मां एक शब्द नही सम्पूर्ण ब्रह्मांड है , मां के नीचे ही सारा जहान है
पुण्यतिथि 20 सितंबर 2012 पर काव्यांजलि के साथ श्रद्धांजलि
मधुसूदन सिंह
बलिया ।। मां एक शब्द नही सम्पूर्ण ब्रह्मांड है , मां के नीचे ही सारा जहान है , यह यूँ ही नही कहा जाता है क्योंकि मां जब अपने बच्चों की हिफाजत के लिये उतर आती है तो वह दुर्गा ,काली , महाशक्ति बन जाती है और सबको पता है पूरे ब्रह्मांड में शक्ति से टकराने की ताकत न तो देवो में है , न दानवो में , नही मनुष्यो में होती है । मां जहां शक्ति की रूप है वही ममता की खान और ऐश्वर्य की भंडार भी है । मां के रहते कोई गरीब नही होता , और मां की दुआओ के बिना कोई अमीर भी नही होता ।
दोस्तो , मेरी मां ने भी पग पग पर मेरा साथ ही नही दिया बल्कि जब जरूरत पड़ी मेरी ढाल बनकर मेरी रक्षा भी की । 20 सितम्बर 2012 को मां ने तन से तो साथ छोड़ दिया परन्तु मन से आज भी मेरा पगपग पर मार्गदर्शन और रक्षा करती है । मां याद तो बहुत आती है , उसका रात में मेरे घर लौटने तक इंतज़ार करना मुझे आज भी याद आता है । घर आते ही लगता है जैसे मां कह रही हो इतनी देर क्यो लगा दी , जल्दी खाना खा लो । दुनिया मे सब लोगो की मां का रूप एक जैसा ही होता है । यही सोचकर मैने आज मां पर विभिन्न कवियों द्वारा लिखी हुई कविताओं को संग्रहित करके अपनी माँ सहित दुनिया की सभी मांओ को विनम्र भाव से समर्पित करते हुए मां की कविता सभी मांओ को सुनाने जा रहा हूँ ।
दोस्तों, माँ पर कविताएं लिखना इतना आसान नहीं है, मगर मै अपनी कुछ इकट्ठा की हुई माँ की कविता को आपके साथ शेयर कर रहा हूँ| उम्मीद करता हूँ की आपको माँ की ममता पर हिंदी कविता अच्छी लगे ।
माँ की ममता का कोई मूल्य नहीं है । मैं आपको बता दूँ की जिन लोगों की माँ होती है वे बहुत ही भाग्यशाली होते हैं उनकी किस्मत कभी भी उनका साथ नहीं छोडती है और दुनिया की सबसे कीमती चीज माँ पिता का आशीर्वाद होता है ।
जिसके पास ये है वे सबसे धनी व्यक्ति है| दोस्तों, आज मैं आपके लिए कुछ कविताएं है जो विभिन्न कवियों ने लिखी,कुछ के नाम जानता हूँ ,कुछ के नही ,लेकिन इतना जानता हूँ कि मेरी नजर में ये सर्वश्रेष्ठ कविताये है,जिनको नीचे प्रस्तुत कर रहा हूं ।
मां स्व शांति सिंह के चरणों में मधुसूदन सिंह द्वारा समर्पित
तू लौट आ माँ ,तेरी याद बहुत आती है
ये घर घर न रहा तेरे जाने के बाद मकान हो गया,
ऐसा पसरा है सन्नाटा मानो श्मशान हो गया,
काम पर जाता हूँ तो लौट आने का दिल नहीं करता,
यहाँ गूंजती है तेरी आवाज और मैं हूँ सन्नाटों से डरता,
थक हार कर शाम को जब मैं घर वापस आता हूँ,
पूरे घर में बस एक तेरी कमी पाता हूँ,
लेट जाता हूँ तो लगता है अभी सिर पर हाथ फिराएगी,
देख के अपने बच्चे को हल्का सा मुस्काएगी,
मगर ख्यालों से अब तू बाहर कहाँ आती है
हो सके तो तू लौट आ माँ तेरी याद बहुत आती है ।।
मैं कभी न रूठूँगा तुझसे
तू रूठी तो तुझे मनाऊंगा
दूर कहीं भी तुझसे मैं इक पल को भी न जाऊंगा,
पलकों पे आंसू मेरे हैं
तू आके इन्हें हटा जा ना,
अब नींद न आती आँखों में
तू मुझको लोरी सुना जा ना,
न अब क्यों डांटती है मुझको
न ही प्यार से बुलाती है,
क्यों इतना दूर गयी मुझसे
कि याद तेरी रुलाती है
मगर ख्यालों से अब तू बाहर कहाँ आती है।
हो सके तो तू लौट आ माँ तेरी याद बहुत आती है ।।
चल बस कर अब ये खेल मेरे संग जो खेले है आँख मिचौली का
दिवाली पे न दिये जले हैं फीका लगे है रंग अब होली का,
मैं जानता हूं अब न आएगी फिर भी ये दिल की धड़कन तुझे बुलाती है,
हो सके तो तू लौट आ माँ ,तेरी याद बहुत आती है ।।
घुटनों से रेंगते-रेंगते,
कब पैरों पर खड़ा हुआ,
तेरी ममता की छाँव में,
जाने कब बड़ा हुआ..
काला टीका दूध मलाई
आज भी सब कुछ वैसा है,
मैं ही मैं हूँ हर जगह,
माँ प्यार ये तेरा कैसा है?
सीधा-साधा, भोला-भाला,
मैं ही सबसे अच्छा हूँ,
कितना भी हो जाऊ बड़ा,
“माँ!” मैं आज भी तेरा बच्चा हूँ..।।
बचपन में माँ कहती थीं
बिल्ली रास्ता काटे,
तो बुरा होता है
रुक जाना चाहिए…
बचपन में माँ कहती थीं
बिल्ली रास्ता काटे,
तो बुरा होता है
रुक जाना चाहिए…
मैं आज भी रुक जाता हूँ
कोई बात है जो डरा
देती है मुझे..
यकीन मानो,
मैं पुराने ख्याल वाला हूँ नहीं …
मैं शगुन-अपशगुन को भी नहीं मानता…
मैं माँ को मानता हूँ…
मैं माँ को मानता हूँ….
दही खाने की आदत मेरी
गयी नहीं आज तक..
दही खाने की आदत मेरी
गयी नहीं आज तक..
माँ कहती थीं…
घर से दही खाकर निकल
तो शुभ होता है..
मैं आज भी हर सुबह दही
खाकर निकलता हूँ…
मैं शगुन-अपशगुन को भी नही मानता…
मैं माँ को मानता हूँ…
मैं माँ को मानता हूँ….
आज भी मैं अँधेरा देखकर डर जाता हूँ,
भूत-प्रेत के किस्से खोफ पैदा करते हैं मुझमें,
जादू , टोने, टोटके पर मैं यकीन कर लेता हूँ…
बचपन में माँ कहती थी
कुछ होते हैं बुरी नज़र लगाने वाले,
कुछ होते हैं खुशियों में सताने वाले…
यकीन मानों, मैं पुराने ख्याल वाला नहीं हूँ…
मैं शगुन-अपशगुन को भी नहीं मानता….
मैं माँ को मानता हूँ….
मैं माँ को मानता हूँ…
मैंने भगवान को भी नहीं देखा जमीन पर
मैंने अल्लाह को भी नहीं देखा
लोग कहते है,
नास्तिक हूँ मैं
मैं किसी भगवान को नहीं मानता
लेकिन माँ को मानता हूँ…
में माँ को मानता हूँ….||
मेरे सर पर भी माँ की दुवाओं का साया होगा,
इसलिए समुन्दर ने मुझे डूबने से बचाया होगा..
माँ की आगोश में लौट आया है वो बेटा फिर से..
शायद इस दुनिया ने उसे बहुत सताया होगा…
अब उसकी मोहब्बत की कोई क्या मिसाल दे,
पेट अपना काट जब बच्चों को खिलाया होगा..
की थी सकावत उमर भर जिसने उन के लिए
क्या हाल हुआ जब हाथ में कजा आया होगा
कैसे जन्नत मिलेगी उस औलाद को जिस ने
उस माँ से पैहले बीवी का फ़र्ज़ निभाया होगा…
और माँ के सजदे को कोई शिर्क ना कह दे
इसलिए उन पैरों में एक स्वर्ग बनाया होगा…
मुझको हर हाल में देगा उजाला अपना,
चाँद रिश्ते में तो लगता नहीं मामा अपना…
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों से माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना…
हम परिन्दों की तरह उड़ के तो जाने से रहे,
इस जन्म में तो न बदलेंगे ठिकाना अपना
धूप से मिल गए हैं पेड़ हमारे घर के,
हम समझते थे,कि काम आएगा बेटा अपना..
सच बता दूँ तो ये बाज़ार-ए- मुहब्बत गिर जाए,
मैंने जिस दाम में बेचा है ये मलबा अपना…
आइनाख़ाने में रहने का ये इनाम मिला,,
एक मुद्दत से नहीं देखा है चेहरा अपना..
तेज़ आँधी में बदल जाते हैं सारे मंज़र
भूल जाते हैं परिन्दे भी ठिकाना अपना..
माँ और भगवान
मैं अपने छोटे मुख कैसे करूँ तेरा गुणगान,
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान..
माता कौशल्या के घर में जन्म राम ने पाया,
ठुमक-ठुमक आँगन में चलकर सबका हृदय जुड़ाया..
पुत्र प्रेम में थे निमग्न कौशल्या माँ के प्राण,
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान..
दे मातृत्व देवकी को यसुदा की गोद सुहाई..
ले लकुटी वन-वन भटके गोचारण कियो कन्हाई,
सारे ब्रजमंडल में गूँजी थी वंशी की तान..
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान..
तेरी समता में तू ही है मिले न उपमा कोई,
तू न कभी निज सुत से रूठी मृदुता अमित समोई..
लाड़-प्यार से सदा सिखाया तूने सच्चा ज्ञान,
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान…
कभी न विचलित हुई रही सेवा में भूखी प्यासी..
समझ पुत्र को रुग्ण मनौती मानी रही उपासी,
प्रेमामृत नित पिला पिलाकर किया सतत कल्याण..
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान…
‘विकल’ न होने दिया पुत्र को कभी न हिम्मत हारी,
सदय अदालत है सुत हित में सुख-दुख में महतारी..
काँटों पर चलकर भी तूने दिया अभय का दान,
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान…
अंखियां भर आईं...
मां तेरी याद फिर आई,
अंखियां भर आईं ।
तेरा वो काला टीका लगा देना ,
लाल धागा कमर से देना बांध
ताकि लग न जाए,
तेरी प्यारी बेटी को नजर ।
मां तेरी याद...
तब न समझ सकी थी
तेरा वो घर भर में
लोबान लेकर घूमना,
ताकि लग न जाए,
तेरे घर को नजरें बुरी ।
मां तेरी याद...
"Adetti"
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बच्चों में ही बसती है माँ की जान...
वो मेरी 'माँ' ही है, जो मुझे इस सृष्टि में लाई,
इस अजूबे दुनिया से, मुझे परिचित कराई।
'माँ' जैसा प्यारा शब्द, कहीं न मिले जहां में,
'माँ' का प्यार जीवन में, सबसे बड़ा सुखदाई।।
सचमुच हर 'माँ' ही, एक समूचा घर होती है,
'माँ' ही इस जग में, सबसे बड़ा मंदिर होती है।
'माँ' विनम्रता, सहिष्णुता व मानवता की मूर्ति,
इक बच्चे के लिए 'माँ', अभेद्य दीवार होती है।।
हर 'माँ' चाहे कि मेरे बच्चे, लायक बन जाएँ,
'माँ' बच्चों को सभ्यता और संस्कार सिखाएँ।
'माँ' ही बच्चों की, प्रथम शिक्षक कही जाती,
अपने बच्चे के लिए 'माँ', जग से लड़ जाएँ।।
बच्चों के लिए 'माँ' ही, सबसे बड़ा उपहार है,
'माँ' बच्चों के लिए, खुद में ही इक संसार है।
जिन बच्चों के 'माँ' नहीं हैं, उनका दर्द पूछो,
'माँ' का रूप ही, इस सृष्टि का विस्तार है।।
'माँ' का जीवन प्रकृति का, सबसे बड़ा वरदान,
कभी बेटी, बहन तो कभी, पत्नी की पहचान।
'माँ' से ही घर सँवरता है, फूल जैसे महकता है,
अपने बच्चों में ही बसती है, हर 'माँ' की जान।।
लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
बस्ती (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 7355309428
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न जाने कहाँ तू चली गई माँ ,
वापस आजा ओ माँ
तेरी याद बहुत आती है
यादें रुला जाती हैं।
आपस में लड़ते थे जो हम भाई बहन
तू समझाती थी रहो सब मिल जुल कर,
दुःख अपने न हमको बताती थी तू,
देखकर हमको मुस्कुराती थी तू,
भूखे हमको कभी भी न सोने दिया
खाली पेट तो खुद सो जाती थी तू,
न जाने कहाँ तू चली गई माँ,
आज इतना बुलाने पे क्यों नहीं आती है?
बीतें पलों की यादें रुला जाती हैं ।।
जिंदगी में जो खुशियों की है ये बहार
आशीर्वाद है तेरा ये तेरा है प्यार
तेरी बातों को अब तक न भूलें हैं हम
जिंदगी में बहुत दुःख झेले हैं हम
तू दिखती नहीं हैं कहीं भी
तेरा अहसास तो फिर भी साथ ही रहता है
न जाने कहाँ तू चली गई माँ,
अब खुशियाँ भी पास न आती हैं,
बीतें पलों की यादें रुला जाती हैं।
प्रिय दोस्तों, अगर आपको माँ की कविताओ का यह कलेक्शन अच्छा लगे तो इस लेख को जितना हो सके उतना फेसबुक, ट्विटर, गूगल+ और व्हाट्सएप्प पर शेयर करें जिससे बाकी सभी लोग भी अपनी माँ के लिए कविता से ही सही अपने श्रद्धासुमन अर्पित कर सके ।
निवेदक - मधुसूदन सिंह