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शहर के पर्यावरण के लिए अभिशाप है महाबीर घाट रोड पर डम्प होता ठोस अपशिष्ट कूड़ा- कचरा- डा० गणेश पाठक



डॉ सुनील कुमार ओझा

  बलिया ।। अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य,जिला गंगा समिति के सदस्य एवं गंगा समग्र के गोरक्ष प्रांत के पर्यावरण प्रभारी पर्यावरणविद् डा० गणेश पाठक ने एक भेंटवार्ता में बताया कि पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी की सुरक्षा एवं संरक्षण की दृष्टि से बलिया नगर की भी कहानी बड़ी ही विचित्र एवं हास्यास्पद है। यद्यपि बलिया नगर उद्योग विहीन एक छोटा शहर है ,किंतु इस नगर में इतना अधिक ठोस अपशिष्ट निकलता है कि यदि उसे एक स्थान पर एकत्र किया जाय तो वह शीघ्र ही पहाड़ का स्वरूप ग्रहण कर लेगा। किंतु इतनी भयावह स्थिति के बावजूद भी बलिया नगरपालिका द्वारा इसके निस्तारण हेतु कोई ठोस उपाय न करके नगर में स्थित गढ्ढों में, खाली प्लाटों में एवं सड़कों के किनारे डम्प किया जाता है, जिसमें सबसे प्रमुख है गंगा घाट (महाबीर घाट ) जाने वाला मार्ग। इस मार्ग पर  गायत्री मंदिर से लेकर महाबीर मंदिर तक सड़क के दोनों किनारों पर यह ठोस अपशिष्ट कचरा डम्प किया जा रहा है ,जो अब भयावह रूप ग्रहण करता जा रहा है।

       यह ठोस अपशिष्ट कचरा पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी के लिए कितना खतरनाक होता है, यह हमारे सोच से भी परे है। यह कचरा सड़- गल कर दुर्गंध फैलाता है और इसके विषैले तत्व हवा में मिलकर हवा को प्रदूषित कर रहे हैं, जससे सके आस- पास की आबादी अनेक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं एवं रोग उत्पन्न हो रहे हैं। इस कचरा के सड़ने से आस- पास की भूमि भी प्रदूषित हो रही है। वर्षा जल के साथ इसके घूलित विषैले तत्व मिलकर मिट्टी में प्रवेश कर मिट्टी को भी प्रदछषित कर रहे हैं। यही नहीं इस ठोस कचरे के दुष्प्रभाव से गंगा नदी का जल भी दूषित हो रहा है। कारण कि वर्षा जल के साथ इस चकरे का विषैला तत्व कटहल नाला के प्रवाह के साथ गंगा नदी में जा मिलता है। इस कचरे के दूषित विषैले तत्व उस क्षेत्र के भूमिगत जल को भी दूषित कर रहे हैं। 

वर्षा जल के साथ ये तत्व मिलकर रिस - रिस कर भूमिगत जल में प्रवेश कर रहे हैं,जिससे नल का पानी भी दूषित हो रहा है। इस कचरे का प्रभाव आस- पास की वनस्पतियों पर भी पड़ता है और पेड़ - पौधे सूख जाते हैं। प्रतिदिन गंगा स्नान करने वालों के लिए तो यह ठोस अपशिष्ट कचरा अभिशाप बना हुआ है। यदि शीघ्र ही इसका समुचित निस्तारण नहीं किया गया तो यह न केवल बलिया नगरवासियों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर संकट पैदा करेगा, बल्कि इस क्षेत्र के पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी को भी असंतुलित कर देगा।