मैं तुम्हारी मौन करुणा का इशारा चाहता हूं : डॉ रामकुमार वर्मा
डॉ० भगवान प्रसाद उपाध्याय
प्रयागराज।।बात सन सत्तर के दशक के शुरुआत की है मदन मोहन मालवीय इंटर कॉलेज करछना में इकहत्तर बहत्तर के सत्र में सुप्रसिद्ध साहित्यकार नाटककार डॉ० रामकुमार वर्मा जी का पदार्पण वार्षिकोत्सव के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में हुआ था और वह पूरे समय तक बहुत मनोयोग से आयोजन में उपस्थित रहे उनसे जब आग्रह किया गया अपनी रचना सुनाने के लिए तो उन्होंने
हे ग्राम देवता नमस्कार का स्वर काव्य पाठ करके लोगों को अभिभूत कर दिया और अपनी ओर से उन्होंने जो रचना वहां प्रस्तुत की उसकी प्रथम पंक्ति आज भी मानस पटल पर अंकित है विद्यालय के अनुशासन और वहां आयोजन में अध्यापकों और छात्रों के समर्पण को देखकर उन्होंने यह रचना तत्क्षण रची थी उसकी प्रथम पंक्ति थी
मैं तुम्हारी मौन करुणा का इशारा चाहता हूं
डॉ रामकुमार वर्मा जी को लगभग प्रत्येक कक्षा में पढ़ने का अवसर प्राप्त होता था और उन्हें साक्षात देख कर मन प्रफुल्लित हो उठा था मेरे अंदर का कवि भी मिलने को मचल उठा था वैसे भी मेरी तुकबंदी पर सहपाठी प्रायः मजाक में अथवा व्यंग में बोल पड़ते थे अरे भाई सामने से हट जाइए पंत जी जा रहे हैं प्रसाद जी जा रहे हैं निराला जी जा रहे हैं आदि आदि विशेषण से सहपाठियों का व्यंग सुनने को मिलता रहता था किंतु मैं अपनी धुन में साहित्यिक पुस्तकों के अध्ययन और छोटी-छोटी रचनाओं के प्रणयन में संलग्न रहता था
उस दिन तो मेरी प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं था जब डॉ रामकुमार वर्मा जी को मैंने मंच पर मुख्य अतिथि के रूप में देखा था और उनके हाथों मुझे पुरस्कार प्राप्त करने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ था कारण यह था कि कक्षा आठ (ख ) और कक्षा बारह (ख) की अंत्याक्षरी प्रतियोगिता में कक्षा आठ के छात्रों को विजयश्री प्राप्त हुई थी और उस अंत्याक्षरी प्रतियोगिता में मैं भी प्रतिभागी था। उन दिनों हिंदी के सुप्रसिद्ध गल्पकार (लघु कथाकार )व साहित्य मर्मज्ञ पंडित जनार्दन प्रसाद शर्मा जी प्रधानाचार्य थे और गल्पदीप नामक उनकी पुस्तक हाई स्कूल के पाठ्यक्रम में पढ़ाई जाती थी। कई साहित्य प्रेमी शिक्षक उन दिनों विद्यालय के वातावरण को गरिमा मंडित कर रहे थे। संस्कृत और हिंदी के उद्भट्ट विद्वानों का एक केंद्र मदन मोहन मालवीय करछना उस समय बन गया था। उन्नीस सौ अड़सठ उनहत्तर से लेकर पचहत्तर - छिहत्तर तक के सत्र में कॉलेज की विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेने का अवसर मिलता था । इसके पश्चात भी पुराछात्र के रूप में कॉलेज की पत्रिका के संपादन में मुझे बतौर छात्र संपादक कई वर्ष तक रखा गया था।
पंडित फणीश चंद्र मिश्र विद्यालय की पत्रिका के संपादक हुआ करते थे और वे हाई स्कूल में मेरे कक्षा अध्यापक भी थे। उनकी विशेष कृपा मेरे ऊपर रहती थी वह नैनी में चक रघुनाथ मोहल्ले में रहा करते थे और प्रायः मुझे अपने यहां साहित्यिक चर्चा के लिए अवकाश के दिनों में बुलाया भी करते थे। उन दिनों कई अध्यापक ऐसे थे जिनका स्नेह मुझे प्रायः अनायास मिला करता था । वार्षिकोत्सव में विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेने के पश्चात जब पुरस्कृत छात्रों में मेरा नाम आता था तो मुझे बहुत ही गर्व की अनुभूति होती थी। मेरे विद्यालय के प्रबंधक पंडित शीतला दिन द्विवेदी एक पंचवर्षीय योजना में विधायक भी रहे और उन्होंने विद्यालय की प्रगति में पूरी निष्ठा के साथ विद्यालय को आगे बढ़ाने में अभूतपूर्व सहयोग दिया था। उनके प्रबंधक तंत्र में भी अनेक समर्पित और निष्ठावान सहयोगी थे।
विद्यालय का वातावरण अत्यंत अनुशासन प्रिय और सुरम्य था। मेरे विद्यालय के माली दशा राम को उत्तर प्रदेश के मालियों में कई बार विशेष पुरस्कार मिल चुका था। विद्यालय में रहते हुए अनेक साहित्यकारों कवियों को देखने और उन्हें निकट से सुनने का अवसर प्राप्त हुआ था। विद्यालय के प्रारंभिक दिनों में महीयसी महादेवी वर्मा जी का भी पदार्पण हुआ था और उनकी गरिमा पूर्ण उपस्थिति से आयोजन अत्यंत ऊंचाई पर पहुंचा था। उन दिनों कॉलेज में दो अध्यापक ऐसे थे जो पत्रकारिता के क्षेत्र से भी जुड़े हुए थे एक अंग्रेजी के अध्यापक श्री पी के मलिक साहब थे जो अंग्रेजी समाचार पत्र के संवाददाता हुआ करते थे और एक संस्कृत के प्रवक्ता पंडित परशुराम त्रिपाठी शास्त्री जी थे जो दैनिक भारत के संवाददाता थे। इस नाते भी विद्यालय की सभी गतिविधियां प्रमुखता से समाचार पत्रों में आती थी और प्रायः कोई न कोई उच्च अधिकारी अथवा क्षेत्र का प्रतिष्ठित व्यक्तित्व कॉलेज प्रांगण में आता रहता था।
आपातकाल की घोषणा हो जाने के पश्चात विद्यालय के वातावरण की गंभीरता स्वत: ही बढ़ गई थी।परीक्षा के दिनों में नकल नाम का कोई भी शब्द प्रचलित ही नहीं हुआ था। यदि किसी ने किसी प्रकार से इस शब्द का प्रयोग किया था तो वह दंडित भी हुआ था। उन्नीस सौ छिहत्तर में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पहुंचने पर श्रद्धेय डॉक्टर रामकुमार वर्मा जी से एक बार पुनः मिलने का अवसर मिला और वे फिर विदेश में हिंदी के अध्यापन कार्य हेतु चले गए थे। 80 के दशक के मध्य में वे मेरे एक साहित्यिक आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में भी आए थे। आज डॉ रामकुमार वर्मा जी का स्मरण मुझे अत्यंत प्रफुल्लित कर रहा है उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करके मैं स्वयं को धन्य समझ रहा हूं ।
डॉ भगवान प्रसाद उपाध्याय
निवास
पत्रकार भवन
गंधियांव करछना प्रयागराज
उत्तर प्रदेश
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मो० 8299280381