संकल्पपूर्ति के साथ कल्पवास का अनुष्ठान पूर्ण करके नम आँखों से विदा हुए कल्पवासी : एक दूसरे का पता और मोबाइल नंबर के साथ कई यादों को सहेजा
फिर बुलाने की माँ गंगा से की प्रार्थना , वर्ष भर के लिए दिया जलाया
डा० भगवान प्रसाद उपाध्याय
प्रयागराज ।। माघ मेला के कल्पवासी आज पड़ोसियों से गले लग कर फूट फूट कर रोए और भरी आँखों से एक दूसरे का पता और मोबाइल फोन नंबर लिया महीने भर की यादों की पोटली सहेजा और माँ गंगा के तट पर वर्ष भर का दिया जलाया संयुक्त रुप से अगले साल फिर बुलाने की गंगा मैया से विनती की ।
दान पुण्य के आखिरी दिन खुले मन से दिल खोल कर दान दिया विभिन्न शिविरों में आज बड़ा भंडारा आयोजित किया गया और पंडितों पुजारियों पंडों तथा साधु संतों को भी जी भर कर अन्नदान वस्त्र दान दक्षिणा दी एक महीने तक ब्रह्म मुहूर्त से लेकर देर शाम तक स्नान पूजा पाठ आरती चाय बाल भोग भंडारा प्रसाद कथा वार्ता सत्संग भजन कीर्तन आदि में समय ब्यतीत करते कितना शीघ्र बीत गया यह पता ही नहीं चल पाया ।
ज्ञान वैराग्य भक्ति का अपूर्व महासंगम , जो अध्यात्म के मार्ग पर चलने की उत्कट अभिलाषा में बांधे रहता था आज उस से भारी मन से बिदा होने का दुख सबको बरबस रुला रहा था ।
बिछड़ने का कष्ट वैसे भी बहुत असहनीय होता है । कल्प वासियों के जाने के बाद लगभग दो तिहाई मेला पूरी तरह से खाली हो गया है । बड़े-बड़े साधु संतों के शिविर कल परसो तक हटा लिये जाएंगे । फिर जहां लाखों लोग मां गंगा की गोद में बैठकर आराधना किया करते थे वहां केवल रेत और धूल उड़ेगी । कल्पवास का अनुष्ठान माघ माह में जब भगवान सूर्य मकर राशि में आते हैं तो शुरू हो जाता है।
इस वर्ष अत्यधिक सावधानी और शासन प्रशासन द्वारा चौकसी के बावजूद कई स्नान पर्वों पर आस्था का समुद्र उमड़ चला था और वहां पर कोरोना के लिए जारी की गई सभी सावधानियां गंगा में तिरोहित हो गई थी । ऐसा लग रहा था जैसे मेला क्षेत्र में कहीं भी किसी को भी रंच मात्र का मन में भय नहीं था । बस केवल आस्था और उमंग उत्साह गंगा में डुबकी लगाने की कल्पना जब साकार हुई तो लोग गंगा मैया के जयकारे से पूरे क्षेत्र को भक्तिमय बना दिया ।
कल्प वास में आने के लिए तैयारियां लगभग 1 महीने अथवा 15 दिन पूर्व ही शुरू हो जाती हैं । लेकिन विदाई के समय सिर्फ एक या 2 दिन में सब कुछ समेटकर लोग घर पहुंच जाते हैं । फिर शुरू होती है भौतिक दुनिया की वह सांसारिकता जिससे विरक्त होकर लोग वहां सिर्फ अध्यात्म की त्रिवेणी में गोता लगाते हैं ।सच्चे अर्थों में उन शिविरों में दान पुण्य का सर्वाधिक महत्व देखा गया जहां प्रतिदिन हजारों लोग भंडारे में भोग प्रसाद पाते थे और पूरे महीने भर अनेक संस्थाओं ने अन्य क्षेत्र चलाया ।