निशिदिन विष का घूंट पी रहे,पर वह शिव का गरल नहीं है
डॉ भगवान प्रसाद उपाध्याय
प्रयागराज।।
कविता
निशिदिन विष का घूंट पी रहे
पर वह शिव का गरल नहीं है
जीवन में अनमोल क्षणों का
वैभव पाना सरल नहीं है
अपनों का अपमान सहन
करना सबसे दुखदायी है
एकाकी जीवन में प्रतिक्षण
सपने बुनना दुखदायी है
फिर यूँ ही अपने मन को
बहला देना सरल नहीं है
निशिदिन विष का घूंट पी रहे
पर वह शिव का गरल नहीं है
स्वान्तसुखों की बलि वेदी पर
परहित का सम्मान कठिन है
सब त्याग तपस्या की रक्षा में
जीवन का उन्मान कठिन है
जिजीविषा से आगे बढ़कर
कदम हटाना सरल नहीं है
निशिदिन विष का घूंट पी रहे
पर वह शिव का गरल नहीं है
संकल्पों की समिधा लेकर
देश - प्रेम की ललक जगायें
मातृभूमि की रक्षा का ब्रत
पालन हेतु स्वयं बलि जायें
हानि -लाभ यश- अपयश को
विस्तृत कर देना सरल नहीं है
निशिदिन विष का घूंट पी रहे
पर वह शिव का गरल नहीं है
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