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ढाई दशक से नही मनाती है कुशीनगर पुलिस कृष्ण जन्माष्टमी,जाने क्यों ?




ए कुमार
 कुशीनगर। कृष्ण जन्माष्टमी की  वह भयानक काली रात आज भी जनपद के पुलिस के जेहन मे गम और मनहूसियत के रात के रूप मे चस्पा है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का नाम आते ही ढाई दशक पूर्व घटित पचरुखिया काण्ड की याद ताजा हो जाती और उस घटना की कल्पना मात्र से ही यहा के पुलिसकर्मियों के रुह काप जाते है। उस खौफनाक मंजर को याद करके जिले के पुलिस प्रशासन का रुह कापे भी तो क्यो नही? क्योंकि आज ही के दिन आतंक के पर्याय बने जंगल दस्युओं से मुठभेड़ के दौरान दो इंस्पेक्टर सहित सात पुलिसकर्मी शहीद हो गये थे। यही वजह है कि विगत छब्बीस वर्षों से जनपद के सभी थानो सहित पुलिस लाइन मे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी नही मनाया जाता है।
बीओ गौरतलब है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म बंदीगृह (जेल) मे होने के कारण सूबे के समस्त थानो मे श्रीकृष्ण जन्मोत्सव बडी धूमधाम से मनाने की परंपरा बहुत पुरानी है। लेकिन  कुशीनगर जनपद के थानो के लिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी अभिशप्त मानी जाती है। विगत 26 वर्षो से जनपद के किसी थानो पर जन्माष्टमी नही मनायी गयी।

  वर्ष 1994 श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की थी वह रात

 वर्ष 1994 मे कुशीनगर जनपद, देवरिया जनपद से अलग होकर अस्तित्व मे आया था। नये जनपद के सृजन को लेकर आम जनमानस की तरह सरकारी महकमा और पुलिस प्रशासन भी उत्साहित और जश्न के माहौल मे था। बताया जाता है कि 23 अगस्त 1994 को यहा का पुलिस महकमा मे कुशीनगर जनपद बनने के बाद पहली श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पुलिस लाइन मे बडे धूमधाम से मनाने की तैयारी जोरो पर चल रही थी। पुलिस विभाग के आला अफसर से लगायत तमाम पुलिसकर्मी तैयारी मे लगे हुए थे तभी पडरौना कोतवाली पुलिस को सूचना मिली कि जंगल दस्यु बेचू मास्टर व रामप्यारे कुशवाहा उर्फ़ सिपाही अपने साथियों के साथ पचरुखिया गांव मे किसी बडी घटना को अंजाम देने के फिराक मे है। बताया जाता है कि पडरौना कोतवाली के तत्कालीन इंस्पेक्टर योगेन्द्र प्रताप सिंह ने इसकी सूचना उस समय  पुलिस अधीक्षक रहे बुद्धचंद को दी। सूचना को गंभीरता से लेते हुए तत्कालीन एसपी ने कोतवाल को थाने मे मौजूद फोर्स व मिश्रौली डोल मेला मे लगे जवानों को लेकर मौके पर पहुचने का निर्देश दिया। इसके अलावा एसपी ने तरयासुजान के तेज-तर्रार थानाध्यक्ष अनिल पाण्डेय को इस अभियान मे शामिल होने का आदेश जारी किया।

  जंगल दस्युओं को धर पकड़ के लिए एसपी ने गठित की थी दो टीम

जंगल दस्युओं को पकडने के लिए एसपी बुद्धचंद ने दो टीम गठित किया। सीओ पडरौना आरपी सिंह के नेतृत्व मे पहली टीम मे सीओ हाटा गंगानाथ, पडरौना कोतवाल योगेन्द्र सिंह, आरक्षी मनिराम चौधरी, रामअचल चौधरी, सुरेन्द्र कुशवाहा, विनोद सिंह व तरयासुजान थानाध्यक्ष अनिल पाण्डेय के नेतृत्व मे दुसरी टीम मे एसओ कुबेरस्थान राजेन्द्र यादव, दरोगा अंगद राय, आरक्षी लालजी यादव, खेदन सिंह, विश्वनाथ यादव, परशुराम गुप्ता, अनिल सिंह, नागेन्द्र पाण्डेय आदि शामिल थे जो तकरीबन साढे नौ बजे पचरुखिया घाट पर पहुंचे। यहा पुलिस टीम को जानकारी मिली कि जंगल दस्यु अपने लाव-लश्कर के साथ पचरुखिया गांव मे है। इसके बाद पुलिसकर्मियों ने भुखल नामक नाविक को बुलाकर उसके डेंगी (छोटी नाव) पर सवार होकर नदी उस पार चलने को कहा।

  दुसरी टीम पर डकैतों ने किया हमला

भुखल ने दो बार में डेंगी से पुलिस कर्मियों को पचरुखिया घाट के बांसी नदी के उस पार पहुंचाया, लेकिन बदमाशों का कोई सुराग नहीं मिलने पर पहली खेप में शामिल सीओ समेत अन्य पुलिस कर्मी नदी के इस पार वापस आ गए जबकि  दूसरे खेप में तरयासुजान थानाध्यक्ष अनिल पाण्डेय के साथ डेंगी पर सवार होकर चली पुलिस टीम की नाव जैसे ही बीच मझधार मे पहुची बदमाशों ने पहले बम फेका फिर ताबड़तोड़ फायर झोंक दिया। इस दौरान जंगल दस्युओं की गोली से नाविक भुखल व सिपाही विश्वनाथ यादव घायल हो गए। नाविक को गोली लगने के बाद डेंगी अनियंत्रित होकर नदी मे  पलट गई। इससे नाव पर सवार सभी पुलिसकर्मी नदी में जा गिरे। पुलिसकर्मी खुद को संभाल पाते इससे पहले बदमाशों ने पुलिस टीम पर ताबड़तोड़ 40 राउंड फायर किया।

दो इंस्पेक्टर सहित सात पुलिसकर्मी हुए शहीद

घटना की सूचना सीओ सदर आरपी सिंह ने वायरलेस के जरिए  एसपी बुद्धचंद को दी। इसके बाद मौके पर पहुंची फोर्स द्वारा डेंगी (छोटी नाव) पर सवार पुलिसकर्मियों की खोजबीन शुरू की गयी जिसमें एसओ तरयासुजान अनिल पांडेय, एसओ कुबेरस्थान राजेंद्र यादव, तरयासुजान थाने के आरक्षी नागेंद्र पांडेय, पडरौना कोतवाली के आरक्षी खेदन सिंह, विश्वनाथ यादव व परशुराम गुप्त शहीद हो गये तथा नाविक भुखल भी मारा गया। इस कांड में दरोगा अंगद राय, आरक्षी लालजी यादव, श्यामा शंकर राय व अनिल सिंह घायल हो गये थे।

 नही मिली अनिल पाण्डेय की पिस्टल

घटनास्थल पर पुलिस के हथियार व कारतूस बरामद तो हुए, लेकिन अनिल पांडेय की पिस्टल आज तक नहीं मिल सका। बताया जाता है कि तत्कालीन डीजीपी ने भी घटना स्थल का दौरा कर मुठभेड़ की जानकारी  ली थी। इसके बाद से ही कुशीनगर पुलिस पिछले 26 वर्षो से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी नहीं मनाती है।