615 छात्र संख्या वाले कम्पोजिट विद्यालय पर पीने का पानी भी नही है बच्चों को मयस्सर, छुट्टी होते ही बन जाता है मयखाना
मधुसूदन सिंह
बलिया।। एक तरफ सरकार प्राथमिक विद्यालयों मे छात्रों की संख्या बढ़ाने के लिये अध्यापकों पर दबाव बनाये हुए है। वही दूसरी तरफ एक विद्यालय ऐसा भी है जहां छात्र छात्राओं की संख्या देखने के बाद 80-90 के दशक के प्राथमिक विद्यालयों की याद ताजी हो जाती है। तब पढ़ाई उम्दा होती थी लेकिन छात्रों को सुविधा के नाम पार टाट पट्टी मिलती थी। लेकिन विकास खंड सोहाँव का एक कम्पोजिट विद्यालय भरौली ऐसा है जहां छात्रों की संख्या 615 होने के बावजूद बच्चों को मिलने वाली आवश्यक सुविधाओं का अकाल है।
विद्यालय मे आधे बच्चें ही यहां के कुल 7 कमरों मे बैठ पाते है, आधे बच्चें मजबूरन बाहर मैदान मे ही अपनी पढ़ाई करते है। इस विद्यालय के अध्यापकों को बलिया एक्सप्रेस धन्यवाद ज्ञापित करता है कि उनकी शिक्षा मे दम है तभी अभिभावको ने अपने बच्चों को इतने ज्यादे संख्या मे पढ़ने भेज रहे है। एक तरफ सरकार सबको स्वच्छ और शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए अमृत योजना के माध्यम से प्रयासरत है। वही इस विद्यालय मे इतनी अधिक संख्या होने के बावजूद इसको अबतक जनप्रतिनिधियों से उपेक्षा ही मिली है।
चाहे सपा शासन हो या पिछला भाजपा शासन हो, किसी मे भी इस विद्यालय के लिये जनप्रतिनिधियों ने कोई रूचि नही दिखायी। नतीजा आज इस विद्यालय पर बच्चें अगर घर से पानी न लाये तो प्यासे राह जायेंगे। कुछ माह पहले तक एक बदबूदार पानी देने वाला नल चालू था, लेकिन वर्तमान मे वो भी बंद है । अध्यापिकाओ ने साफ कहा कि बदबूदार स्थानीय पानी से बना मिड डे भी बच्चें खाना नही चाहते है।
प्रधानाध्यापक का आरोप है कि न उच्चाधिकारी, न ही ग्राम प्रधान हमारी समस्याओ को दूर करने का प्रयास कर रहे है। इनका आरोप है कि गेट लगवाने के लिए कई बार प्रधान से बोले लेकिन सुनते ही नही है। वही छात्रों को बैठने के लिए कमरों की आवश्यकता है, कोई ध्यान ही नही दे रहा है।
निश्चित रूप से गेट लगवाने की जिम्मेदारी ग्रामप्रधान की है लेकिन पेयजल के लिए समरसेबुल पम्प लगाने, इंडिया मार्का हैंडपम्प की मरम्मत करवाना या लगवाने की जिम्मेदारी प्रधानाध्यापक की बनती है। आखिर इनको संख्या के आधार पर सरकार प्रति वर्ष लगभग ढाई लाख रूपये कम्पोजिट ग्रांट के रूप मे क्यों देती है।
इस संबंध मे बेसिक शिक्षा अधिकारी मनीराम सिंह से जब बात की गयी तो उनका कहना था कि आपके माध्यम से विद्यालय से संबंधित अनुपलब्ध जरुरी सुविधाओं की जानकारी मिली है। प्रधानाध्यापक की यह जिम्मेदारी बनती है कि पत्राचार के माध्यम से अति आवश्यक सुविधाओं की मांग करें। साथ ही यह भी कहा कि इतनी अधिक संख्या वाला विद्यालय खुद बयान कर रहा है कि यहां निश्चित रूप से अच्छी पढ़ाई होती है। ऐसे मे स्थानीय माननीय जन प्रतिनिधियों को भी ऐसे विद्यालयों की मदद करनी चाहिये। कहा कि कोई भी व्यक्ति, कम्पनी, व्यापारी या अन्य अपने सीएसआर फंड के माध्यम से हमारे विद्यालयों को सुसज्जित करने मे सहयोग कर सकता है। कहा कि इसके लिए सरकार ने vidyanjali एप्प के माध्यम से सहयोग कर सकता है। यह भी कहा कि इस एप्प के लांच के तुरंत बाद एक सज्जन अपनी पूज्य माता जी के नाम पर खुद के द्वारा कमरों का निर्माण त्रिकालपुर मे करा रहे है।
कहा कि कम्पोजिट विद्यालय भरौली की समस्याओं को आपके माध्यम से मैने संज्ञान लिया है और तत्काल पेयजल की समस्या को दूर कराने का खंड शिक्षा अधिकारी को निर्देशित कर रहा हूं। अन्य समस्याओ को खंड शिक्षा अधिकारी की रिपोर्ट के बाद मुख्य विकास अधिकारी और जिलाधिकारी महोदया के माध्यम से दूर कराने का प्रयास करूंगा। मेरी कोशिश रहेगी इस विद्यालय का हर एक छात्र कमरे के अंडर पढ़ाई करें, पेड़ के नीचे नही।
छुट्टी होते ही बन जाता है मयखाना
इस विद्यालय की दूसरी बड़ी समस्या छुट्टी के बाद इसका मयखाने मे बदल जाना है। अध्यापिका के अनुसार स्थानीय पियक्कड़ छुट्टी होने से पहले ही चटाई चादर लेकर खड़े रहते है और बच्चों के निकल जाने के बाद बैठ कर दारू पीने लगते है। स्थानीय हल्का पुलिस इधर ध्यान क्यों नही देती है, वही बता सकती है। शराबी शराब पीने के बाद बोतलों को परिसर मे ही छोड़कर चले जाते है। विद्यालय का स्थायी सफाई कर्मी न होने के कारण बोतले कई दिनों तक वैसे ही पड़ी रहती है और इन्ही के आसपास बच्चों को पढ़ना मज़बूरी है।