कवियों की कविताओं में स्वाधीनता दिवस
बलिया ।। बलिया एक्सप्रेस 74 वें स्वाधीनता दिवस को कवियों ने अपनी कविताओं कैसे मनाया है वह यहां प्रस्तुत कर रहा है --
स्वतंत्रता दिवस
(हमारी आजादी एवं राजनीति की झलक)
"हम आजाद हैं इसका सबूत क्या चाहिए!
गुलाम होते तो जुबान मुँह मेंं नहीं पेट में होती।"
आ गया फिर पन्द्रह अगस्त
हमारा प्यारा 'स्वतंत्रता दिवस'
लाखों कुर्बानियों का प्रतिफल
करोड़ों मुठ्ठियों का एकजुट बल
हम नहीं भूलेंं उन वीरों की कुर्बानी
भूल गए जो देश की खातिर
अपना बचपन और अपनी जवानी
हाय! क्या पता था इन दीवानों को
भ्रष्टाचार का लाइसेंस मिल जाएगा नेताओं को।
देश बेचने मे जुट जाएंगे, निज स्वार्थ की खातिर
जगह-जगह दंगा-फसाद कराऐंगे।
आज दीवारों पर टँगी गाँधी-नेहरु की
धूल सनी फोटो साफ की जाऐगी।
क्यों कि उनका साफ होना जरूरी है
सम्मान देना जरूरी है
आखिर पंद्रह अगस्त है
शाम ढले,नेता-अफसर सभी प्रसन्न हैं
स्वतंत्रता दिवस के लिए नहीं
एक और छुट्टी के लिए भी नहीं।
प्रसन्न हैं, चैन की साँस लेने के लिए।
दंगा रहित समापन के लिए।
सरकारी स्कूलों मेंं बच्चे अब
पहले जैसे उल्लसित नहीं होते
लड्डू की जगह,'पारले जी' शायद मिल जाए।
सरकार के पास, निर्जीव पुतलों के लिए बहुत कुछ है।
परन्तु, सजीव बचपन के लिए कुछ नहीं
फिर भी हम खुश हैं
देश उन्नति कर रहा है
पड़ौसी मुल्क भयभीत है
महाबली अब हमारा मीत है।
विश्व में प्रगति का स्तर बढ़ रहा है
क्या हम वास्तव में स्वतंत्र हैं?
न होते तो दंगे कैसे करते!
मार-काट, बलात्कार आम न होते
चौंक चौंक कर न जागते सोते
हाँ,हम स्वतंत्र हैं?!!!!
सरहद पर जागता जवान
अकेला क्या करेगा
जब तक एक एक व्यक्ति प्रण न लेगा
देश की रक्षा का प्रण,
तन,मन,धन की रक्षा का प्रण।
आज भी बहुत कुछ अच्छा है
असंख्य दिलों में मानवता जिंदा है
उम्मीद का सागर सूख न पाएगा।
प्यारा तिरंगा युगों तक लहराया जाएगा।
जय हिंद! जय हिंद!जय जय जय हिंद!!!
डाँ.रीता पाण्डेय(स्नेहा पाण्डेय)
बस्ती गोरखपुर
उठ जाओ भारत के लालों
उठ जाओ भारत के लालों,
सोने की बेला कब की चूक चुकी,
हजारों वर्षों तक रहकर गुलाम,
ये गुलामी तुम्हे क्या रास आ गई!
अंग्रेजों को खदेड़ा था;
लहू बहा कर देश सपूतों ने!
अंग्रेजी का पल्लू पकड़े,
झूठ है सपनों में क्यों झूल रहे!
यह कौन सा भ्रम जाल!
अपने आसपास बांध रहे!
उलझ कर गिर जाने का सामान कर रहे!
जिस पेड़ पर बैठे उसी डाल को काट रहे!
अपनी इस प्यारी हिंदी को
भाषाओं के माथे की बिंदी को
क्यों कर तुम ठुकरा रहे!
जरूरत तुम्हें है हिंदी की!
हिंदी को तुम्हारी जरूरत नहीं है!
ज्ञान पाओगे तुम पढ़ कर हिंदी से!
हिंदी तुमसे कुछ पाएगी नहीं
यकीन नहीं है अगर!
छोड़कर इसे अपना हाल देख लो!
हिंदुस्तान में रहकर!
हिंदुस्तान को बांट रहे!
जिस डाल पर बैठे!
उसी डाल को काट रहे!
अंग्रेजी से कोई बैर नहीं है!
हिंदी की छोटी बहना है वो!
उठ जाओ भारत के लालों,
सोने की बेला कब की चूक चुकी,
हजारों वर्षों तक रहकर गुलाम,
ये गुलामी तुम्हे क्या रात आ गई!
माधुरी "अदिति"
3037 जे,सेक्टर-49,
फरीदाबाद , हरियाणा
हे भारत माता
हे भारत माता तेरा अभिनन्दन
तेरी मिट्टी का कण-कण चन्दन
चाहूँ तेरे चप्पे-चप्पे में हो उजियारा
दूध-दही की बहती रहे सदा नदी धारा
यहाँ के नेताओं को मिले सद्बुद्धि
विधर्मियों की हो जाये बस शुद्धि
कोई जन न कर पाये कभी क्रंदन
हे भारत माता तेरा अभिनन्दन
आतंकवाद-नक्सलवाद मिट जाये
राष्ट्रप्रेम का गीत घर-घर गाया जाये
मंदिर-मस्जिद में न हो कभी लड़ाई
हिंदू-मुस्लिम बनकर रहें यहाँ भाई-भाई
झूठ, कपट, छल, द्वेष का हो खंडन
हे भारत माता तेरा अभिनन्दन
सुभाष, भगत, बिस्मिल का स्वप्न हो साकार
दीन-दुखी, निबल-बिकल रहे न कोई लाचार
- मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
ग्राम रिहावली, डाक तारौली गुर्जर,
फतेहाबाद, आगरा, 283111
पन्द्रह अगस्त आया है
जो भी कहता है कि पन्द्रह अगस्त आया है।
मुझे लगता कि उन पर पागलपन छाया है।
यह वही दिन है जब अपना भारत बॅटा है,
भारत मां का हाथ दोनों आज ही कटा है।
फिर भी लोगों ने मिठाई खूब बॅटवाया है।
मुझे लगता कि उन पर ही पागलपन छाया है।
कोई भी धन्धा दे दो पुलिस को आधा,
फिर तो लूटो नहीं आएगी कोई बाधा,
मूर्ख है वो जो भी कहीं सोर्स लगाया है।
मुझे लगता कि उन पर पागलपन छाया है।।
अदालत में रिश्वतखोरी का ही कानून,
जो भी करे दलाली आज वही अफलातून,
फैसला तब जब हाकिम को कुछ पहुंचाया है।
मुझे लगता कि उन पर पागलपन छाया है।।
सभी कहते कि मिल गया अब सुराज है,
अपना है यह देश और अपना ही राज है,
कौन बताएगा कि सुराज को किसने छुपाया है।
मुझे लगता कि उन पर पागलपन छाया है।।
आज तो हर जगह जूता चप्पल मिलता है,
विधानसभा व संसद में भी अक्सर चलता है,
हमें सुराज का अर्थ शू-राज समझ में आया है।
मुझे लगता कि उन पर पागलपन छाया है।।
डॉ 0 भोला प्रसाद आग्नेय
रघुनाथपुरी टैगोर नगर सिविल लाइंस बलिया (उ०प्र०)277001
देश के शहीद सैनिकों को समर्पित गीत
हिन्दके रणबाँकुरों तुमको नमन।
ख़ूनसे सींचाहै तुमनें ये चमन।।
लोरियाँ माताओं की जहाँ सो गईं।
राखियाँ बहनों की भी बहीं खो गईं
तुमको प्याराथा सदा अपना वतन
हिन्दके रणबाँकुरों तुमको नमन।।
खूँनसे सींचाहै तुमनें ये चमन ।।
हर ह्रदयमें बसगये रणधीर तुम,
थे बड़े रणबाँकुरे बलवीर तुम,
होतुम्हारा हिन्दमें फिर आगमन,
हिन्दके रणबाँकुरो तुमको नमन।
खूँनसे सींचाहै तुमनें ये चमन।।
आज आपनें देशमें जो होरहा,
आतंकबादियो का अबहोगदमन
दुश्मनोंका सबमिलके करदों दहन
हिन्दके रणबाँकुरों तुमको नमन।
खूँन से सींचाहै तुमनें ये वतन।।
बलिहार ,ब्रम्हानन्द,तुमपर ये
हिन्दके रणबाँकुरों तुमको नमन।
कैप्टन डॉ ब्रम्हानन्द तिवारी,अबधूत,,
अंतराष्ट्रीय बरिष्ठ साहित्यकार
मैनपुरी उत्तरप्रदेश