मिड डे मील में नमक रोटी की खबर करने वाले पवन जायसवाल की कहानी : दूसरों के खाने की चिंता करने वाला आज खुद हुआ कौड़ी कौड़ी को मोहताज
क्या समाज के लिये लड़ना यानी कुछ यूं घुट घुट कर मरना है ?
मिर्जापुर ।। ग्रामीण अंचल की पत्रकारिता अपने आप मे कठिन और आज के दौर में जोख़िम भरी होती है ,पवन भी उन्ही जाँबाज पत्रकारों में गिने जाने लगे थे । मिड डे मील में गरीब बच्चों को नमक रोटी स्कूल परिसर में खिलाये जाने का मामला उठाने वाले पत्रकार पर पहले अधिकारियों ने कहर बरपाया और फिर अब ईश्वर ने भी नजरें टेढ़ी कर ली ।
एक स्वस्थ्य जीवन जी रहे पत्रकार को एका एक कैंसर ने अपने चपेट में ले लिया और वह चलते फिरते हुए व्यक्ति से लाश बन गया और उसकी मदद जनप्रतिनिधियों व सरकारी मुलाजिमों ने कितना किया है उसका अंदाज़ा लगाया जा सकता हैं। जबकि जन प्रतिनिधियों को यह अधिकार है कि वह अपने क्षेत्र के किसी भी व्यक्ति का जो आर्थिक रूप से कमजोर हो, उसका इलाज अपनी निधि/मुख्यमंत्री जी की निधि से करा सकते है लेकिन दुर्भाग्य है कि ऐसा नही हुआ ।
दुर्भाग्यपूर्ण तब रहा जब जायसवाल समाज में पैदा हुए शख्स की मदद भी उस समाज ने नही की जो सबसे ज्यादा आर्थिक मजबूत समाज माना जाता है ।बदहाली के इस दशा में उतना ही जिम्मेदार हमारी पत्रकार बिरादरी है जिसने ईमानदारी से अपनी भूमिका अदा नही की अन्यथा 5 से 10 लाख रुपये जिले का कलेक्टर इलाज के लिये घर दे जाते ।
अफसोस बेहद अफ़सोस ,
आज पवन तो कल मेरी बारी है ,
यही सच है इस मरे समाज का ।।
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जो साथी मुझे जानते पहचानते हैं कृपया अपनी क्षमता के अनुसार इनकी मदद कर दें ।
जो मदद न कर पाएं वे पोस्ट शेयर करते हुए पवन के स्वथ्य होने की कामना करें ।
धन्यवाद
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