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आखिर कब लगेगा इन किस्मत के मारों के अरमानों को पंख, एक अदद आशियाने के लिये तीन दशक से तरसते कुल्हड़िया के गरीब किसान





ओम प्रकाश राय

  नरही-बलिया।। चाहे प्रधानमंत्री मोदी जी हो या मुख्यमंत्री योगी जी हो, सभी ने सबके सिर पर एक अदद छत हो, इसके लिये लगातार प्रयास कर रहे है। मोदी जी के प्रयास से जहां देश के लोगों को मकान मिले है, तो योगी जी के प्रयास से प्रदेश में भी लाखों को मकान मिला है। लेकिन दुर्भाग्य है कि प्रदेश की जातीय राजनीति में वास्तविक जरूरतमंदो को इस सुविधा का लाभ नही मिल पा रहा है।

1991 से गंगा की कटान में अपना सबकुछ गंवा चुके फेफना विधानसभा के कुल्हड़िया गांव के तब के किसान अब मजदूर,न अपनी जाति की सरकार में एक आशियाना हासिल कर पाये, न ही पिछले 6 सालों से सब का साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, के नारे पर काम करने वाली योगी सरकार के किसी भी जनप्रतिनिधि की नजर (पिछली योगी सरकार में इस क्षेत्र के विधायक मंत्री भी थे )राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे झोपड़ी डालकर दिन गुजारने वाले किस्मत के मारों पर पड़ी है। नतीजन 1991 से ऊपर वाले से यही दुआ कर रहे है कि हे प्रभु कोई तो राजनेता हमारे दुख दर्द को समझें और कम से कम एक आशियाना दिला दे।

गांव बस्ती से दूर सड़क किनारे लगी झोपड़ी और उसमें रहता गरीब मजदूरों का पूरा कुनबा। सोचिये एक छोटी सी झोपडी डालकर कड़ी धूप, कड़ाके की ठंड, मूसलाधार बारिश के साथ ही आग का तांडव और बाढ़ की विभीषिका झेलकर वहीं रहना, खाना, सोना अनुमान लगाया जा सकता है कि जीवन कितना कठिन होगा।





जी हां हम बात कर रहे है गंगा की लहरों में सब कुछ (घर द्वारा खेत खलिहान )गवाने के बाद  31-32 वर्षों से गुरबत की जिंदगी राष्ट्रीय राजमार्ग 31 के किनारे दरियापुर, तेतारपुर और करंजा मौजे में कुल्हड़िया निवासी अभावग्रस्त जिंदगी गुजार रहे है। ये लोग वर्ष 1991 में गंगा की लहरों में अपना घर द्वार सब कुछ गंवा कर अब सड़क किनारे अपना आशियाना बनाकर जीवन गुजार रहे हैं।

सड़क किनारे अपना आशियाना यही सोचकर बनाए होगे कि सब कुछ तो नहीं मिल सकता लेकिन किसी हाकिम या जनप्रतिनिधि की नजरें इनायत हो जाए तो शायद रहने के लिए कुछ जमीन जरूर मिल जाएगी। जमीन की तो बात ही छोड़िए इन गरीब मजदूरों को, जो कभी लहलहाती फसलों को उगाने वाले खेतों के स्वामी थे, को दो वक्त की रोटी भी बमुश्किल कड़ी मेहनत से ही मिल पाती है। गुरबत की जिंदगी गुजार रहे इन अभागों को गांव की पहचान तो पंचायत चुनाव में मिल गई, कुछ लोगों को ग्राम सभा करंजा तो कुछ लोगों को तेतारपुर ग्राम सभा में जोड़ दिया गया। लेकिन अभी भी इन लोगों को बसने के लिए जमीन की व्यवस्था किसी स्तर पर नहीं की जा सकी है। ये लोग वर्षो से सड़क किनारे हर साल बरसात के दिनों में बाढ़ और गर्मी के दिनों में भंयकर लूं के थपेड़े तो  कभी आग का दंश झेलते हुए फूस की झोपड़ी में अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं।