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9 अगस्त 1942 : बलिया के प्रमुख कांग्रेसी नेताओं को डीआईआर में अंग्रेजों ने किया गिरफ्तार



मधुसूदन सिंह

बलिया।।सन् 1929 के झंडा सत्याग्रह, 1930-32 में चले सविनय अवज्ञा आन्दोलन और नमक सत्याग्रह और 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह से लेकर नेताजी सुबाषचन्द्र बोस के आजाद हिन्द फौज, चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव आदि क्रांतिकारियों द्वारा चलायी जा रही जंग में हर जगह जिले के युवाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। 1939 में छिड़े द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेजी सरकार, अपने गुलाम देशों में अपने खिलाफ होने वाले आन्दोलनों को सख्ती के साथ दमन करने लगी जिससे लोगों में अपनी सुरक्षा को लेकर भय का भाव उत्पन्न हो गया और लोग धीरे-धीरे अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट होने लगे।

बलिया में कांग्रेस कौमी सेना ने सख्ती बढ़ने पर अपना नाम बदलकर कांग्रेस सेवा दल रखकर गांवों, कस्बों में कैम्प लगाकर युवाओं को बिना हथियार के आन्दोलन करने की ट्रेनिंग दे रहा था तो कम्यूनिस्ट के लोगों द्वारा किसानों को किसान संगठन के रूप में लामबद्ध किया जा रहा था। बलिया में महानन्द मिश्र, विश्वनाथ चौबे, श्रीपति कुँअर और राजेश्वर प्रसाद जो लखनऊ और इलाहाबाद के कैम्पों से ट्रेनिंग लेकर लौटे थे, हजारों युवा को निःशस्त्र होते हुए भी आन्दोलन को कैसे सफल किया जायेगा, इसकी ट्रेनिंग दिये। गाँवों में जिन युवाओं ने ट्रेनिंग ले लिया, उन लोगों में आस-पास के अन्य युवाओं को भी ट्रेन्ड किया।

क्रिप्समिशन के द्वारा अंग्रेजों ने कांग्रेस के नेताओं के होश उड़ा दिये। 'फूट डालो-राज करो' की नीति के द्वारा क्रिप्स में भारतीय मुसलिम नेताओं को पाकिस्तान देने का लालच देकर कांग्रेस से अलग कर दिया। कांग्रेस ने क्रिप्स मिशन को अस्वीकार कर दिया। ब्रितानी सरकार कांग्रेस को कुचलने की रणनीति बनाने लगी। इसको भापते हुए नेताजी सुबाषचन्द्र बोस ने 1942 में इण्डियन नेशनल आर्मी, जो बाद में आजाद हिन्द फौज के नाम से जानी गयी, को बनाकर लालकिले पर पूर्ण कब्जा के लिए तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा का नारा दिया। इस फौज में बलिया के नौजवानों की अच्छी खासी संख्या रही।





 बलिया मे वे तेरह दिन, जब लन्दन हिल उठा 

                08 अगस्त अगस्त 1942 को बम्बई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने आजादी के लिए अन्तिम प्रयास करो या मरो, जो पास किया उससे बौखलाकर बितानी शासन ने देश के चोटी के सारे नेताओं जैसे- गाँधी, नेहरू, पटेल, अब्दुल कलाम आजाद आदि सभी को 8 अगस्त की रात को ही गिरफ्तार कर लिया। इन गिरफ्तारियों की सूचना सारे देश के साथ बलिया ने भी सुनी। फिर क्या था? 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अमर शहीद मंगल पाण्डेय की आहूति देने वाला अंग्रेजी साम्राज्य का बर्बर जुल्म सहने वाला विद्रोही बलिया के चिर संचित क्रांतिकारियों में आक्रोश का लावा फूट पड़ा। देखते-देखते दुर्भेद्य दुर्दमनीय जनसंग्राम ने ऐसे विप्लवकारी चक्रवात का निर्णायक रुप धारण कर लिया कि उसकी लपट में कुख्यात साम्राज्यवादी मंसूबों की जड़े चर चराकर टूट गयी और फिर साम्राज्यवादी अस्तित्व इस तरह अस्थिर हो हिलने लगा कि मात्र पाँच वर्षों के बाद ही ब्रिटिश दासता का कलंक वृक्ष असहाय होकर सदा-सदा के लिए भारतीय धरा पर भहरा के ढह गया।


9 अगस्त 1942- नेताओं की गिरफ्तारी 


ब्रिटिश सरकार ने 9 अगस्त को ही क्रिमिनल ला एमेन्टमेन्ट एक्ट के अनुसार कांग्रेस वकिंग कमेटी और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी को गैर कानूनी घोषित कर दिया। तीसरे दिन भारत वर्ष की समस्त कांग्रेस कमेटियाँ अवैध करार दे दी गई। उनके दफ्तरों में ताले लगा दिए गए। कांग्रेस के नेताओं के नाम वारण्ट जारी कर दिए गए और उनकी धर-पकड़ शुरू कर दी गई। बलिया में 9 अगस्त सन् 1942 को ही श्री राधा मोहन सिंह, श्री राधा गोविन्द सिंह, श्री परमात्मा नन्द सिंह व राम नरेस सिंह (सुरहिया) को 129 डी०आई०आर ० के अन्तर्गत गिरफ्तार कर लिया गया । पं० चित्तू पाण्डेय, श्री राजेश्वर तिवारी, श्री शिवपूजन सिंह, श्री रामजी तिवारी श्री महा नन्द मिश्र, श्री विश्वनाथ चौबे, ठाकुर जगन्नाथ सिंह, श्री तारकेश्वर पाण्डेय, यूसुफ कुरेशी, श्री बालेश्वर सिंह ( गड़वार) को पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका था। इन गिरफ्तारियों से जनता में घोर असन्तोष व्याप्त हो गया ।



(साभार : बलिया -पौराणिक काल से 1947 तक - पेज नंबर 17 व 18 )