कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर अल्पसंख्यक विद्यालय बना है जीएमएएम इंटर कालेज, उच्च न्यायालय मे दाखिल हुई याचिका,8 सप्ताह मे कोर्ट ने मांगा जबाब
बिल्थरारोड,बलिया।। आयोग से आये वरिष्ठ प्राध्यापक को कार्यवाहक प्रधानाचार्य बनाने की जगह साजिश के तहत अल्पसंख्यक विद्यालय के नाम पर नियुक्ति चहेते प्राध्यापक को कार्यवाहक प्रधानाचार्य बनाना और आयोग से आये प्राध्यापक को निलंबित कर देना जीएमएएम इंटर कालेज के प्रबंध तंत्र को काफी महंगा पड़ सकता है। निलंबित प्राध्यापक और प्रबंध समिति के एक सदस्य ने माननीय उच्च न्यायालय मे जनहित याचिका दायर कर इस विद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को ही चुनौती दे डाली है। माननीय उच्च न्यायालय द्वारा इस याचिका के आधार पर सरकार, प्रबंध समिति और जिला विद्यालय निरीक्षक बलिया से 8 सप्ताह मे जबाब तलब किया है।
बता दे कि पूर्व में उच्च न्यायालय द्वारा सामान्य विद्यालय घोषित गाँधी मुहम्मद अली मेमोरियल इण्टर कालेज बेल्थरा रोड को कूट रचित कागजातों के द्वारा अल्पसंख्यक विद्यालय बनाकर वर्ष 2014 से 2018 तक 32 नियुक्तियां किये जाने की शिकायत की गयी है । अब लगभग 30 वर्ष बाद (1992 मे उच्च न्यायालय के आदेश के बाद )कमेटी के सदस्य और निलंबित एक अध्यापक द्वारा उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने से पुनः कूट रचित अल्पसंख्यक का दर्जा समाप्त होने के आसार दिखने लगे है। साथ ही 32 फर्जी नियुक्तियों पर भी तलवार लटक गई है।
इस विद्यालय मे अल्पसंख्यक दर्जे के आधार पर वर्ष 2017-18 में प्रबंधतंत्र द्वारा की गयी 20 नियुक्तियों को अनुमोदित करने वाले तत्कालीन जिला विद्यालय निरीक्षक रमेश सिंह पर आरोप है कि इन्होने अपने पद का दुरूपयोग करते हुए अपने दो सगे भतीजो को भी प्रबंधतंत्र के साथ सांठ गांठ करते हुए अध्यापक बनाने का काम किया है। अब जब अल्पसंख्यक विद्यालय के नाम पर नियुक्ति और इसी नियुक्ति के एक अध्यापक को प्रधानाचार्य बनाये जाने को लेकर विद्यालय के प्रबंध समिति के सदस्य और एक अध्यापक द्वारा उच्च न्यायालय प्रयागराज में मुकदमा किया गया है, इस समय भी जिला विद्यालय निरीक्षक के पद पर रमेश सिंह ही पद पर कार्यरत है।
इस विद्यालय की स्थापना का इतिहास
गाँधी मुहम्मद अली मेमोरियल इण्टर कालेज बेल्थरा रोड की स्थापना वर्ष 1945 में हुई थी। इसको वर्ष 1945 में जूनियर हाईस्कूल, 1948 हाईस्कूल और 1950 में इण्टर की मान्यता मिली। इस विद्यालय की स्थापना के समय संस्थापक सदस्यो में हिन्दू समुदाय के डॉ0 वैजनाथ शाही, डॉ0 हरिचरन लाल, कैलाश कुमार गुप्ता , मथुरा प्रसाद, गौरीशंकर आदि हिन्दूय एवं कुछ मुस्लिम सदस्य शामिल थे। वर्ष 1979 में विद्यालय के प्रधानाचार्य बदरुल हसन कादरी को विद्यालय प्रबन्ध कमेटी द्वारा बर्खास्त कर दिया गया।
इस आदेश से प्रमाणित हुआ कि यह है सामान्य विद्यालय
प्रबंध समिति द्वारा बर्खास्त किये जाने के बद बदरुल हसन कादरी ने डिप्टी डाइरेक्टर से इस मामले में गुहार लगायी किन्तु वहाँ से अल्पसंख्यक विद्यालय कहते हुए कोई सुनवाई नही हुई। इसके बाद बदरुल हसन कादरी ने 1979 में शिक्षा एक्ट 1921 के 16 (जी) के तहत स्टेट आफ उत्तर प्रदेश के खिलाफ हाईकोर्ट इलाहाबाद मुकदमा दाखिल किया। जिस पर न्यायधीश अमरनाथ वर्मा और आर के गुलाटी की युगल खण्डपीठ ने याचिका संख्या 2940/ 1979 के मामले की सुनवाई करते हुए सभी बिन्दुओ का अवलोकन करने के पश्चात 12 फरवरी 1992 में यह फैसला दिया कि जीएम एएम इण्टर कालेज अल्पसंख्यक विद्यालय नही है। क्यों कि इस विद्यालय की स्थापना हिन्दू और अल्पसंख्यक दोनों वर्ग के लोगो द्वारा की गयी है। सिर्फ अल्पसंख्यक वर्ग के लोगो द्वारा स्थापित विद्यालय ही अल्पसंख्यक विद्यालय घोषित किया जा सकता है।
उच्चतम न्यायालय ने भी माना नही है अल्पसंख्यक विद्यालय
निलंबित प्रधानाचार्य बदरुल हसन कादरी ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में मुकदमा दाखिल किया जिसे उच्चतम न्यायालय ने हाईकोर्ट के आदेश के आधार पर ख़ारिज कर दिया। लेकिन निलंबित प्रधानाचार्य बदरुल हसन कादरी को बहाल करने का आदेश देकर श्री कादरी को राहत प्रदान की । इस आदेश के बाद गाँधी मुहम्मद अली मेमोरियल इण्टर कालेज सामान्य विद्यालय की तरह चलता रहा। अध्यापको की नियुक्तियां आयोग से होती रही।
इस तरह बन गया अल्पसंख्यक विद्यालय
वर्ष 2013 में अखिलेश सरकार द्वारा अल्पसंख्यक विद्यालयो के लिए एक शासनादेश जारी हुआ जिसमे यह कहा गया था कि जो माइनॉरिटी कमेटियां नवीनीकरण न कराने और पंजीकरण शुल्क जमा न होने के कारण कालातीत हो चुकी है, वे संस्थायें विलम्ब शुल्क जमा करने के बद अपनी माइनॉरिटी का दर्जा बहाल करा सकती है। इस आदेश के बाद विद्यालय प्रबन्ध कमेटी ने उच्च न्यायालय के आदेश को छिपाकर एवं संस्थापक सदस्यो का नाम बदलकर कागजी हेराफेरी करके शुल्क जमाकर 29 अक्टूबर वर्ष 2013 को फर्जी तरीके से अल्पसंख्यक संस्था घोषित करा लिया।
अल्पसंख्यक संस्थान मे नाम पर नियुक्तियों मे जमकर हुआ गोरखधंधा
अल्पसंख्यक विद्यालय का दर्जा मिलते ही प्रबंधतंत्र की बांछे खिल गयी। इनके हाथ मे सोने का अंडा देने वाली मुर्गी हाथ लग गयी थी। जिस विद्यालय मे सामान्य विद्यालय होने के नाते शासनादेश के चलते प्रबंधतंत्र का हाथ नियुक्तियों को करने के लिये बंध गया था और अध्यापक आयोग से ही इस विद्यालय को भेजें जाते थे, अल्पसंख्यक विद्यालय का दर्जा मिलने के कारण वह अधिकार प्रबंधतंत्र के पास आ गया। अधिकार मिलते ही प्रबन्धक और प्रधानाचार्य ने पांच वर्षों में शिक्षा विभाग के अधिकारियो की मिलीभगत से 32 नियुक्तियां कर डाली गयी है।
28 जून 2014 को जिला विद्यालय निरीक्षक मनोज गिरि के द्वारा अध्यापक पद पर प्रथम बार प्रबंध समिति द्वारा नियुक्त मु0 मोबिन, आमिर शमशाद, मो0 आमिर, मो0 साजिद खां, जावेद अख्तर, मु0 दानिस मोहसिन के रूप मे कुल 6 नियुक्तियों को अनुमोदन प्रदान कर दिया गया। यही से नियुक्तियों का गोरखधंधा जोर पकड़ लिया।
सगे संबंधियों को नियुक्ति की चली नई परिपाटी
मनोज गिरी द्वारा प्रबंध तंत्र द्वारा की गयी नियुक्तियों को अनुमोदित करने की जो परिपाटी चली, वह जिला विद्यालय निरीक्षकों के लिये सोने का अंडा देने वाली मुर्गी साबित हुई। यही नही तत्कालीन जिला विद्यालय निरीक्षकों ने तो भ्रष्टाचार की बहती नदी मे गोता लगाते हुए अपने सगे संबंधियों को नियुक्ति कराने की नयी परिपाटी ही शुरू कर दी, जो कानूनी रूप से अवैधानिक है। मनोज गिरी के तबादले के बाद तत्कालीन जिला विद्यालय निरीक्षक रमेश सिंह ने प्रबंधतंत्र द्वारा नियुक्त अजित सिंह की नागरिक शास्त्र के प्रवक्ता व आनन्द सिंह की हिन्दी अध्यापक पद पर नियुक्तियों को अनुमोदित कर दिया । ये दोनों अध्यापक रमेश सिंह के भतीजे बताये जाते है। यही नही रमेश सिंह ने 8 परिचारक समेत कुल 20 की नियुक्तियों को भी जो प्रबंधतंत्र द्वारा की गयी थी, को अनुमोदित कर दिया।
इसके बाद जिला विद्यालय निरीक्षक शिवचन्द राम ने 3 अध्यापको का अनुमोदन किया। वर्ष 2017 - 18 में जिला विद्यालय निरीक्षक अमरनाथ राय ने भी अपने पद का दुरूपयोग करते हुए प्रबंध तंत्र से अपने रिश्तेदार नीरज राय समेत 3 अध्यापको की नियुक्ति कराने के बद इन नियुक्तियों को अनुमोदित कर दिया।
इस प्रकार प्रबन्धक , प्रधानाचार्य के द्वारा उच्च न्यायालय के आदेश को दरकिनार करते हुए अल्पसंख्यक विद्यालय के नाम पर अधिकारियो की मिलीभगत से 5 वर्षो में 32 कर्मचारियों की नियुक्ति की गयी है। इस कॉलेज में 8 परिचारक समेत 20 नियुक्तियों को अनुमोदित करने वाले तत्कालीन डीआईओएस को पुनः बलिया का प्रभार दिया गया है।
अल्पसंख्यक के नाम पर अवैधानिक तरीके से की गयी नियुक्तियों के प्रकरण को लेकर विद्यालय के प्रबन्ध समिति के सदस्य और एक अध्यापक ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। बता दे कि विद्यालय प्रबन्ध समिति द्वारा उक्त अध्यापक को जो आयोग से चयन के बद यहां आये थे, को निलंबित कर दिया गया है और जिला विद्यालय निरीक्षक द्वारा इस निलंबन को अनुमोदित भी कर दिया गया बताया जा रहा है । लोगो का मानना है कि कूट रचित दस्तावेजों के आधार पर अल्पसंख्यक विद्यालय का मिला दर्जा पुनः कोर्ट द्वारा निरस्त हो जायेगा, जिसके बाद अल्पसंख्यक विद्यालय के नाम पर नियुक्त कर्मचारियों की नियुक्तियों के ऊपर भी तलवार लटक सकती है।
सुर्खियों में रहने वाले रमेश सिंह को एक बार पुनः बलिया का डीआईओस बनाये जाने के बाद चर्चाओं का बाजार गर्म है। चर्चाओ पर गौर करें तो जिला विद्यालय निरीक्षक अपने भतीजे के मोह में न्यायालय का दरवाजा खटखटाने वाले अध्यापक को मनाने में लगे हुए है। सबसे बड़ी बात यह है कि वर्ष 2018 में सामान्य विद्यालय के रूप आयोग से आये दो अध्यापकों का स्थानांतरण जिलाविद्यालय निरीक्षक द्वारा दूसरे विद्यालय पर कर दिया गया। जबकि अल्पसंख्यक विद्यालय में ऐसा नही हो सकता है।
अल्पसंख्यक विद्यालय के नाम पर इन लोगों ने की नियुक्तियों को अनुमोदित
प्रबन्धक , प्रधानाचार्य ने अधिकारियो की मिली भगत से कागजी हेराफेरी कर फर्जी तरीके से अल्पसंख्यक विद्यालय घोषित कराकर अल्पसंख्यक विद्यालय न होने पर भी पांच साल में 8 परिचारक समेत 32 नियुक्तियां की गयी है ।
तत्कालीन जिलाविद्यालय निरीक्षकों ने भी इस फर्जीवाड़े में गोता लगाते हुए अपने भतीजे और रिश्तेदार को प्रवक्ता बनवाया है । डीआईओएस रमेश सिंह ने 20 नियुक्तियों को अनुमोदित किया है जिसमे अजीत सिंह और आनन्द सिंह को प्रवक्ता बनाया गया है, इन दोनों प्रवक्ताओ को इनका भतीजा बताया जा रहा है। यही नही तत्कालीन डीआईओएस अमरनाथ राय पर भी अपने रिश्तेदार नीरज राय समेत तीन नियुक्तियों को अनुमोदित करने का गंभीर आरोप लगाया गया है ।
क्या योगी सरकार मे होगी इस पर कार्यवाही?
अल्पसंख्यक विद्यालय के नाम पर नियुक्तियों की जो दुकान इस विद्यालय मे चल रही है, उसकी शिकायत वर्तमान सीएम योगी जी के पहले कार्यकाल मे भी जनसुनवाई एप्प के माध्यम से की गयी थी। लेकिन भ्रष्टाचार मे आकंठ डूबे माध्यमिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने एक दूसरे के पाले मे जांच को भेजते हुए अंततः शिकायत को निस्तारित कर दिया था। सीएम योगी जी से आम जन को बड़ी उम्मीदें है लेकिन उच्चाधिकारियों के चलते सही तथ्य उन तक नही पहुंच पा रहा है जिससे यह गोरखधंधा आज भी फल फूल रहा है। अब जबकि यह प्रकरण शासन की जगह न्यायालय मे चला गया है तो अधिकारियों के हाथ पांव फूलने लगे है। याचिकर्ताओं ने सीएम योगी से अपील की है कि इस प्रकरण को आप संज्ञान मे लीजिये और भ्रष्टाचार की इस बहती नदी को तुरंत बंद कराने की कृपा करें।