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जन्मदिन पर विशेष : डॉ भगवान प्रसाद उपाध्याय : दिखावे से दूर ,सरल स्वभाव के धनी



डॉ रामलखन चौरसिया " वागीश "

प्रयागराज ।। अपनी विलक्षण प्रतिभा के कारण रचना धर्मियों के बीच लोकप्रिय डॉक्टर भगवान प्रसाद उपाध्याय ने जीवन के 65   बसंत पूर्ण कर लिए 1 जनवरी 1955 को यमुनापार की तहसील करछना के गांव  गंधियांव में जन्मे , दिखावे और पक्षपात से दूर सरल स्वभाव के धनी, सादा जीवन उच्च विचार के हिमायती, डॉक्टर भगवान प्रसाद उपाध्याय , सशक्त साहित्यकार एवं पत्रकार हैं ! इनको जब भी मैं देखता हूं , न जाने क्यों मुझे, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी, याद आ जाते हैं ! युग प्रवर्तक साहित्यकार एवं पत्रकार आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने, सरस्वती पत्रिका का प्रकाशन करके, उसके माध्यम से, अपनी लेखनी के बल पर, न केवल हिंदी साहित्य  व भाषा को समृद्धशाली बनाया , हिंदी साहित्य को नई दिशा दी ,एक नई ऊँचाई प्रदान की ,बल्कि उनके युग में सुमित्रा नन्दन पन्त ,और मैथिलीशरण गुप्त जैसे साहित्यकारों का उदय हुआ ! आयु की अधिकता इनकी सक्रियता में कहीं भी बाधित नहीं होती और निरंतर गतिशील रहते हैं सुदूर आयोजनों में भी अपनी उपस्थिति न केवल दर्ज कराते हैं अपितु वहां अपनी अमिट छाप छोड़ कर भी आते हैं इन के सानिध्य में मैंने दिल्ली हरियाणा पंजाब के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के कई जनपदों में सुखमय यात्रा कर चुका हूं कभी न थकने वाले कभी न झुकने वाले अपनी मंजिल तक पहुंचकर ही रुकने  वाले डॉ भगवान प्रसाद उपाध्याय  ने कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं और वे सदैव सुलभ रहते हैं   महामना पंडित मदन मोहन मालवीय को अपना आदर्श मानने वाले  डॉ उपाध्याय  उन्हीं के नक्शे कदम पर चलते हुए नज़र आते  हैं   ।

भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ का गठन कर के ,ये न केवल देश भर के साहित्यकारों व पत्रकारों को संगठित करने ,उनके अधिकार ,अभिव्यक्ति की आजादी ,सुरक्षा और स्वभिमान, के लिए लड़ रहे हैं ,उन्हें नई दिशा देने में लगे हैं ,बल्कि ये जानते हुए भी कि वर्तमान फेसबुकिया युग मे साहित्यिक पत्रिकाओं का प्रकाशन कितना कठिन कार्य है ,भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महा संघ का मुखपत्र , सहित्यांजलि  प्रभा का  प्रतिमाह नियमित प्रकाशन ,सम्पादन और उसका संचालन सकुशल संपन कर रहे हैं ।

नवोदित साहित्यकारों  की रचनाओं और उनकी कृतियों को उसमे स्थान दे कर ,उनके मनोबल को बढ़ाने व उन्हें सम्मानित करने के साथ  ख्यातिलब्ध वरिष्ठ साहित्यकारों को पुरष्कृत करने में पीछे नहीं हैं ।

भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ के माध्यम से देश भर में साहित्यिक आयोजन करने, साहित्यकारों के कृतियों का प्रकाशन ,लोकार्पण ,परिचर्चा ,समीक्षा शोध ,और उसका मूल्यांकन करने कराने में लगे  रहते हैं । जिससे जहाँ एक तरफ़ नवोदित साहित्यकारों का मनोबल बढ़ रहा ,उनके कृतियों को फूलने - फ़लने का अवसर या वातावरण मिल रहा ,वहीं दूसरी तरफ़ ,ख्यातिलब्ध वरिष्ठ साहित्यकारों का समर्थन व सहयोग भी प्राप्त हो रहा है ।

नवोदित साहित्यकारों के कृतियों को भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महा संघ के मुख पत्र साहित्यांजलि प्रभा में स्थान देते समय कृतियों की गुणवत्ता के साथ उनके भाषा शैली पर भी इनकी पैनी दृष्टि रहती है ,ताकि हिंदी साहित्य और उसकी भाषा  बेहतर बनायी जा सके  उसे निखारा जा सके !

इक्कीसवीं सदी के साहित्य ,साहित्यकार ,पत्रकार और पत्रकारिता की जब भी बात होगी ,इतिहास लिखा जायेगा ,डॉ भगवान प्रसाद उपाध्याय , युग प्रवर्तक के रूप में जाने जायेंगे ।ऐसा मुझे विश्वास है ।

भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ के संयोजक डॉ भगवान प्रसाद उपाध्याय जी मूलतः पत्रकार हैं ।जहां एक तरफ़ दुनियां अर्थोपार्जन के पीछे भाग रही है ,वहीं ये रात -दिन एक करते हुए ,देश भर में घूम -घूम कर ,पत्रकारों व साहित्यकारों को संगठित करने ,और उन्हें मंच प्रदान करने में लगे हुए हैं ।उनके विकास और स्वाभिमान की लड़ाई लड़ने में लगे हुए हैं ।उनके दशा को दिशा देने में लगे हैं ।देश दुनियां और समाज को पत्र, पत्रकार ,पत्रकारिता और साहित्य के माध्यम से एक नई ऊँचाई और ऊर्जा प्रदान करने के साथ उनमें सकारात्मक राष्ट्रवाद की भावना भरने में लगे हुए हैं ।समाज में फैली भ्रांतियों ,कुरीतियों और विसंगतियों को मिटाने में लगे हुए हैं ।भेदभाव ,जाति ,वर्ग व नफऱत  की खाई को पाटने में लगे हुए हैं ।

प्राप्त जानकारी के अनुसार अब तक इन्होंने देश के बाइस प्रदेशों में ,भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महा  संघ की इकाई स्थापित कर, उन तक भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महा संघ का मुख पत्र साहित्यांजलि  प्रभा को पहुँचाने का कार्य  विगत  चार दशक से कर रहे हैं ,जो अपने आप में मिशाल है ।प्रयागराज के साहित्यकारों व पत्रकारों के लिए गर्व की बात है ,कि देश के बाइस प्रदेशों में भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ की पत्रिका साहित्यांजलि प्रभा पहुंच रही, और उसकी बात या आवाज़  पूरे देश मे गूँज रही है ।

मुझे ये कहने में संकोच नहीं है कि प्रयागराज की धरती ,साहित्यकारों और पत्रकारों के लिए सबसे ज्यादा उर्वरा रही ,गंगा, जमुना , सरस्वती के संगम में अदृश्य सरस्वती , साहित्यकारों और पत्रकारों के रूप में दृश्य होती हुई ,अपने बौद्धिकता ,ज्ञान और विवेक से दुनिया भर  के लोगों को आलोकित करती है। अपने  गंगा - जमुनी संस्कृति की खुशबू से सबको सराबोर करती रहती ,अदभुत ज्ञान की छटा बिखेरती रहती है ।समुन्द्र मंथन में निकले अमृत का प्रयागराज में छलकने की कथा ,शायद!इसी ओर इशारा करती है जो साहित्यकारों ,पत्रकारों और लोगों के मन ,मस्तिष्क में रची बसी है ।जिसका प्रभाव आज भी यहाँ के आबोहवा में देखने को मिल रहा  ,या परिलक्षित हो रहा है ।

डॉ भगवान प्रसाद उपाध्याय की सबसे बड़ी ख़ासियत है कि ये स्वयं महत्वकांक्षा से रहित रह कर ,दूसरों को महत्व प्रदान करते हैं ।निजी पहचान बनाने की लालसा से दूर रह कर ,अपनी संस्था और उससे जुड़े लोगों को महत्व प्रदान करने में रुचि रखते हैं ,जो इनको आम से खास बनाती है ।     आप महीयसी  महादेवी वर्मा डॉ रामकुमार वर्मा केशव चंद्र वर्मा इलाचंद्र जोशी उपेंद्र नाथ अश्क  नर्मदेश्वर चतुर्वेदी डॉ मोहन अवस्थी डॉक्टर हरदेव बाहरी डॉ प्रभात मिश्र पंडित उमाकांत मालवीय कैलाश कल्पित रामेश्वर शुक्ल अंचल  डॉक्टर जगदीश गुप्त पद्मश्री वचनेश  त्रिपाठी   डॉक्टर भगवान दास अरोड़ा  वीरेंद्र बालूपुरी श्री हेरंब मिश्र   डॉक्टर शिव शंकर मिश्र आदि  साहित्यकारों पत्रकारों कवियों का सानिध्य और आशीर्वाद प्राप्त कर चुके हैं 1975 से नियमित लेखन व पत्रकारिता में सक्रिय आपकी एक हजार से अधिक विभिन्न रचनाएं देश भर की छोटी-बड़ी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं और अब तक आप 300 से अधिक  सम्मान व पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं आप यमुनापार प्रयागराज के पहले ग्रामीण पत्रकार हैं जिन्हें  स्वर्ण पदक सम्मान मिला है  .   कई दैनिक और साप्ताहिक समाचार पत्रों  के संपादकीय विभाग में भी आप  सफलतापूर्वक कार्य कर चुके हैं  आपकी रचनाएं और   आपकी पत्रिका में लिखे गए सम्पादकीय  लेख , इनकी बौद्धिकता व व्यक्तित्व की परिचायक हैं । गीत कविता कहानी के माध्यम से आप सदैव राष्ट्रप्रेम और जनजागृति की अलख जगाते रहते हैं  

इन दिनों डॉ उपाध्याय अपनी कई पांडुलिपियों को  सही स्वरूप प्रदान करने में लगे हुए हैं जिनमें  पत्रकारिता पर उनकी एक पुस्तक सहित  दो गीत संग्रह एवं एक कहानी संग्रह तथा  दो बाल कविताओं के संग्रह अतिशीघ्र  साहित्य जगत में  आने वाले हैं 

आपके सानिध्य में अभी भी कई पत्र पत्रिकाएं नियमित रूप से संपादित व संचालित हो रही हैं सामाजिक सेवा में सदैव राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत होकर आप निर्लिप्त भाव से जो सेवा कर रहे हैं वह अविस्मरणीय है  यद्यपि समाज सेवा में आप कई बार धोखा भी खाते हैं ठगे भी जाते हैं लेकिन स्वभाव से आप संकोची और सरल होने के नाते बहुत बड़ी भूल करने वाले को भी सहजता से क्षमा कर देते हैं लेकिन जो आपकी प्रतिष्ठा पर आघात पहुंचाता है उसे आप कभी वह सम्मान नहीं देते जो पहले देते रहे कभी-कभी आपकी यह कमी लोगों को खलती भी है लेकिन आप स्वाभिमानी और आत्म निर्भर विचारधारा के हैं इसलिए गंभीर से गंभीर संकट में भी आप कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाते हां किसी और अर्थ में अपनी बात सार्वजनिक करने से भी नहीं चूकते .    3 विद्यालयों की स्थापना और सफल संचालन के बाद उसे दान कर देना केवल आप ही के बस की बात हो सकती है   लगभग 1 दर्जन से अधिक साहित्य संस्थाओं का सफल संचालन कर रहे हैं ।

प्रतिवर्ष विभिन्न आयोजनों के माध्यम से और अनेक संस्थाओं के द्वारा सैकड़ों की संख्या में आप पत्रकारों साहित्यकारों कवियों लेखकों बुद्धिजीवियों को सम्मानित करते रहते हैं आपको भी निरंतर यत्र तत्र सम्मान मिलता रहता है । प्रयागराज  की पावन धरती से सृजित व स्फुटित हो कर ,देश भर में साहित्य और पत्रकारिता की सुगंध बिखेरते हुए  ,सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवम पत्रकार श्री भगवान प्रसाद उपाध्याय को मैं नमन करता हूं । 

 अंत में समस्त  भारत वर्ष के साहित्यकारों  व पत्रकारों  से आग्रह करता हूं कि भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ  व उसके मुख पत्र सहित्यांजलि प्रभा से जुड़ कर ,भगवान प्रसाद उपाध्याय जी के सपनों को साकार करने ,देश को दिशा देने ,और मानव समाज को समृद्धिशाली बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करें ।