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दोनों गठबंधन कोशिश में है करने को लाख पार : क्या हार का सिलसिला तोड़ पायेंगे संग्राम या हैट्रिक लगाएंगे मंत्री ?

 



मधुसूदन सिंह

बलिया ।। जनपद का 360 फेफना विधानसभा सीट का चुनावी संग्राम भाजपा गठबंधन और सपा गठबंधन के लिये नाक की जंग में तब्दील हो गया है । लगभग पौने चार लाख मतदाताओं वाले इस विधानसभा में एक तरफ वर्तमान विधायक व मंत्री उपेन्द्र तिवारी लगातार जीत का हैट्रिक लगाने की जुगत में है तो वही सपा गठबंधन के प्रत्याशी संग्राम सिंह यादव अम्बिका चौधरी के सहारे लगातार हारने वाले प्रत्याशी का लेवल अपने ऊपर से हटाने के प्रयास में लगे हुए है ।

चाहे भाजपा गठबंधन हो या सपा गठबंधन हो,दोनों को जातीय समीकरणों के आधार पर जीत मिलने की आशा है । वही कांग्रेस से शेरे बलिया चित्तू पांडेय के पौत्र जैनेंद्र पांडेय मिंटू  प्रियंका गांधी के नारे - लड़की हूं लड़ सकती हूं,के आधार पर महिलाओ का वोट और स्वजातीय वोट के साथ कांग्रेस के कैडर वोट को आकर्षित करने में लगे हुए है ।

भारतीय जनता पार्टी से टिकट मांगने और न मिलने पर बागी होकर जेडीयू से चुनाव लड़ रहे अवलेश सिंह स्वजातीय मतदाताओं के साथ साथ मौर्य/वर्मा मतदाताओं में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नाम पर सेंधमारी कर रहे है, जो भाजपा गठबंधन को ही नुकसान कर रहे है । वही वीआईपी से विवेक सिंह कौशिक जो पिछले चुनाव में उपेन्द्र तिवारी के साथ थे,इस बार आमने सामने चुनावी समर में है ।

गठबंधनों के जातीय समीकरणों पर निगाह दौड़ाना बहुत जरूरी है ।वर्तमान समय मे भाजपा गठबंधन के साथ राजपूत (30) भूमिहार (30)चौहान (10)ब्राह्मण (15) बनिया( 25 ) ,निषाद (15) को जोड़कर देखा जा रहा है ।

सपा गठबंधन के साथ यादव (70 )मुसलमान (30)राजभर(35) चौहान (10) को जोड़कर देखा जा रहा है । बसपा उम्मीदवार मैदान में जरूर है लेकिन उसकी उपस्थिति बस दिखने वाली है,चुनाव जीतने या टक्कर देती नही दिख रही है । जबकि बसपा के पास दलित (45) अन्य दलित (20) का एक तयशुदा मतदाता है । लेकिन प्रत्याशी का कमजोर होना,इनका बसपा के निशान पर बटन दबाने पर संशय पैदा कर रहा है ।

राजपूत ब्राह्मण राजभर और अन्य दलित तय करेंगे जीत हार का समीकरण

पिछले विधानसभा चुनाव में इस विधानसभा में 56 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान किया था और उपेन्द्र तिवारी 39 प्रतिशत मत शेयरिंग के साथ जीत हासिल किये थे । वही इस चुनाव में इनको सजातीय भूमिहार, राजपूतों, ब्राह्मणों का एक तरफा समर्थन मिला था, जो इस बार नही दिख रहा है । इस बार सवर्ण बिरादरी के ही इनके तीन सहयोगी चुनाव में खड़े होकर सवर्ण वोटों में सेंधमारी करके इनसे दूर करते दिख रहे है । ऐसे में श्री तिवारी का जोर अन्य दलित मतदाताओं और राजभरों में सेंधमारी करके अपने से दूर हो रहे मतों के नुकसान को बराबर करने पर दिख रहा है । साथ ही इनके द्वारा गरीबो को मुफ्त राशन,शौचालय और पीएम व सीएम आवास को पारदर्शी  व भ्रष्टाचार मुक्त तरीके से देने को सरकार की उपलब्धि दिखाकर अपने लिये समर्थन मांगा जा रहा है । वही श्री तिवारी पिछली बार की तरह ही राजभरों के मत को अपने तरफ करने की भी जुगत में लगें हुए है ।





वही सपा गठबंधन जातीय समीकरणों व धुर विरोधी दो नेताओ के एक साथ होने से गणितीय रूप से बढ़त में तो दिख रही है लेकिन हकीकत में उतनी मजबूत नही दिख रही है। सपा प्रत्याशी को अपने मूल वोट यादव व मुसलमान पर जहां पूर्ण भरोसा है ,तो वही ओमप्रकाश राजभर के समर्थन के बाद इनको राजभर समाज का मत शत प्रतिशत मिलने का भरोसा है । जबकि पिछले चुनाव में राजभर भाजपा के साथ थे,जिसके कारण स्थानीय राजभर नेता मंत्री उपेन्द्र तिवारी के संपर्क में थे और उपेन्द्र तिवारी इन्ही नेताओ के सहारे सेंधमारी में लगे हुए है । साथ ही ओवैसी की पार्टी के प्रत्याशी मुसलमान वोटरों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिये 23 प्रतिशत व 9 प्रतिशत का नारा दे रहे है । इनका कहना है कि हम 23 प्रतिशत मुसलमानों का वोट पाकर 9 प्रतिशत यादवों का राज, अब नही चलेगा ।




विजेता बनने के लिये चाहिये 1 लाख 20 हजार से अधिक वोट

चूंकि इस बाद की लड़ाई सीधे तौर पर भाजपा गठबंधन और सपा गठबंधन के बीच है और बसपा लड़ाई से कोसो दूर है,इस लिये इस बार अनुमानतः 60 प्रतिशत मतदान के साथ विजेता प्रत्याशी को 1 लाख 20 हजार हासिल करने होंगे । चुनावी रुझानों पर अगर गौर करे तो दोनों गठबंधन एक लाख पार दिख रहा है । दोनों गठबंधनों में भितरघात चरम पर है । यही कारण है कि दोनों गठबंधन दलित व अन्य दलित मतदाताओं में सेंधमारी करके अपने अपने पक्ष में करने के लिये प्रयासरत है।