मैं साबित किस तरह करता कि हर आईना झूठा है, कई कम-ज़र्फ़ चेहरों को उतर जाने की जल्दी थी : राहत इंदौरी
'मैं मर जाऊं, तो मेरी एक अलग पहचान लिख देना,
लहू से मेरी पेशानी पे हिन्दुस्तान लिख देना'
जनाज़े पर मेरे लिख देना यारों
मोहब्बत करने वाला जा रहा है
सुप्रसिद्ध शायर राहत इंदौरी की जीवन यात्रा
रायपुर ।। मशहूर शायर राहत इंदौरी का 70 साल की उम्र में हार्ट अटैक से निधन हो गया .
वे कोरोना वायरस से संक्रमित मिले थे. जिसके बाद उन्हें इंदौर के अरबिंदों अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां इंदौरी ने अंतिम सांस ली. उनके निधन के बाद देश भर में शोक की लहर है.
बुलाती है मगर जाने का नहीं
ये दुनिया है इधर जाने का नहीं
राहत इंदौरी का जन्म इंदौर में 1 जनवरी 1950 में कपड़ा मिल के कर्मचारी रफ्तुल्लाह कुरैशी और मकबूल उन निशा बेगम के यहाँ हुआ था. वे उन दोनों की चौथी संतान हैं. उनकी प्रारंभिक शिक्षा नूतन स्कूल इंदौर में हुई. उन्होंने इस्लामिया करीमिया कॉलेज इंदौर से 1973 में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की और 1975 में बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय भोपाल से उर्दू साहित्य में एमए किया.
उसके बाद 1985 में मध्य प्रदेश के मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की ।
अभी तो कोई तरक़्की नहीं कर सके हम लोग
वही किराए का टूटा हुआ मकां है मियां
राहत इंदोरी ने शुरुवाती दौर में इंद्रकुमार कॉलेज, इंदौर में उर्दू साहित्य का अध्यापन कार्य शुरू किया . उनके छात्रों के मुताबिक वह कॉलेज के अच्छे व्याख्याता थे, फिर बीच में वो मुशायरों में व्यस्त हो गए और पूरे भारत से और विदेशों से निमंत्रण प्राप्त करना शुरू कर दिया.
उनकी अनमोल क्षमता, कड़ी लगन और शब्दों की कला की एक विशिष्ट शैली थी ,जिसने बहुत जल्दी व बहुत अच्छी तरह से जनता के बीच लोकप्रिय बना दिया.
कभी महक की तरह हम गुलों से उड़ते हैं
कभी धुएं की तरह पर्वतों से उड़ते हैं
राहत साहेब ने बहुत जल्दी ही लोगों के दिलों में अपने लिए एक खास जगह बना लिया और तीन से चार साल के भीतर ही उनकी कविता की खुशबू ने उन्हें उर्दू साहित्य की दुनिया में एक प्रसिद्ध शायर बना दिया था.
वह न सिर्फ पढ़ाई में प्रवीण थे बल्कि खेलकूद में भी वे प्रवीण थे, वे स्कूल और कॉलेज स्तर पर फुटबॉल और हॉकी टीम के कप्तान भी थे.
वह केवल 19 वर्ष के थे जब उन्होंने अपने कॉलेज के दिनों में अपनी पहली शायरी सुनाई थी.
दो गज सही ये मेरी मिलकियत तो है
ए मौत तूने मुझे जमींदार कर दिया
बात करें उनके निजी जीवन के बारे में तो राहत की दो बड़ी बहनें थीं जिनके नाम तहज़ीब और तक़रीब थे. एक बड़े भाई अकील और फिर एक छोटे भाई आदिल रहे. परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी और राहत को शुरुआती दिनों में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था.
अब हम मकान में ताला लगाने वाले हैं
पता चला हैं की मेहमान आने वाले हैं
उन्होंने अपने ही शहर में एक साइन-चित्रकार के रूप में 10 साल से भी कम उम्र में काम करना शुरू कर दिया था.
चित्रकारी उनकी रुचि के क्षेत्रों में से एक थी और उन्होंने बहुत जल्द ही बहुत नाम अर्जित किया था. वह कुछ ही समय में इंदौर के व्यस्ततम साइनबोर्ड चित्रकार बन गए. क्योंकि उनकी प्रतिभा, असाधारण डिज़ाइन कौशल, शानदार रंग भावना और कल्पना की है कि और इसलिए वह प्रसिद्ध भी हैं.
यह भी एक दौर था कि ग्राहकों को राहत द्वारा चित्रित बोर्डों को पाने के लिए महीनों का इंतजार करना भी स्वीकार था. यहाँ की दुकानों के लिए किया गया पेंट कई साइनबोर्ड्स पर इंदौर में आज भी देखा जा सकता है ।