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नारद मोह भंग से हुई रामलीला की शुरुआत, सजीव मंचन से दर्शक हुए रोमांचित







संतोष कुमार द्विवेदी 

नगरा, बलिया।। सार्वजनीक रामलीला समिति के तत्वाधान में जनता इंटर कॉलेज के मैदान में आयोजित ऐतिहासिक रामलीला का शुभारंभ रविवार को नारद मोह से हुआ। कलाकारो द्वारा नारद मोह का सजीव मंचन देख दर्शक भावविभोर हो उठे।

             लीला मंचन के अनुसार देवर्षि नारद घोर तपस्या में लीन हैं। उनकी तपस्या से देवराज इंद्र का सिंहासन डोलने लगता है। वे मित्र कामदेव से स्वर्ग की अप्सराओं द्वारा नारद की तपस्या भंग करने का आग्रह करते हैं।अप्सराओं के अथक प्रयास के बाद भी नारद की तपस्या भंग नहीं होती है। इस बात को लेकर देवर्षि को अहंकार हो जाता है और वे कामदेव पर विजय की जानकारी भगवान शंकर व ब्रह्मा को देते हैं। दोनों देवता नारद को समझाते हैं कि यह बात वे भगवान विष्णु को न बताएं, लेकिन नारद जी अभिमानवश भगवान विष्णु को बता देते हैं।





नारद जी के अभिमान भंग करने के लिए भगवान विष्णु ने माया नगरी की रचना कर वहां की राजकुमारी विश्वमोहिनी का स्वयंवर आयोजित करते हैं। उसी वक्त नारद जी भी वहां से गुजरते हैं।  सुंदर नगर देख वहां के राजा के पास चले जाते और विश्वमोहिनी का हाथ देख उसपर मोहित हो जाते है। इसके बाद राजकुमारी से विवाह करने हेतु अयोजित स्वयंवर में शामिल होने के लिए नारद जी भगवान विष्णु से सुंदर रूप देने का आग्रह करते हैं।



जब नारद जी स्वयंवर में पहुंचते हैं तो उनका उपहास होने लगता है। विश्व मोहिनी भगवान के गले में वरमाला डाल देती है। इससे नाराज नारद जी ज़ब शीशे में अपना मुखड़ा देखते है तो वह बंदर का होता है। यह देख नारद जी क्रोध से भर जाते है और भगवान विष्णु को को श्राप देते हैं कि जिस रूप को देकर आपने आज मेरा उपहास कराया है यही बंदर आपको आपकी पत्नी को खोजने और पाने में मददगार होंगे। नारद जी के द्वारा श्राप देने के पश्चात भगवान अपनी माया खींच लेते हैं। तब नगर व राजकुमारी दोनों ही वहां नहीं होते है। नारद जी को तब अपनी गलती का अहसास होता है। इस तरह से नारद जी का अहंकार टूटता है।रामलीला में राजेश कुमार गुप्ता, रामायण ठाकुर, डॉ शशि प्रकाश कुशवाहा, गणपति गोड, सुनील गुप्ता, हरेराम गुप्ता, वृज मोहन गुप्ता की भुमिका सराहनीय रही।