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तीन विपिन मिलकर लिखेंगे बलिया में विकास व सुरक्षा की इबारत : दो ने की है डॉक्टरी तो एक है कानून का जानकार



मधुसूदन सिंह

बलिया ।। बलिया को संवारने सजाने व अमन चैन कायम करने के लिये तीन विपिन की जोड़ी को शासन ने पोस्टिंग दी है । इन तीन विपिन में से दो ने डॉक्टरी की पढ़ाई की है तो एक ने कानून की पढ़ाई की है । तीनों अपने मूल पढ़ाई से हट कर आज सफलता के झंडे गाड़ रहे है । आइये आपको इन तीनो विपिन से संक्षिप्त रूप से परिचय करा देते है ।

पहले विपिन है ,हमारे लोकप्रिय मुख्य विकास अधिकारी डॉ विपिन जैन । डॉ विपिन जैन ने एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद चिकित्सकीय क्षेत्र में सेवा के दौरान आम लोगो को अधिक से अधिक लाभ पहुंचाने के लिये प्रशासनिक अधिकारी बनने का निर्णय करके आईएएस की परीक्षा में बैठे और आईपीएस के लिये चयनित हो गये । चयनित होने के बाद ट्रेनिंग लेकर पुलिस विभाग में सेवारत भी हो गये लेकिन यहां इनका मन नहीं लगा । डॉ जैन पुनः आईएएस की परीक्षा में बैठे और आईएएस के लिये चुन लिये गये । बलिया में ही जॉइंट मजिस्ट्रेट रहते हुए इन्होंने कोरोना के विकट समय मे आगे रहकर कोरोना की जंग को बलिया में लड़ी और बलिया को सुरक्षित रखने में कामयाब हुए । डॉ जैन ने कोरोना से जंग में अपनी चिकित्सकीय ज्ञान का भरपूर उपयोग करके न सिर्फ बलिया में कोरोना के प्रसार को रोका बल्कि बलिया में भारत स्तर का पीपीई किट बनवाने में मुख्य प्रणेता के रूप में उभरे । यही कारण है कि जब इनका सीडीओ के रूप में प्रमोशन हुआ तो इनको बलिया में ही रोक दिया गया । आज डॉ जैन कोरोना की जंग के साथ ही बलिया के विकास की इबारत भी लिख रहे है ।

दूसरे विपिन है - हमारे नवागत पुलिस अधीक्षक डॉ विपिन ताडा

 डॉ ताडा एक मिसाल है ऐसे अभिभावकों के लिये जो अपने बच्चों से यह कहते है कि निचली कक्षाओं में अधिक नम्बर आने से ही भविष्य में सफल हो सकते है ।

 दो-चार कदम चलने को चलना नहीं कहते, 

मंजिल तक जो न पहुंचे उसे रास्ता नहीं कहते।।

 इन पंक्तियों के मायने को सही में साबित कर दिखाया है पुलिस अधीक्षक डा. विपिन ताडा ने। उन्होंने बोर्ड परीक्षाओं में भले ही कम अंक हासिल किए, लेकिन अपनी मंजिल पाने के लिए पूरी लगन से प्रयासरत रहे और कामयाबी भी हासिल की। पहले एमबीबीएस में सलेक्शन हुआ और फिर आईपीएस बन गए।    

    आजकल बोर्ड परीक्षाओं में ज्यादा अंक हासिल करने के लिए अभिभावक अपने बच्चों पर तमाम दवाब बनाते हैं, जिस सब्जेक्ट में उनकी रुचि नहीं, उसे जबरन पढ़वाते हैं। ऐसा करने से बच्चे की रुचि नहीं बदल जाती, बल्कि दबाव में आने के कारण वह अपने लक्ष्य से भटक जाता है। बच्चे को उसकी रुचि के अनुसार ही आगे बढ़ने का मौका मिले तो बेहतर होगा। जरूरी नहीं है कि परीक्षा में अधिक अंक लाकर ही बच्चा जीवन में सफल हो सके। परीक्षा में अधिक अंक से ज्यादा जरूरी है ज्ञान। इसकी मिसाल हैं पुलिस अधीक्षक डा. विपिन ताडा। डॉ ताडा बताते हैं कि हमने बेसिक शिक्षा छोटे से स्कूल में हासिल की। रोज साइकिल से स्कूल जाते थे। सातवीं कक्षा में अच्छे नंबर आए तो परिजनों ने आठवीं और नवमीं क्लास के बजाय हाईस्कूल का एग्जाम दिलवा दिया, जिसमें उनके मात्र 56 प्रतिशत अंक आए। इसके बाद इंटर में 62 फीसदी अंक प्राप्त हुए। उन्होंने डॉक्टर बनने का अपना लक्ष्य पहले से ही निर्धारित कर रखा था। इसके लिए उन्होंने पूरी लगन से पढ़ाई की। उन्होंने इंटर के बाद एक साल कोचिंग की। पहले प्रयास में 2002 में एमबीबीएस के लिए सलेक्ट हो गए। इसके बाद राजस्थान के एक गांव में सरकारी अस्पताल में चिकित्साधिकारी बन गए। वहां आठ महीने तक रहे। तब उन्हें लगा कि डॉक्टर बनकर चंद मरीजों की सेवा की जा सकती है, लेकिन सिविल सेवा में रहकर बहुत से लोगों की सेवा का मौका मिलता है। उन्होंने इसी नजरिये से सिविल सेवा की तैयारी शुरू कर दी। 

2011 में भारतीय पुलिस सेवा के लिए उनका सलेक्शन हो गया और वह पहले रामपुर में ,फिर अमरोहा में पुलिस अधीक्षक बने अब बलिया के पुलिस अधीक्षक बनाये गये है। डॉ ताडा का कहना है  कि अभिभावकों को बोर्ड परीक्षा में अधिक अंक लाने के लिए बच्चों पर दबाव नहीं बनाना चाहिए, बल्कि उनको लक्ष्य निर्धारित करने की स्वतंत्रता दे जिसमें उस  बच्चे की दिलचस्पी हो । उसे उसी क्षेत्र में आगे बढ़ने का मौका दें। हमारा लक्ष्य तय होगा तो तीर सही निशाने पर लगेगा।  

कहा कि मेरा सौभाग्य है कि आईपीएस बनकर अपराधियों को सजा दिलाने के साथ ही समाज को बेहतर बनाने में भी बड़ा योगदान देने का अवसर मिला है। रामपुर व अमरोहा में सफलता के झंडे गाड़ने के बाद देखना है कि विभिन्न थाना क्षेत्रों में बढ़ी आपराधिक घटनाओं पर कैसे अंकुश लगाते है और मातहतों पर कैसी पकड़ रखते है ।

तीसरे विपिन है - शहर कोतवाल बलिया विपिन सिंह । श्री सिंह अपनी पढ़ाई के जमाने मे मेधावी छात्र रहे है । इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि अर्जित करने के बाद एलएलबी की उपाधि प्राप्त की । सन 2000/2001 में पहली नौकरी सचिवालय के यूडीसी के रूप में शुरू की । यहां मन नही लगने पर भारतीय रेल में माल गाड़ी के गार्ड बन गये । इस नौकरी में भी मन नही लगने पर सीआईएसएफ में उप निरीक्षक के रूप में भर्ती हो गये । यहां से भी 2005 में नौकरी छोड़कर उत्तर प्रदेश पुलिस के उप निरीक्षक के रूप में सेवा शुरू किये । आज ये थाना कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक के रूप में सेवा रत है । जब से इन्होंने शहर का कार्यभार संभाला है, शहर को अपराध मुक्त रखने के लिये सतत प्रयत्नशील है ।

अब देखना है कि ये तीनो विपिन जो अपने अपने क्षेत्रों के महारथी है ,बलिया को विकास के साथ अपराधमुक्त रखने में कितना सफल होते है ।