ऊर्जा का अक्षय भंडार है योग : साध्वी अणिमा श्री
चेन्नई ।। प्रत्येक व्यक्ति के भीतर अजस्र ऊर्जा का प्रवाह प्रवाहित हो रहा है। जिस व्यक्ति ने इस आंतरिक ऊर्जा को पहचानकर समुचित उपयोग किया, वह धन्य हो गया। अनिर्वचनीय आनन्द से भर गया। छोटे से बीज में वृक्ष बनने की क्षमता प्रसुप्त है। अगर अनुकूल परिस्थिति, वातावरण व सम्पोषण मिलता है तो वह छोटा-सा बीज विशाल वटवृक्ष बनकर आने वाले राहगीर को शीतल छाया प्रदान करता है। ठीक इसी तरह हर व्यक्ति के अंदर विकास की अनंत संभावनाएं हैं। उन संभावनाओं को योगा के माध्यम प्रकट ही नहीं पल्लवित भी किया जा सकता है। योग वह अनुपम ऊर्जा है, जो व्यक्ति के भीतर निहित असीम क्षमताओं को प्रकट कर देती है।
भारत में योग की परम्परा हजारों साल पुरानी है। योग शब्द का शाब्दिक अर्थ है- मिलना या जुड़ना। योग शरीर और आत्मा के बीच सामंजस्य स्थापित करने का अद्भुत विज्ञान है। शरीर एवं मस्तिष्क के संबंधों में संतुलन स्थापित करने में योग की अहं भूमिका रहती है। योग का नियमित अभ्यास शारीरिक और मानसिक अनुशासन भी सिखलाता है। योग स्वयं को समझने और जानने का एक सकारात्मक प्रयास है महामनीषियों ने ठीक ही कहा कि जो स्वयं को गहराई से जानता है, वही संसार को गहराई से जान सकेगा। महर्षि पतंजलि ने भी इसी आशय को पुष्ट करते हुए लिखा है- 'तदा द्रष्टुः स्वरूपेऽवस्थानम्' अर्थात् योग को उपलब्ध हुआ व्यक्ति अपने स्वरूप में स्थित हो जाता है और जो अपने स्वरूप में स्थित होता है, वह सब कुछ उपलब्ध करने का हकदार बन जाता है। योग के द्वारा साधक स्वयं को जानकर ब्रह्माण्ड की सभी विभूतियों का अधिकारी बन जाता है। योग केवल शरीर की स्वस्थता के लिए ही नहीं बल्कि आत्मज्ञान की उपलब्धि के लिए भी करणीय है।
योग साधना पद्धति तो है ही किन्तु वास्तव में जीवन जीने की शैली का नाम है योग । योग हमारे विचारों एवं भावों को प्रभावित करता है। योग से व्यक्ति की पोजिटिव थिंकिंग पावरफुल बनती है। कहते हैं रंगों में ब्लड ग्रुप कोई सा भी हो पर दिलो-दिमाग में हमेशा 'बी पोजिटिव' ही होना चाहिए। सकारात्मक सोच से ही हमारे सुन्दर भाग्य का निर्माण होता है। हमारा संकल्प, चिंतन, विचार, सकारात्मक होंगे तभी हम बदलाव की प्रक्रिया से जुड़कर जीवन में खुशहाली कर सकते हैं।
योग हमारी धरोहर है। हजारों सालों से भारतीय लोगों की जीवन शैली का हिस्सा बनकर रहा है। हजारों साल पहले भी योग का महत्व था और आज भी उसकी प्रासंगिकता बरकरार है। आज भी अनेक व्यक्ति योग को अपने जीवन का अभिन्न अंग मानते हैं। वर्तमान में चारों ओर योग की गूँज सुनाई दे रही है। योगाचार्य, योगप्रशिक्षक तनावमुक्ति एवं पीसफुल लाईफ के लिए योग का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। योग एक प्रायोगिक जीवन पद्धति है। अनेक व्यक्तियों ने योग से स्वास्थ्य प्राप्त किया है एवं मानसिक आह्लाद से सम्पन्न बने हैं। विभिन्न धर्मगुरुओं ने भी अपने अपने अनुभव आदि के आधार पर योग को प्रसारित करने का प्रयत्न किया है और आज भी कर रहे है ।
जैनाचार्य प्रेक्षा प्रणेता आचार्य महाप्रज्ञ जी ने प्रेक्षाध्यान पद्धति के द्वारा सम्पूर्ण योग पद्धति को प्रदान कर राष्ट्र पर बहुत बड़ा उपकार किया है। प्रेक्षाध्यान अपने आप में एक वैज्ञानिक पद्धति से जुड़ी साधना है। प्रेक्षाध्यान योग साधना के द्वारा शरीर, मन, श्वास व भाव सबको एक दिशागामी बनाकर जीवनगत समस्याओं का समाधान प्राप्त किया जा सकता है। योग गुरु बाबा रामदेव, श्री श्री श्री रविशंकर महाराज आदि महानुभावों का इस दिशा में श्लाघनीय प्रयत्न हो रहा है।
योग के माध्यम से आत्म-तुष्टि, शान्ति और असीम ऊर्जा के जागरण का अनुभव किया जा सकता है। हमारे देश की ऋषि परम्परा का संवाहक योग आज मन में नई स्फुरणा जगा रहा है। योग हमारे समृद्ध इतिहास का अभिन्न हिस्सा है। नियमतः निरंतर योगा करने से भीतर में उत्साह अभिवर्धित होता रहता है।
योग हमारी प्राचीन पद्धति है। परन्तु वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर योग को विख्यात कराने का श्रेय माननीय श्री नरेन्द्र मोदीजी को जाता है। दि. 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के संबोधन के दौरान दि. 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने की घोषणा की गई। पहला अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस दि. 21 जून 2015 को मनाया गया। अब निरंतर यह क्रम जारी है। इसकी उपयोगिता को देखकर ऐसा लगता है कि सम्पूर्ण विश्व सदियों सदियों तक दि. 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाता रहेगा।
आज के दिन यह संकल्प स्वीकार करें कि मैं मन की प्रसन्नता के लिए, शरीर की स्वस्थता के लिए एवं भावों की निर्मलता के लिए प्रतिदिन योगाभ्यास करूँगा । बढ़ती हुई बीमारियों पर अंकुश लगाने की यही रामबाण औषधि है। योग के द्वारा शरीर, मन एवं आत्मा तीनों को शक्ति सम्पन्न बना सकते हैं। आइए ! योग करें एवं जन-जन को जोड़ने का प्रयत्न करें।