हिंदी प्रेमियों के गढ़ में हिंदी की दुर्दशा : सरकारी कार्यालयों में हिंदी को नहीं मिलता सम्मान
डॉ भगवान प्रसाद उपाध्याय
प्रयागराज : हिंदी का गढ़ माना जाने वाला प्रयागराज हिंदी प्रेमियों के लिए कभी मुख्य केंद्र बिंदु हुआ करता था किंतु आज यहां हिंदी की दुर्दशा पर हिंदी स्वयं आंसू बहा रही है सरकारी कार्यालयों में तो और भी हिंदी का सम्मान करने वाला कोई नहीं है आम बोलचाल की भाषा में भी हिंदी को लोग बहुत ही हेय दृष्टि से देखते हैं और अंग्रेजी बोलने में गर्व का अनुभव करते हैं रही सही कसर कुछ कथित जाने-माने मीडिया घरानों ने पूरी कर दी अंग्रेजी मिश्रित हिंदी के समाचारों को उन्होंने जबरन पाठकों को परोसना शुरू कर दिया और उनकी दैनिक दिनचर्या की भाषा में भी उन्होंने अपनी मनमानी दिखाई कई ऐसे शब्द आ गए जिन्हें लोगों को बोलना या लिखना उनकी विवशता हो गई
पिछले 2 वर्षों पहले यहां लगे कुंभ मेले में नए पुल के पास यातायात पुलिस द्वारा एक पुलिस सहायता केंद्र बनाया गया था जिसमें साफ शब्दों में ट्रैफिस पुलिस लिखा गया है और पूरे कुंभ मेले तक वह ट्रैफ़िस ही रहा अभी भी वह ट्रैफिस बना हुआ है जबकि उस मार्ग से अब तक जाने कितने अधिकारियों और कथित हिंदी प्रेमियों की गाड़ियां फर्राटा भरते हुए निकल गई होंगी कुछ दिनों पहले तक इलाहाबाद संग्रहालय के ऊपर लगायी गई नाम पट्टिका पर इलाहाबाद सग्रहालय चल रहा था स के ऊपर की बिंदी मिट जाने के बाद भी अनेक विद्वानों की दृष्टि उस पर नहीं पड़ी इसी प्रकार कई वर्षों तक जसरा रेलवे फाटक पर दुर्घटना की जगह दुघर्टना लिखा हुआ था
यह तो केवल एक उदाहरण स्वरूप बात बताई जा रही है जबकि सर्वेक्षण किया जाए तो पूरे जनपद में हजारों ऐसी नाम पट्टिकाएँ मिलेंगी जिसमें हिंदी को विकृत करके लिखा गया है चार पहिया वाहनों के पीछे कुछ ऐसे शब्द मिलते हैं जिसमें व्याकरण का कोई अनुपालन नहीं होता क्योंकि इस तरह लिखने वाले लोग बहुत कम पढ़े लिखे होते हैं हिंदी के गढ़ में हिंदी का सम्मान ना मिलना एक आश्चर्यजनक बात है जबकि कई बार हिंदी प्रेमियों की ओर से पूरे महीने भर निरंतर हिंदी बढ़ाओ हिंदी अपनाओ हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है हिंदी हमारी मातृ भाषा है हिंदी में काम करने पर हमें गर्व है आदि आदि खूब लंबा चौड़ा भाषण मंचों पर दिया जाता है कथनी और करनी में अंतर हिंदी प्रेमियों के गढ़ में यदि मिले तो वह बहुत ही हास्यास्पद है माननीय पूर्व न्यायमूर्ति स्वर्गीय प्रेम शंकर गुप्ता जी इस पर प्रायः चिंता व्यक्त करते थे और वह अपने मिलने वालों से कुछ ऐसे प्रसंग अवश्य बताते थे जहां हिंदी कि इस तरह की दुर्दशा हो रही है उन्होंने कई बार युवा हिंदी साहित्यकारों से इस बात का आग्रह किया था कि आप लोग एक अभियान चलाकर हिंदी में लिखी गई नाम पट्टिकाओं की त्रुटियों को सुधार करने का प्रयास करें कई बार इसके प्रयास भी हुए किंतु वह सफलता की ओर नहीं बढ़ सके परिणाम शून्य ही रहा आज जब पूरे विश्व में हिंदी बोलने वालों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि हुई है हिंदी समझने वालों और हिंदी लिखने वालों की संख्या भी बढ़ी है फिर हिंदी में व्याकरण की त्रुटियों पर कोई ऐसा प्रयास नहीं किया जा रहा है जिससे शुद्ध हिंदी लिखने की ओर लोगों की रुचि बढ़े
इस संदर्भ में अवध साहित्य अकादमी के पदाधिकारियों का कहना है कि यदि हिंदी की नई पीढ़ी के रचनाकार इस तरह का एक अभियान चलाएं की प्राथमिक स्तर पर हिंदी के व्याकरण को सुदृढ़ किया जा सके और विद्यालयों में माध्यमिक शिक्षा तक व्याकरण की पुस्तकें अनिवार्य कर दी जाएं यदि ऐसा होता है तो हम हिंदी के लिए एक सार्थक कार्य करने की दिशा में अग्रसर हो सकेंगे ।