  रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने गुरुवार (6 अगस्त, 2020) को कहा कि इस साल जीडीपी नेगेटिव टेरिटरी में रहेगी। मतलब देश के सकल घरेलू उत्पाद में बढ़ोत्तरी की बजाय कमी आएगी। शक्तिकांत दास ने यह नहीं बताया कि जीडीपी के कितना रहने का अनुमान है।
कुछ लोगों का मानना है कि जब रिज़र्व बैंक पॉलिसी के साथ जब अर्थव्यवस्था का हाल बताता है तो वो जीडीपी अनुमान का एक आंकड़ा भी सामने रखता है तो अब ऐसा क्यों नहीं होता।
                    इसी  मुद्दे पर बेरोजगार युवाओं और कुछ अंधभक्त मीडिया बन्धुओ पर तंज कसते हुए भारतीय एकता सद्भावना मिशन उत्तर प्रदेश के महासचिव रौशन सिंह "चंदन "ने कहा कि “कोरोना की तरह आर्थिक चिन्ताएं भी आंकड़ों की बाज़ीगरी में खो गई हैं। एक तरह से बहुत अच्छा है कि नौकरी, सैलरी, दुकानदारी चली जाने के बाद लोग संयमित हैं, ख़ुश हैं। आध्यात्मिक हैं, सब्र से हैं ,मार्ग तो यही है, नौकरी में होते हुए भी या नौकरी को खोते हुए भी।
श्री चंदन ने कहा कि आध्यात्म की तरफ़ प्रयाण ही मुक्ति का मार्ग है। यह सुखद है कि भारत इस ओर चल पड़ा है। अर्थ तंत्र ने मुक्त मन संसार को कुछ ज़्यादा ही अधिग्रहीत कर लिया था। शिक्षा, फ़ीस और परीक्षा जैसे सवाल उचित ही जर्जर होकर ख़त्म हो गए। इनका कुछ होता तो नहीं है, अनावश्यक एक की चिन्ता दूसरे तक फैल जाती है।

रोज़गार कारोबार तो वैसे ही बनते बिगड़ते रहे हैं। अब इन सबका कवरेज बंद होना चाहिए। पत्रकारिता को इन प्रश्नों से दूरी बनाने की ज़रूरी है। तुच्छता के तालाब से निकल कर आध्यात्म के महासागर की तरफ़ लोगों को जाते देखने की ज़रूरत है। नया भारत आ रहा है। आ चुका है। पत्रकारों को नए भारत के ग़ैर आर्थिक भावों को लिखने का अभ्यास करना होगा।

प्रदेश महासचिव रौशन सिंह चंदन ने कहा कि भारत के जो लोग बात बात पर पत्रकारिता की तरफ़ देखते हैं उन्हें भी बदलने की ज़रूरत है। वही तो बदले हैं। दो चार बच गए हैं। आख़िर इस दौर के लिए कितने संत-महात्माओं ने श्रम किया लेकिन अब जाकर लोग अपने को आर्थिक नाकामियों के पार जीवन के महत्व को देख पा रहे हैं। यही जीवन की श्रेष्ठता है।

            श्री चंदन ने कहा कि  भारत के कुछ पत्रकार अभी भी कोरोना से मरने वालों की संख्या 41,000 से अधिक बता कर महामारी की व्यापकता को रेखांकित करते हैं लेकिन वे नहीं देख पाते कि नए भारत में लोग इन बातों से परेशान नहीं होते।नए भारत को नए संकेतकों से समझने की ज़रूरत है। उम्मीद है पत्रकारिता नए भारत की आध्यात्मिक मन को रिपोर्ट करेगी। बेशक उसे इस बदलाव के लिए वक्त मिले जैसे उसे समाप्त होने के लिए मिला।”