पहले फर्जी मुकदमे में जेल , अब जेलर आजमगढ़ के माध्यम से पत्रकारों को न्याय से रखा जा रहा है दूर
मधुसूदन सिंह
बलिया ।। जिला प्रशासन द्वारा फर्जी आरोपो के द्वारा पहले बलिया के तीन पत्रकार साथियों को जेल भेजा गया , अब आजमगढ़ जेल अधीक्षक के माध्यम से इनको न्याय न मिले इसके लिये अड़ंगा लगवाया जा रहा है । यह कृत्य दर्शा रहा है कि बलिया के जिला प्रशासन को यह भान हो गया है कि माननीय न्यायालय में इनके द्वारा पत्रकारों पर लगाये गये आरोप टिकने वाले नही है और माननीय न्यायालय से ये लोग तत्काल बरी हो जाएंगे । ऐसे में एक तरफ जहां जिला प्रशासन गिरफ्तार पत्रकारों पर मुकदमों का बोझ बढ़ाता जा रहा है, वही पत्रकारों को न्याय मिलने में देर हो इसके लिये जेल अधीक्षक आजमगढ़ का सहारा ले रहा है ।
बता दे कि बलिया में ग्रामीण न्यायालय की स्थापना के खिलाफ अधिवक्ताओं की हड़ताल 11 अप्रैल तक चल रही है । इस कारण से गिरफ्तार पत्रकारों की रिहाई में बिलम्ब हो रहा है । हड़ताल की स्थिति में कैदियों को भी न्याय से वंचित नही किया जा सकता है । ऐसे कैदी जो स्वयं अपने वाद को न्यायालय के समक्ष रखना चाहते है वे जेलर के सामने ब्यानहल्फी और अदालती कागजातों पर हस्ताक्षर करके न्यायालय के सामने पेश हो कर न्याय की गुहार लगा सकते है । इनके हस्ताक्षर को जेलर प्रमाणित करके माननीय न्यायालय को भेजता है, तब सुनवाई होती है ।
बलिया का जिला प्रशासन आजमगढ़ के जेलर के साथ साजिश करके 31 मार्च को हुए हस्ताक्षर वाले कागजातों को 5 अप्रैल तक बलिया स्थित माननीय न्यायालय में आने ही नही दिया है जिससे दिग्विजय सिंह और मनोज कुमार गुप्ता झब्बू की यहां न्यायालय में पेशी ही नही होने पा रही है । यही नही सोमवार को अजित ओझा पर नगरा और सिकन्दरपुर थानों में दर्ज मुकदमो में भी 120 बी का आरोपी बनाकर इनकी जमानत न हो, साजिश किया है ।
अब यह लड़ाई जहां पत्रकारों की अस्मिता से जुड़ गई है, तो वही भ्रष्ट नौकरशाहों के खिलाफ मुखर होने और इनके कारगुजारी को शासन तक पहुंचाने का भी दायित्व पत्रकारों के ही कंधे पर आ गया है ।