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फौज का सामना करते हुए महावीर कोइरी हुए शहीद, लोगो ने रेलवे लाइन उखाड़ी, फौज ने किया नंगा तांडव



मधुसूदन सिंह

बलिया।। फौज के आ जाने के बाद अधिकारियो द्वारा बलिया पर फिर से कब्जा जमाने के लिये नंगा तांडव किया जाने लगा। लोगो को मारना पीटना तो आम बात थी, घरों को लूटना और आग लगाकर लोगो मे दहशत फैलाने लगे। सुखपुरा मे महंथ जी की हाथी को एक दिन पहले गोली मारना दहशत फैलाने की कड़ी का ही हिस्सा था। अंग्रेज किसी भी क़ीमत पर पूरे बलिया जनपद पर फिर से कब्जा जल्द से जल्द करना चाह रहे थे।

बाँसडीह तहसील पर फौज का कब्जा

 बलिया जिले के बांसडीह तहसील पर वहां की जनता ने सबसे पहले कब्जा किया था। फौज के बलिया थाने पर पहले शहर ही में लूटने-फुंकने पर मार-पीट कर आतंक जमाने का कार्य किया गया । 24 अगस्त को बांसडीह के थानेदार एक फौज की टुकड़ी लेकर बांसडीह थाने और तहसील पर कब्जा करने पहुंचे। थाने पर पहुँचते ही मोटर से फायर करते हुए गढ़ पर चले गए। थानेदार और फौज की खबर पाकर वहां की जनता एकत्रित होकर उनका पीछा की और गढ़ को घेर ली। सैनिकों ने गढ़ पर से ही गोली चलाना शुरू किया जिससे श्री राम नगीना सिंह और शंकर भर वही शहीद हो गए और बहुत से लोग गोली से घायल हुए । जब लोगों ने देखा कि इन्हें पकड़ना मुश्किल है तो लोग वहां से चले आए। लोगों के हटते ही फौज वाले थानेदार के साथ गांव में आतंक जमाना शुरू कर दिए और बहुत से मकानों में आग लगा दिये ।


24 तारीख को ही फौज सहतवार पहुंची। उस दिन बाजार बन्द था। रास्ते में जो लोग मिले उन्हें फौज वाले बुरी तरह पीटते जाते थे। श्री जमुना राय का मकान पुलिस द्वारा जला दिया गया। श्री इन्द्रदेव प्रसाद के मकान पर पूर्ण रूप से कब्जा कर लिया गया और उनकी जायदाद पुलिस द्वारा ले ली गई । श्री कृष्ण प्रसाद की दूकान को फौज वालों ने लूट लिया और श्री सरजू प्रसाद के मकान को खाली करा कर थाना कायम कर दिया।

छाता में हमला,महाबीर कोइरी हुए शहीद 

फौजी सैनिकों का हमला छाता गाँव में हुआ जहाँ जनता ने फौज वालों का सामना डट कर किया । किन्तु फौज द्वारा गोलियां चलाने के कारण वह टिक न सकी और उसके पैर उखड़ गये। इस गोली काण्ड में श्री महावीर कोइरी को गोली लगी और वे वहीं शहीद हो गए। घायल लोगों में सर्व श्री कपिलदेव कान्दू, कुबेर भर,बैजनाथ बरई और बिजली अहीर आदि थे।

सिकन्दर पुर में लूट-फूंक


सिकन्दरपुर थाने के थानेदार कुछ सैनिकों को लेकर सिकन्दरपुर कस्बे में फूंक मचाना शुरू कर दिया। श्री लक्ष्मी राम की वहाँ दो दूकानें थीं एक किराने की और दूसरी कपड़े की,दूकानों को तोड़ कर सभी सामान पुलिस वालों ने बाहर निकाली और आग लगा दी ।


किराने की दुकान में जब आग लगी तो उसमें श्री शंकर दत्त के दो नौकर के डर के मारे कोठी में जा छिपे और जोर-जोर से चिल्लाने लगे। नौकरों को बचाने के लिए श्री शंकर दत्त दौड़े आए जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। पीछे की दीवार को नौकरों ने किसी तरह तोड़ कर अपनी जान बचाई फिर भी एक नौकर कुछ जल ही गया।



24अगस्त को पन्दह के श्री गौरी शंकर उर्फ छोटे लाल के मकान की तरफ फौज बढ़ने लगी। किन्तु जब उन्हें मालूम हुआ कि वहाँ मुकाबला करने के लिए लोग तैयार है तो वह वापस लौट आयी। दूसरे दिन फिर फौज पूरी तैयारी के साथ पहुंच कर सामानों को लूटी। चलते समय मकान में आग लगा दी तथा श्री गौरी शक के हाथी को भी सरकार ने नीलाम कर दिया ।

 24 अगस्त को ही श्री शिव प्रसाद जी की बलिया वाली कोठी पर छापा मार कर सैकड़ों बोरा चीनी ट्रकों से पुलिस लाइन भेज दी गई और कन्ट्रोल रेट पर उसे बेचा गया। जिसका एक भी पैसा शिव प्रसाद जी को नहीं दिया गया ।



सीयर में फौज से मुकाबला

इधर बाँसडीह तहसील और बलिया शहर के आस-पास फौज व पुलिस का आतंक चरम सीमा पार कर चुका था। दूसरी तरफ बेल्थरा रोड में वहाँ की जनता उभांव थाने पर थाने को लूटने व फूंकने जा रही थी कि जन-समूह को पता चला कि एक अंग्रेज कैप्टन 5 बलूची सिपाहियों के साथ बेल्थरा रोड बाजार में आ गया है और बाबू देवेन्द्र सिंह के मकान में आग लगाया है। जन-समूह रास्ते से लौट आया । उभाँव थाने के थानेदार और सिपाही थाना छोड़ कर पहले ही भाग चुके थे और थाना बिलकुल खाली पड़ा था। जन-समूह को बाजार के निकट आने पर पता चला कि फौज के साथ श्री रियाज अहमद (इमलिया), मुहम्मद अजीम मुखिया (बेल्थरा रोड) धौर कुछ खुफिया वालों ने श्री द्वारिका प्रसाद के मकान में आग लगा दिया है।


नेताओं ने यह निश्चय किया कि फौजी कैप्टन को भी पकड़ लिया जाय। जन समूह रेलवे लाइन पर पहुंच कर रेल की पटरियों को उखाड़ने लगा ताकि फौज वाले ट्रेन से भाग न जायें। फौज वालों ने यह देख कर गोली चलाना शुरू किया। श्री चन्द्र दीप सिंह को गोली लगी और वे वहीं गिर पड़े। फौज वाले उन्हें उठा कर रेल के डिब्बे में फेंक दिए ।


गोली चलाने के कारण जन-समूह उत्तेजित हो उठा और नारा लगाते हुए कैप्टन पर धावा बोल दिया। कैप्टन ने एक मकान के आड़ से गोलियाँ चलाना शुरू कर दिया। सैनिकों ने भी फायर करना शुरू किया, जिससे टँगुनिया निवासी राम अवतार भर के सीने में गोली लगी और छेदते हुए निकल गई। श्री राम अवतार वहीं शहीद हो गया अंग्रेज कैप्टेन जब जाने लगा तो सीता राम सिंह ने उस पर गोली चलाई किन्तु वह बाल-बाल बच गया। कैप्टन ने गोली का जबाब फिर गोली चला कर दिया। श्री चन्द्रदीप सिंह की लाश नहीं मिल सकी उसे सैनिकों ने तुर्तीपार के पुल से घाघरा नदी में फेंक दिया।


मि० रियाज अहमद पर जो आक्रमण हुआ उसकी रिपोर्ट अव्वल इस प्रकार दर्ज है 


उगाँव थाने के सीयर (बेल्थरा रोड) कस्बे में एक सरकारी बीज-गोदाम है। एक भीड़ वहाँ 24 अगस्त को गई, जिसका इरादा बीज-गोदाम लूटने का था। रियाज अहमद और उनके साथी भीड़ को हटाते रहे । 24 अगस्त 1942 को दोपहर के करीब हल्दी के सीता राम सिंह एक बहुत बड़ी भीड़ के साथ वहाँ आए। साथ उनके भाई देवेन्द्र सिंह थे । उन्होंने कहा कि इमलिया के रियाज अहमद, सीयर के मुहम्मद अजीज और बिठुआ के मुर्तजा हुसेन बीज-गोदाम की हिफाजत कर रहे थे। जब भीड़ में आदमियों की संख्या बढ़ गई और अख्तियार से बाहर हो गयी तो अस्पताल वाली सड़क से मुदई और उसके साथी इमिलिया वापस जाने लगे। इस मौके पर देवेन्द्र सिंह और उनके भाई सीता राम सिंह, द्वारिका प्रसाद उनके भाई राम दीन कान्दु,मुन्नी लाल, हरद्वार प्रसाद, विश्वनाथ  तेली, राम स्वरूप धोबी, देवनाथ उपाध्याय हेड मास्टर डी० ए० वी० स्कूल धौर कई दूसरे  आदमी जिनका नाम मुदई नहीं जानता था किन्तु जरूरत पड़ने पर पहचान सकता है, मुदई पर टूट पड़े । मुदई जान बचाने की गरज से भागना चाहता था किन्तु सीता राम सिंह ने उस पर गोली चलाई। डर के मारे मुदई बैठ गया और गोली उसे नहीं लगी। तब ऊपर कहे हुए आदमियों ने उसे लाठी से मारा। इसी बीच फौजी अफसर आए । उन्होंने बीज-गोदाम और रेलवे लाइन बचाया ।