पाश्विक अत्याचारों से हिल गया बलिया
सांकेतिक चित्र
फौज का आगमन : पाश्विक अत्याचारों से हिल गया बलिया
23 अगस्त 1942
मधुसूदन सिंह
बलिया।।23 तारीख को जिले के कोने-कोने में लोग आजादी की साँस ले रहे थे किन्तु बलिया शहर में अगस्त 22/23 की रात मे 1बजे ही बलूची फौज से भरी एक ट्रेन बलिया स्टेशन पर नेदर सोल लेकर आ पहुँचा। स्टेशन पर उतरते ही फौज ने फायर किया और "अल्लाह हो अकबर" का नारा लगाया। स्टेशन से बाहर एक आदमी लालटेन लिए हुए पहरा दे रहा था उसे नेदर सोल ने पकड़ कर कहा कि बताओ कलक्टर का बँगला कहाँ है । फौज को देखते ही वह घबड़ा उठा और फौज वालों के साथ ही कलक्टर के बंगले की तरफ भयभीत होकर चल दिया। गाड़ी की सीटी की आवाज सुन कर सी० आई० डी० के लोगों को मालूम हुआ कि फौज आ गई है,जैसा कि दिन में चर्चा थी। वे स्टेशन की तरफ पता लगाने चल पड़े। थोड़ी दूर जाने के बाद उन्हें रास्ते में ही फौजी मिल गये जिन्हें कलक्टर साहब के पास ले गए। नेदर सोल ने कलक्टर से बात की और उनसे आंदोलन में भाग लेने वालों की सूची ली । सैनिकों के साथ कुछ सिपाहियों को लेकर पहली बार नेदर सोल ने स्वतंत्र बलिया की धरती पर रात के अन्धेरे में पैर रखने का साहस किया जब जनता आजादी की नींद सो रही थी ।
प्रातः काल 3 बजे से ही लोगों की गिरफ्तारी शुरू हो गई। सर्व प्रथम सर्व श्री उमा शंकर, सूरज प्रसाद, विश्वनाथ प्रसाद, हीरा पंसारी, बच्चा लाल और उनके पिता राजेन्द्र प्रसाद के मकानों पर छापा मारकर गिरफ्तार कर लिया गया । गिरफ्तारी के समय ही इनके घरों को भी लूट लिया गया और वही बुरी तरह पीटा गया। इन सभी लोगों को मोटर में भर कर कोतवाली लाया गया। सतनी सराय मुहल्ले में श्री गंगा विसुन की झोपड़ी फूँक दी गई। श्री राजेन्द्र प्रसाद के दो लड़के श्री रामाशंकर और विजय शंकर गिरफ्तारी से बच गये जो आन्दोलन में सक्रिय भाग लिये थे।
श्री मंगल राम के भृगु आश्रम स्थित मकान पर फौज वालों ने आक्रमण करके एक-एक चीज बाहर निकाला और उसे ट्रकों पर लाद कर कोतवाली ले गए। मकान में आग लगा दी तथा ऊपर के छत को तोड़ दिया गया। इस लूट में उनके घर की औरतों के जेवरात भी फौज वाले लूट लिये। इनके सबसे बड़े लड़के विश्वनाथ प्रसाद को सीने में संगीन लगाकर गिरफ्तार किया। गोली के फायर से श्री जगदीश प्रसाद,जो छोटा लड़का था वह घायल होकर गिर पड़ा, उसकी बाँह में गोली लगी ।
बगावत की सजा मौत होती है
सूर्योदय होने तक लगभग 30 व्यक्ति गिरफ्तार कर लिए गए। उन्हें पुलिस लाइन ले जाकर 3 घण्टे मुर्गा बनाकर पीटा गया। सर्व श्री उमा शंकर, सूरज प्रसाद, हीरा राम, विश्वनाथ प्रसाद, बच्चा लाल धौर राजेन्द्र प्रसाद को पेड़ पर चढ़ने के लिए कहा गया। ये लोग पेड़ पर चढ़ते जाते थे और नीचे से इनके चूतड़ों में संगीन लगाकर ठेला जाता था और कहा जाता था कि जल्दी चढ़ो । कई लोगों के चूतड़ों से खून बह निकला। श्री सूरज प्रसाद जिसकी उम्र १६ वर्ष की थी उसे जमीन पर पटक कर खूब पीटा गया। मजिस्ट्रेट ने उसी समय फैसला दे दिया कि 20 कोड़े और 7-7 वर्ष की कठोर सजा दी जाती है। मजिस्ट्रेट ने इन लोगों से कहा कि जानते हो, बगावत की सजा मौत होती है किन्तु तुम लोगों के साथ रियायत की गई है। मजिस्ट्रेटों को स्पेशल पावर दिया गया था बिना केस चलाए ही सजा करते थे। इन लोगों को चौक के मैदान में 20-20 कोड़े लगाए गए। जब ये लोग खड़े थे तो नेदर सोल ने कहा कि इस तरह नहीं मेरे सामने 20-20 कोड़े लगाया जाए। इन लोगों को उसी समय 20-20 कोड़े और लगाए गए । इन कोड़ों के लगने से सभी के शरीर खून से लथपथ हो गए। कुछ वहीं बेहोश हो कर गिर पड़े और श्री चन्द्रिका प्रसाद के छोटे भाई श्री सूरज प्रसाद उसी मार से शहीद हो गये ।
इधर यह जुल्म हो ही रहा था उधर मार्श स्मिथ भी पानी के जहाज से बलिया आ पहुँचा। उसके साथ भी फौजी लोग थे। नेदर सोल और मार्श स्मिथ दोनों मिलकर इतना आतंक जमाए कि लोग भयभीत हो उठे । मार्श स्मिथ ने शहर के ऐसे लोगों की रिपोर्ट खुफिया पुलिस से ली जो धनी-मानी थे और आन्दोलन में भाग लिए थे। इस रिपोर्ट को पाते ही श्री गोपी सिंह के मकान तक वह फौज के साथ आा पहुँचा और उनके मकान से कपड़े, जेवर निकालने लगा तथा हुक्म दिया कि मिट्टी का तेल छिड़क कर मकान में आग लगा दो। इतने में श्री गोपी सिंह के भाई सीता बाबू कांपते हुए बाहर निकले और मार्श स्मिथ से हाथ जोड़ कर कहें कि आप ऐसा न करें। मार्श स्मिथ ने कहा कि 10,000 रुपया लाकर दे दो तो मकान छोड़ देंगे। उन्होंने रुपये लाकर दे दिये तब कहीं जान बची। इसके बाद श्री राधा कृष्ण के मकान पर फौज पहुँची और उनको दुकान से आटा ,घी , चीनी निकाल कर बाहर फेंक दिया तथा उनके भतीजे रामेश्वर प्रसाद को गिरफ्तार कर लिया। कुछ सामानों को लूटकर पुलिस लाइन भेजा गया। इसके बाद वह देवी राम के मकान पर पहुँचा किन्तु उनके दूकान में पहले से ही ताला बन्द था। मार्श स्मिथ ने कहा कि 5000 रुपया जुर्माना जल्द जमा कर दो।
श्री बेनी माधव के दूकान पर पहुंचकर उनकी 140 बोरी चीनी ठेले पर लादकर पुलिस लाइन लाया।श्री बच्चा बाबू अग्रवाल के यहाँ पहुँच कर बन्द दरवाजे को खुलवाया। बच्चा बाबू ज्यों ही दरवाजा खोले तो उन पर दो फायर किया गया। बच्चा बाबू बाल बाल बच गए। गोलियों का निशान उनके दरवाजे पर आज भी मौजूद है। श्री बच्चा बाबू को पकड़ कर मोटर में बैठा दिया गया किन्तु उन्हें फिर छोड़ दिया । शाम को लगभग 3 बजे बच्चा बाबू के मकान पर मार्श स्मिथ फौज के साथ आया और 15 हजार रुपया माँगा । न देने पर उनकी लोहे की अलमारी तोड़कर सारे जेवरात ले लिए। श्री बच्चा बाबू ने चार हजार रुपया देकर अपनी जान बचाई। उनका बन्दूक - रिवाल्वर भी ले लिया गया ।
मार्श स्मिथ बाबू शिव प्रसाद की कोठी पर आया और लोहार को बुला कर उनकी आलमारी को कटवाया। सभी सामानों को फौज वालों ने लूट लिया । इसके बाद शहर के अन्दर फौज और पुलिस वालों ने अधिकांश दूकानों को लूटा और लोगों में आतंक जमा कर रुपये वसूल किये ।बाबू मुरली मनोहर के मकान पर भी पुलिस और फौज पहुँची तो बाबू मुरली मनोहर ने कहा कि मै सरकारी वकील हूं तब उन्हें छोड़ा गया । किन्तु उनके भतीजे कुबेर लाल को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। फौज वाले डॉ० प्रबोध कुमार को भी पकड़े और उनके दवाखाने को नुकसान पहुंचाए। डॉ० प्रबोध हफ्ते भर जेल में बन्द रहे ।
23 अगस्त को ही जो सैनिक बनारस की तरफ से ट्रेन से आये उनमें से कुछ सैनिक चिटबड़ागांव रेलवे स्टेशन पर उतर गए। जब वे गांव की तरफ चले तो लोग मक्के के खेत में जा छिपे। इन सैनिकों को लोग पकड़ना चाहे लेकिन सैनिकों ने दनादन गोलियां चलानी शुरू कर दी। इस गोली से एक आदमी वही मर गया तथा कुछ लोग घायल हो गए। फौज वाले श्री गफूर के गोले पर आकर उनसे आठ बोरा चावल खाने के लिए मांगे और कहे कि जो बन्दूकें फेफना में लूटी गई हैं उन्हें कल रेलवे लाइन पर रखवा दो वरना कल चिबड़ागांव कस्बा जला दिया जायेगा।
23 अगस्त को एक फौज की टुकड़ी नरही थाने पर पहुंची क्योंकि तहसीलदार श्री राम लगन सिंह अभी वहीं थे। फौज की टुकड़ी से श्री राम लगन सिंह जब मिले तो उनके जान में जान आयी और अपने को मुक्त समझे । उसी समय लोगों से बदला लेने का भूत उन पर सवार था।
नरही थाने पर मुक्तेश्वर सोनार को मारी गोली,मरा समझ कर नाले मे फेकवाया
श्री मुक्तेश्वर सोनार गांव छोड़कर कहीं जा रहा था कि राम लगन सिंह ने सिपाहियों को भेज कर उसे पकड़वा मंगवाया। थाने पर तहसीलदार ने कहा कि तुम तैयार हो जाओ तुम्हें गोली मारी जायेगी। मुक्तेश्वर कपड़े उतारा और सीना तान कर खड़ा गया। उस पर दो फायर किए गए। एक गोली उसके गले से निकली और दूसरी सीने से वह वहीं गिर पड़ा। उसे मरा हुआ जान कर दो भंगियों ने उठा कर दूर पानी के गढ़े में फेंक दिया और वापिस चले आये। दो घण्टे के बाद जब श्री मुक्तेश्वर को होश आया तो दो गोलियों से घायल होने के बावजूद भी वह चुपके से घर आया और वहाँ से बक्सर अस्पताल इलाज कराने के लिए चला गया। जब बक्सर से घर थाया तो उसे गिरफ्तार कर लिया गया और पाँच वर्ष की सजा दी गयी ।
नरही थाना क्षेत्र मे फौजियों द्वारा लूट, घरों को जलाने की हुई घटनाये
नरही गांव के ही श्री बलभद्र उपाध्याय, जगत लाल, ब्रजनन्दन राय, त्रिपुरारी राय, लक्ष्मी तिवारी और नर्वदेश्वर के मकानों को भी लूटा फूंका गया तथा गाँव के लोगों पर तरह-तरह के अत्याचार हुए। यही फौज की टुकड़ी चौरागाँव पहुँच कर श्री जंग बहादुर सिंह, श्री सच्चिदानन्द सिंह, श्री देवनरायन सिंह के मकानों को लूटी-फूंकी लक्ष्मणपुर में डॉ० राम दहिन राय और मुरली राय का मकान लूटा, बसंतपुर में श्री सच्चिदानन्द तिवारी, अमांव में श्री शिवपूजन राय तथा भरौली में श्री राम सिहासन राय के मकान भी लूटे गये। नरायनपुर में श्री ब्रह्मदेव राय का मकान लूटा फूंका गया और शिवमुनी मल्लाह भी इस लूट-फूँक से बच न सके ।
सुखपुरा गाँव में गोली चली : महंथ की हाथी,चंडी प्रसाद और गौरी शंकर हुए शहीद
बलिया शहर से आठ मील उत्तर सुखपुरा गाँव में फौज पहुंची जहां कुछ दिन पहले सिपाहियों से 5 बन्दूकें छीन ली गई थीं । नेदर सोल सुखपुरा के महंथ के मकान पर पहुंचा । महन्थ जी फौज को देख कर पीछे की तरफ छत पर से ही कूद गए जिससे उनके पैर टूट गये।नेदर सोल ने वहीं पर खड़े हाथी को गोली मारक धराशायी कर दिया। हाथी मरने से पहले जोरों से चिग्घाड़ लगाया और सदैव के लिए शहीदों की सूची में सम्मिलित हो गया । महन्थ के मकान से लौटने के बाद फौज सड़क पर आयी जहाँ श्री चण्डी प्रसाद मिल गए। नेदर सोल ने कहा,क्या तुम कांग्रेसी हो ? उन्होंने जवाब दिया हाँ, मैं कांग्रेसी हूँ । इस पर फौज कैप्टन ने गोली मार देने का आदेश दिया । चण्डी प्रसाद सीना तान कर खड़े हो गये और कैप्टन की गोली उनके सीने में घुस गई। श्री चण्डी प्रसाद भारत माता की जय कहते हुए वहीं शहीद हो गए। इसके बाद फौज श्री गौरी शंकर के मकान पर गई। गौरी शंकर मकान पर ही मिल गये । उन्हें देखते ही उसी क्षण एक जवान ने गोली दाग दी और वह वहीं दम तोड़ दिये। इसके अलावे सुखपुरा गाँव के कुछ अन्य लोगों की भी पिटाई की गई और मकान जलाए गए ।
दिनभर चला लूट फूंक पाश्विक अत्याचार
लूट-फूंक का सिलसिला फौज द्वारा दिन भर चलता रहा इसके साथ ही जनता को आतंकित करने के लिए पुलिस द्वारा खुलेआम पाशविक अत्याचार होने लगा। पहले से लोग तैयार नहीं थे जिससे वे फौज का मुकाबला न कर सके। कुछ बन्दुके जो इकट्ठी थीं वह भी लोगों ने अपने-अपने क्षेत्रों में रक्षा के लिए ले लिया था। जिसके कारण क्रान्तिकारी एक दूसरे से न मिल सके और न सभी बन्दुके ही एक जगह एकत्रित हो सकीं। फौज का नादिरशाही जुल्म देखकर लोगों को मुकाबला करने का साहस न हुआ । ठीक उसी समय 23 तारीख को ही एक हवाई जहाज बलिया शहर का चक्कर लगाने लगा। मार्श स्मिथ ने मि० निगम जो कलक्टर थे,उनसे कहा कि इस जहाज को मैं इलाहाबाद से मँगवाया हूँ, सिगनल देने पर यह बम्बार्ड करना शुरू कर देगा और मिनटों में सारा जिला जल कर खाक हो जायेगा। इस काले हवाई जहाज का प्रदर्शन नजदीक से उड़ान करवा करके लोगों में आतंक फैलाना था ताकि जनता फौज का मुकाबला करने के लिए हिम्मत न कर सके और बलिया पर जल्द से जल्द ब्रिटिश हुकूमत कायम कर ली जाय। यदि फौज कब्जा करने में असफल होती तो हवाई हमला जिले पर शुरू हो जाता ।
हलधरपुर थाने पर लोगो ने किया कब्जा, जलाया
जिले का प्रबंध कांग्रेसी कार्यकर्ता कर रहे थे। कुछ थाने जो बच गये थे उनपर थानेदार तथा उसके सिपाही छोड़कर पहले ही भाग चुके थे। ऐसे थानों में एक हलधरपुर थाना भी था। जनता ने जब देखा कि जिले के ऊपर कांग्रेस का शासन चल रहा है तो 23 अगस्त को लगभग 11 बजे दिन में हलधरपुर थाने पर डेरा डाल दिया। थाने के थानेदार और सिपाही पहले ही भाग चुके थे। वहां जनता को रोकने वाला अब कोई नही था। जनता ने थाने को जला दिया और दीवारों को तोड़ दी।