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श्रीराम कथा का पांचवा दिन : लागल जनकपुर में मेला... गीत पर झुमकर नाचे गये श्रोता



मधुसूदन सिंह


बलिया।।बाबा बालखंडी नाथ जी मंदिर के प्रांगण में प्रदेश सरकार के परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह के संकल्प से चल रहे श्रीराम कथा के चौथे दिन प्रेम भूषण जी महाराज की कथा में देर शाम तक भक्ति रस बरसता रहा। कथा में भगवान श्रीराम सहित चारों भाईयों के जन्म व बाल लीला का वर्णन सुन सभी भाव-विभोर हो गए।

चौथे दिन श्रीराम कथा में परम पूज्य प्रेम भूषण जी महाराज ने भगवान श्रीराम के जन्म की कथा को सुनाकर सभी श्रोताओं को भाव विह्वल किया था ।  आज की कथा में भरत जी , लक्ष्मण जी और शत्रुघ्न जी के जन्म की कथा सुनाई । भगवान श्रीराम को पालने में झूला झुलाया था ।








पांचवे दिन की कथा में बताया कि चार चार राजकुमारों के जन्म लेने से अयोध्या उत्सव की नगरी बन गयी । भगवान राम का जन्म नवमी तिथि दिन मंगलवार को दिन में बारह बजे हुआ था ।भगवान के जन्म लेने से अयोध्या में इतनी खुशी हुई कि लोग देवताओं का आभार व्यक्त करने के लिये घर घर हवन करने लगे । हवन कुंडों के धुंआ से पूरा अयोध्या का आकाश मंडल बादल सदृश होकर अयोध्या को ढक दिया । राजा दशरथ के कुल देवता भगवान दिनकर अपने कुल में जन्मे परम् पिता परमेश्वर के दर्शन करना चाह रहे थे लेकिन धुंध के कारण कर नही पा रहे थे । दर्शन की लालसा में दिनकर भगवान चलना भूलकर रुक गये । जब धुंध हटी तो भगवान के मनमोहक रूप को देखकर अपनी सुधि बुद्धि खोकर एकटक भगवान राम को ही देखते रहे ।


कौतुक देखि पतंग भुलाना , एक मास तेहि जात न जाना

जब भगवान सूर्य को भान हुआ तो भगवान का जप करते हुए अपनी राह निकल पड़े --

हम तो हमारी मस्ती में झूमते चले है ,

सियाराम कह दिया है , जो राह में मिले है,

हो चाहे जैसा मौका ,खाएंगे नही धोखा

पाया है ज्ञान अब हमने ,गुरुदेव से अनोखा

जो डूबते है डूबे , हम तैरते चले है .....

पूरा अयोध्या जश्न में डूबा हुआ है । राजा दशरथ के आंगन में बधाई गाने वालो का तांता लगा हुआ है ।

बधाइयां बाजे आंगन में ,...

प्रेम भरे ब्रह्म नागर नाचे ,नूपुर बांध पायने में ...

नेवछावरि श्रीराम लला की , नेवछावरि श्री भरत लला की,

नेवछावरि श्री लखन लला की , नेवछावरि श्री शत्रुघ्न लला की ,

नहि कोई संकुचति मांगने में ...


तो कोई गा रहा है --

आई बहार हंसते हंसते ,आया सांवला सरकार हंसते हंसते ....

परम् अनूप आया , त्रिभुवन का भूप आया

नाथों का नाथ आया , करने सनाथ आया

सृष्टि सुधार हंसते हंसते ...


भगवान शिव माता पार्वती को अयोध्या के उत्सव को भावविह्वल होकर सुना रहे है ।भगवान शिव कह रहे है देखो भवानी जो भगवान पूरे ब्रह्मांड को खेलाते है , वे अपनी मां कौशल्या की गोद मे कैसे खेल रहे है । अपने लला को खेलाते हुए माता कौशल्या कितनी मुदित हो रही है इसकी कल्पना की जा सकती है अभिव्यक्ति कठिन है । माता पार्वती ने भोले नाथ से प्रश्न किया -- क्या पूरी अयोध्या भगवान राम के जन्म से प्रसन्न है ? भोलेनाथ बोले एक को छोड़कर सभी , क्योकि मंथरा नाम की केकई की दासी खुश नही है क्योंकि केकई पुत्र भरत जी भगवान राम से छोटे है ।


भगवान का चूड़ामणि संस्कार छोटे भाइयों के साथ संपन्न हुआ। इसके बाद ज़ब भगवान अपने छोटे छोटे पाँव जमीन पर रख कर चलते है तो माता कौशल्या कहती है ----






इसके बाद तरह तरह की भगवान की बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए श्री प्रेम भूषण जी महाराज ने दूसरी बार माता कौशल्या को भगवान के विराट रूप के दर्शन की बात बतायी ।







भगवान खेलते हुए कुछ बड़े होते है तो महाराज दशरथ जी नामकरण के लिये गुरु वशिष्ठ के पास बुलाया भेजते है ।









राजा दशरथ के पुत्रों का नामकरण करते ऋषि वशिष्ठ




कुछ समय बीतने पर राजा दशरथ ने राजकुमारों का नामकरण संस्कार करने के लिए ऋषि वशिष्ठ को बुलाया। ऋषि वशिष्ठ ने कौशल्या के पुत्र का नाम राम रखा-

जो आनंद सिंधु सुखरासी। सीकर तें त्रैलोक सुपासी।।

सो सुखधाम राम अस नामा। अखिल लोकदायक बिश्रामा।।

अर्थात- ये जो आनंद के समुद्र और सुख की राशि हैं, जिसके एक कण से तीनों लोक सुखी होते हैं, उनका नाम राम है, जो सुख का भवन और संपूर्ण लोकों को शांति देने वाले हैं।

इसके बाद ऋषि वशिष्ठ ने कैकयी के पुत्र का नाम भरत तथा सुमित्रा के पुत्रों के नाम लक्ष्मण व शत्रुघ्न रखे। बचपन से ही श्रीराम को अपना स्वामी मानकर लक्ष्मण उनकी सेवा करने लगे। समय आने पर चारों राजकुमारों का यज्ञोपवित संस्कार किया गया। श्रीराम अपने भाइयों सहित गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करने गए।





शीघ्र ही चारों राजकुमार हर विद्या में निपुण हो गए और अपने महल लौट आए। श्रीराम अपने माता-पिता और गुरु की सेवा करते और नगरवासियों की सुविधा का भी ध्यान रखते। इस प्रकार नगरवासी श्रीराम के प्रति अटूट श्रद्धा रखते थे। श्रीराम के इन गुणों को देखकर राजा दशरथ बहुत प्रसन्न होते। इसी बीच महर्षि विश्वामित्र जी ने जब जाना कि पर ब्रह्म परमात्मा मनुष्य रूप में अवतरित होकर धरती पर आ गये है और अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम के रूप रह रहे है । अयोध्या पहुंचकर राजा दशरथ से राम लक्षमण को अपने साथ भेजने की बात कही । भगवान राम से अति प्रीति के चलते राजा दशरथ ने महर्षि को राम को साथ भेजने से इनकार कर दिया । फिर कुलगुरु वशिष्ठ जी के बहुबिधि समझाने पर भेजते है । विश्वामित्र जी के साथ दोनो भाई राम लखन बक्सर जाकर एक ही बाण से पहले तड़का का बध करते है और अन्य रक्षकों को भी मारकर विश्वामित्र जी के यज्ञ को पूर्ण कराते है ।





महर्षि विश्वामित्र राक्षसी तड़का के वध के लिये अयोध्या से प्रभु राम और लक्ष्मण को लेकर आये। ताड़का वध के बाद वे यज्ञ के लिये आगे बढ़ रहे थे तब प्रभु की नजर उस विरान कुटिया पर पड़ी और वे वहाँ रुक गये और उन्होंने महर्षि विश्वामित्र से पूछा – हे गुरुवर ! यह कुटिया किसकी हैं जहाँ वीरानी हैं जहाँ ऐसा प्रतीत होता हैं कि कोई युगों से नहीं आया । कोई पशु पक्षी भी यहाँ दिखाई सुनाई नहीं पड़ता । आखिर क्या हैं इस जगह का रहस्य ?


परम् पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने इसको बड़े ही मनोहारी अंदाज में ऐसे प्रस्तुत किया ---


ऋषि आश्रम सी कोई पुन्य फली,पर आज लगे उजड़ी उजड़ी


नर नारी नही पशु पक्षी बिना , सुनसान दशा बिगड़ी बिगड़ी


तरु सुखी लता फलफूल बिना,गति जानन की उत्कंठा बढ़ी


कहिये गुरुदेव कृपा करि के , यह कैसी सिला मग माहि पड़ी ।।



 तब महर्षि विश्वामित्र कहते हैं –


गौतम नारी श्राप वश,उपल देह धरि धीर


चरण कमल रज चाहती, कृपा करहु रघुबीर ।।



 हे राम ! यह कुटिया तुम्हारे लिये ही प्रतीक्षा कर रही हैं । यहाँ बनी वह शिला तुम्हारे चरणों की धूल के लिये युगों से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हैं | राम पूछते हैं – कौन हैं यह शिला ? और क्यूँ मेरी प्रतीक्षा कर रही हैं । महर्षि विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को देवी अहिल्या के जीवन की पूरी कथा सुनाते हैं ।


कथा सुनने के बाद राम अपने चरणों से शिला पर स्पर्श करते हैं और देखते ही देखते वह शिला एक सुंदर स्त्री में बदल जाती हैं और प्रभु राम का वंदन करती हैं । देवी अहिल्या राम से निवेदन करती हैं कि वो चाहती हैं उनके स्वामी महर्षि गौतम उन्हें क्षमा कर उन्हें पुनः अपने जीवन में स्थान दे ।


परसत पद पावन शोक नसावन ,प्रगट भई तब पुंज सहि


देखत रघुनायक जन सुख दायक ,सनमुख होई कर जोरि रही ,


अति प्रेम अधीरा पुलक शरीरा,मुख नहि आवत बचन कोई ,


अतिशय बड़ भागी चरननि लागि ,युगल नयन वारि बहे ,


मुनि श्राप जो दीन्हा अति भल कीन्हा, परम् अनुग्रह मै माना ,


देखउ भरि लोचन भरि भव मोचन,जेहहि आज शंकर जाना ,


बिनती प्रभु मोरी मै मति भोरी ,नाथ न मानहु पर आना ,


पद कमल परागा बस अनुरागा, मम पद मधुप करे पाना ,


जेहि पद सुर सरिता परम पुनीता, प्रगट भई शिव सीस धरि


सोई पद पंकज जेहि पूजत अज, मम सिर धर उर पारि हरि


एहि भांति सिधानी गौतम नारी,बार बार हरि चरन पड़ी


जो अति मन भावा ,सो हरि पावा, जय पति लोक अनंत गई ।।


प्रभु राम अहिल्या से कहते हैं – देवी आपकी इसमें लेश मात्र भी गलती ना थी और महर्षि गौतम भी अब आपसे क्रोधित नहीं हैं अपितु वो भी दुखी हैं ।अहिल्या के अपने स्वरूप में आते ही कुटिया में बहार आ जाती हैं और पुनः पंछी चहचहाने लगते हैं |











श्री रामजी और लक्ष्मणजी मुनि के साथ जनकपुर के लिये चले। वे वहाँ गए, जहाँ जगत को पवित्र करने वाली गंगाजी थीं। महाराज गाधि के पुत्र विश्वामित्रजी ने वह सब कथा कह सुनाई जिस प्रकार देव नदी गंगाजी पृथ्वी पर आई थीं । तब प्रभु ने ऋषियों सहित गंगाजी में स्नान किया। ब्राह्मणों ने भाँति-भाँति के दान पाए। फिर मुनिवृन्द के साथ वे प्रसन्न होकर चले और शीघ्रही जनकपुर के निकट पहुँच गए ।

श्री रामजी ने जब जनकपुर की शोभा देखी, तब वे छोटे भाई लक्ष्मण सहित अत्यन्त हर्षित हुए। वहाँ अनेकों बावलियाँ, कुएँ, नदी और तालाब हैं, जिनमें अमृत के समान जल है और मणियों की सीढ़ियाँ बनी हुई हैं । मकरंद रस से मतवाले होकर भौंरे सुंदर गुंजार कर रहे हैं। रंग-बिरंगे बहुत से पक्षी मधुर शब्द कर रहे हैं। रंग-रंग के कमल खिले हैं। सदा सब ऋतुओं में सुख देने वाला शीतल, मंद, सुगंध पवन बह रहा है ।

पुष्प वाटिका ,बाग और वन, जिनमें बहुत से पक्षियों का निवास है, फूलते, फलते और सुंदर पत्तों से लदे हुए नगर के चारों ओर सुशोभित हैं ।


चले राम लछिमन मुनि संगा। गए जहाँ जग पावनि गंगा॥


गाधिसूत सब कथा सुनाई। जेहि प्रकार सुरसरि महि आई॥


 तब प्रभु रिषिन्ह समेत नहाए। बिबिध दान महिदेवन्हि पाए॥


हरषि चले मुनि बृंद सहाया। बेगि बिदेह नगर निअराया॥


 पुर रम्यता राम जब देखी। हरषे अनुज समेत बिसेषी॥


बापीं कूप सरित सर नाना। सलिल सुधासम मनि सोपाना॥


गुंजत मंजु मत्त रस भृंगा। कूजत कल बहुबरन बिहंगा॥


बरन बरन बिकसे बनजाता। त्रिबिध समीर सदा सुखदाता॥


सुमन बाटिका बाग बन बिपुल बिहंग निवास।


फूलत फलत सुपल्लवत सोहत पुर चहुँ पास॥




 सुनि पन सकल भूप अभिलाषे। भटमानी अतिसय मन माखे॥


परिकर बाँधि उठे अकुलाई। चले इष्ट देवन्ह सिर नाई॥


जनकपुर में गुरु विश्वामित्र संग श्रीराम और लखन का नगर भ्रमण जहां पुरवासियों के लिये कौतूहल का विषय बना हुआ है वही नगरवासी श्याम और गौर शरीर वाले दोनों राजकुमारों की खूबसूरती देखते हुए नही अघा रहे है । बार बार इनको देखने के लिये भीड़ लगा रहे है ।

लागल जनकपुर में मेला ....

दखिन दिशा से एक साधु जी आइले , संगवा में दुइगो चेला ....

गुरु विश्वामित्र संग राम और लक्ष्मण के जनकपुर पहुंचने की खबर पाते ही राजा जनक अपने कुलगुरु शतानन्द जी के साथ पहुंच कर यथोचित आदर सत्कार किया ।

महाराज जनक ने आदर के साथ गुर विश्वामित्र को अपने शिष्यों के साथ सीता स्वयम्बर के लिये आमंत्रित करते है और तीनों लोगो को सादर अति विशिष्ठ अतिथि गृह में निवास कराते है।


इस दौरान परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह की माताजी तेतरी देवी व मंत्री के अनुज धर्मेंद्र सिंह ने व्यास पीठ का पूजन किया और पालने में विराजमान ठाकुर जी को झूला झूलाया। कथा में पूर्व मंत्री उपेन्द्र तिवारी,अनिल पांडेय, अशोक सिंह, सुरजीत सिंह, प्रणव सिंह, हर्ष सिंह आदि मौजूद रहे।