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यूपी में स्वास्थ्य सुविधाएं राम भरोसे

                                     साभार लॉ ट्रेंड


प्रयागराज ।। इलाहाबाद हाईकोर्ट मे सोमवार को यूपी सरकार की स्वास्थ्य सेवाएं बेनकाब हो गयी । ऐसे लोग भी बेनकाब हो गये जो लाशों के ढेर पर खड़े होकर असत्य की कहानियां सुना रहे थे और कह रहे थे कि यूपी में स्वास्थ्य सुविधाएं एकदम ठीक है । कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि गांव-गांव कोरोना है,अर्थियां उठ रही है,लाशें गिर रही। टेस्टिंग नहीं हो रही, एंबुलेंस, अस्पताल नाकाफी है, स्वास्थ्य व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है । ऐसा सरकारी हलफनामे को देखने के बाद टिप्पणी की गई ।सरकारी हलफनामा देख हाईकोर्ट ने कहा सब राम भरोसे है ।

उच्च न्यायालय ने यूपी में COVID प्रबंधन पर स्वत: संज्ञान जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मेरठ के मेडिकल कॉलेज से एक व्यक्ति के लापता होने की रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए कहा कि यूपी के गावों में चिकित्सा व्यवस्था 'राम भरोसे' है।


जिला अस्पताल, मेरठ से एक संतोष कुमार के लापता होने की वायरल खबर के संबंध में, तीन सदस्यीय समिति ने प्राचार्य, मेडिकल कॉलेज को सात सूत्री रिपोर्ट सौंपी, जिसमें यह स्वीकार किया गया कि लगभग 64 वर्ष के संतोष कुमार को मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था. और दिनांक 21.04.2021 को जिला चिकित्सालय, गाजियाबाद के रेफरेंस पर उन्हें आइसोलेशन वार्ड में रखा गया था।


प्रवेश के समय एक डॉ. तनिष्क उत्कर्ष ड्यूटी पर थे। रिपोर्ट में आया है कि 22.04.2021 की शाम 7-8 बजे के करीब मरीज वॉशरूम गया था, वहीं बेहोश हो गया. डॉ. तूलिका जो जूनियर रेजिडेंट थी और रात की ड्यूटी पर थी, ने समिति को बताया कि संतोष कुमार, जो बेहोश हालत में थे, को स्ट्रेचर पर लाया गया और उन्हें पुनर्जीवित करने के प्रयास किए गए, लेकिन उन्होंने दम तोड़ दिया और जब तक प्रयास किए जा रहे थे तब तक सुबह की टीम पहुंची गयी थी।

इस प्रकार, इसे एक अज्ञात शरीर का मामला माना गया और यहां तक कि रात की ड्यूटी पर मौजूद टीम भी इसे पहचान नहीं पाई और इसलिए शव को एक बैग में पैक किया गया और उसका निस्तारण कर दिया गया।


न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजित कुमार की खंडपीठ ने कहा कि तथ्यों के बयान से, जैसा कि जांच से सामने आया है, यह डॉक्टरों की ओर से उच्च स्तर की लापरवाही का मामला है।


कोर्ट ने कहा

यदि मेरठ जैसे शहर के मेडिकल कॉलेज में इलाज की यही स्थिति है तो छोटे शहरों और गांवों से संबंधित राज्य की पूरी चिकित्सा व्यवस्था को एक प्रसिद्ध हिंदी कहावत 'राम भरोसा' की तरह ही लिया जा सकता है।


कोर्ट इस बात से हैरान था कि कार्रवाई के रूप में केवल पैरामेडिक स्टाफ और डॉक्टरों की वार्षिक वेतन वृद्धि को रोक दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि जिस तरह से राज्य ने इस मुद्दे को हैंडल किया है वो संतोषजनक नहीं है ।


उपरोक्त के मद्देनजर न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव (चिकित्सा एवं स्वास्थ्य को इस मामले में जिम्मेदारी तय करते हुए हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। मुख्य सचिव की ओर से एक हलफनामा भी दाखिल किया जाएगा कि सरकार का क्या रुख है और मृतक के आश्रितों को मुआवजा देने का उसका इरादा क्या है।

हालांकि माना गया कि नाइट ड्यूटी पर तैनात टीम इंचार्ज डॉ. अंशु मौजूद नहीं थे. डॉ तनिष्क उत्कर्ष ने उन को जगह से हटा दिया और व्यक्ति की पहचान करने के सभी प्रयास व्यर्थ गए। वह आइसोलेशन वार्ड में मरीज की फाइल ट्रेस नहीं कर पाया और मरीजों की संख्या व फाइल गिनने के बाद भी मृतकों की शिनाख्त नहीं हो सकी।

मामले की अगली सुनवाई 22 मई को होगी। 

(साभार एलटी)