Breaking News

नरही थाने पर लहराया तिरंगा : अगस्त क्रांति....जरा याद करो कुर्बानी



                        

  नरही(बलिया)।।शायद अगस्त महीना और आंदोलन का पुराना नाता रहा है। इसी महीने में गांधीजी ने अंग्रेजो के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन चलाया था। इसे अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है। करो या मरो के नारे पर अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचार के खिलाफ उबल रहा देश आजादी के लिए उठ खड़ा हुआ। लोग आंदोलन से जुड़ते गए और इसी आंदोलन ने 1947 में मिली आजादी की नींव रखी।

स्वातंत्र्य समर की अनझिप लौ जलाने में पूरे जनपद के साथ ही गड़हांचल के नौजवानों ने भी शोषण और जोर-जुल्म के खिलाफ जब भी जरूरी हुआ आवाज बुलंद किया। अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी में स्वतंत्रता संघर्ष के महानायक मंगल पांडे ने अंग्रेजों के खिलाफ कारतूस में गाय और सूअर की चर्बी मिलाने को लेकर फौज से बगावत कर झंडा बुलंद किया था। उनकी लगाई क्रांति की आग ने 3 जून अट्ठारह सौ सत्तावन को बलिया में भी विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी। ब्रिटिश खजाना लेकर जा रहे एक फिरंगी को गड़हांचल की सीमा के भीतर गोली मारकर मौत की नींद सुला दिया गया और स्थानीय लोगों ने खजाना लूट लिया। इसी के प्रतिशोध में अंग्रेजों ने चौरा गांव पहुंच कर क्षेत्र के प्रतिष्ठित, संपन्न परिवार ठाकुर जंगबहादूर सिंह सहित पूरे गांव में लूटपाट मचाकर  तहस-नहस कर दिया। फिरंगीओ की गोली से चौरा के गोविंद मल्लाह शहीद हो गए। भारत माता के इस सपूत की बलि वेदी मगई नदी के तट पर चौरा गांव के पास स्थित है। चौरा के साथ ही गड़हांचल में आसपास के कई गांवों के लोगों को प्रताड़ित किया गया।

1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी गड़हांचल के सपूतों ने जीवन का बलिदान किया। 16 अगस्त 1942 को फिरंगीओ भारत छोड़ो का जयघोष करती गड़हांचल के हजारों लोगों की भीड़ चितबड़ागांव रेलवे स्टेशन पहुंची और वहां भीषण उपद्रव हुआ। स्टेशन को आग के हवाले कर दिया गया,सिग्नल को तोड़ दिया गया। पटरिया उखाड़ दी गई। स्टेशन फूंकने  के बाद क्रांतिकारियों का समूह नरही थाने की तरफ बढ़ा। पुलिस को नरही थाने पर आक्रमण की सूचना किसी तरह पहले ही मिल गई थी। थानेदार ने थाने की रक्षा की तैयारी कर ली थी। जनसमूह नरही थाने पर पहुंचा तो थानेदार श्याम सुंदर सिंह भय से कांपने लगा। आजादी के दीवानों ने कहा कि आप कांग्रेस की अधीनता स्वीकार कर लो, नहीं तो हम थाने की एक-एक ईंट उठा ले जाएंगे। थानेदार ने उस समय कांग्रेस की मातहती  स्वीकार कर ली और अपने हाथों से थाने पर तिरंगा झंडा फहराया।




18 अगस्त 1942 को कोरंटाडीह, कोटवा नारायणपुर में भी ट्रेजरी और डाकघर के कागजात जला दिए गए। और तिरंगा फहराया गया।

23 अगस्त 1942 क्रांति की ज्वाला पूरी तरह भड़क उठी थी। एक फौज की टुकड़ी नरही थाने पर पहुंची और तहसीलदार रामलगन सिंह के साथ जालिम दरोगा श्याम सुंदर सिंह का असली चेहरा देखने को मिला। पूरे इलाके में जमकर अत्याचार हुआ। नरही निवासी मुक्तेश्वर वर्मा को पकड़कर नरही थाने में गोली मार दी गई और उनको मरा समझकर थाने से पश्चिम की तरफ पानी से भरे ताल में फेंक दिया गया, जो भाग्य बस किसी तरह बच गए। दरियापुर के शिव दहीन राजभर को तो खेत में हल चलाते हुए ही पकड़ लिया गया। माता-पिता का इकलौता नौजवान भारत माता को फिरंगीओ से आजाद कराने के लिए उनके सामने झुकने से इनकार कर दिया और ज़ालिम दरोगा श्याम सुंदर ने अपनी गोलियों का शिकार बना दिया। उनका स्मारक राष्ट्रीय राजमार्ग 31पर लक्ष्मणपुर चौराहे से 1 किलोमीटर उत्तर की तरफ सड़क पर बना है। इस आंदोलन में गड़हांचल के कई ऐसे सपूत शहीद हुए, फिरंगीओ द्वारा प्रताड़ित किए गए, जिनका जिक्र करना संभव नहीं, उनके भी त्याग, बलिदान और शहादत को नमन।

1857 रहा हो या 1942 की क्रांति गड़ हांचल के जवानों का योगदान हमेशा रहा है। अंतः करण से उन जवानों को सलाम जो भारत माता को फिरंगियों से आजाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।

शहीदों, सेनानियों को सादर नमन।

 रिपोर्ट :ओम प्रकाश राय