दया इज बैक,लेकिन परंतु खत्म :22 सितंबर को ग्रहण किया कार्यभार
मधुसूदन सिंह
बलिया ।। सारे लेकिन परंतु को धत्ता बताते हुए आखिरकार दया बाबू ने सीएमओ कार्यालय में कार्यभार ग्रहण कर ही लिया । बता दे कि माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के आदेश पर 2019 में दया बाबू ने सीएमओ कार्यालय में अपना योगदान दिया था लेकिन जब कोरोना की पहली लहर शुरू हुई और सरकार ने किसी भी कर्मचारी के स्थानांतरण पर रोक लगा दी थी,तभी 30 जनवरी 2021 को निदेशक प्रशासन के आदेश पर बलिया से चित्रकूट के लिये स्थानांतरित कर दिया गया ।इस आदेश के खिलाफ दया बाबू ने माननीय उच्च न्यायालय में याचिका दायर करते हुए आदेश को निरस्त करने की मांग की गई ,जिस पर माननीय उच्च न्यायालय ने 5 जुलाई 2021 को स्थगन आदेश दिया गया ।
कोर्ट से स्थगन आदेश मिलने के बाद दया बाबू द्वारा सीएमओ बलिया के यहां योगदान देने हेतु आवेदन प्रस्तुत किया गया । लेकिन सीएमओ बलिया द्वारा जब तक उच्चाधिकारियों से मार्गदर्शन नही आ जाता,तब तक दया बाबू को योगदान देने से रोक दिया गया । मजबूर होकर एक बार फिर दया बाबू को माननीय उच्च न्यायालय में अवमानना याचिका दायर की गई । अवमानना याचिका संख्या 3445/2021 में माननीय उच्च न्यायालय ने 3 सितंबर 2021 को आदेश पारित करते हुए अपने 2 जुलाई 2021 के आदेश का अनुपालन करने का आदेश ही नही दिया बल्कि 7 अक्टूबर 2021 तक दया बाबू का अवशेष वेतन भी देकर कोर्ट में प्रतिशपथ पत्र दाखिल करने का भी आदेश दिया ।
3 सितंबर 2021 के आदेश के क्रम में शासन ने 14 सितंबर 2021 को निदेशक प्रशासन को आदेश का अक्षरतः अनुपालन सुनिश्चित करने का आदेश दिया । शासन से आदेश मिलते ही 15 सितंबर 2021 को निदेशक प्रशासन डॉ राजा गणपति आर द्वारा सीएमओ बलिया को कोर्ट के आदेश 2 जुलाई 2021 का अनुपालन करने का आदेश दिया और 7 अक्टूबर 2021 से पहले अनुपालन कर दिये जाने का प्रति शपथपत्र दाखिल करने का भी आदेश दिया । इस पत्र के आने के बाद 22 सितंबर 2021 को दया बाबू द्वारा सीएमओ कार्यालय में अपना योगदान देते हुए कार्यभार ग्रहण कर लिया गया है ।
बता दे कि 2 जुलाई 2021 के आदेश में माननीय उच्च न्यायालय ने शासन,निदेशक प्रशासन व सीएमओ बलिया को निर्देश दिया है कि याचिका कर्ता दया बाबू को तत्काल कार्यभार ग्रहण कराते हुए इनके पिछले दिनों के बकाया वेतन का भुगतान करते हुए कोर्ट को शपथ पत्र देकर अवगत कराएं । लगभग 4 साल से काफी जद्दोजहद के बाद आखिकार दया बाबू अपनी कुर्सी पाने में सफल हो ही गये ,यानि दया इज बैक ।