गीत :तुमको शपथ न दूंगी प्रियतम
डॉ भगवान प्रसाद उपाध्याय
प्रयागराज।।
तुमको शपथ न दूंगी प्रियतम
पर मिलने की आश न लेना
दूरी हो निस्सीम भले ही
बस एक झलक दिखला देना
जाने से पहले ही तुमने
फिर आने की बात कही थी
मेरे स्वर्णिम सपने सारे
सजवाने की बात कही थी
पर यादों के झुरमुट में ही
प्रिय मत मुझको उलझा देना
तुमको शपथ न दूंगी प्रियतम
पर मिलने की आश न लेना
पलक पांवड़े रोज बिछाये
राह निहारा करती हूँ मैं
बनी चकोरी सी मतवाली
सदा पुकारा करती हूँ मै
सुन करके भी टेर हमारी
प्रिय मुझको मत झुठला देना
तुमको शपथ न दूंगी प्रियतम
पर मिलने की आश न लेना
ऐसी जलती आग विरह की
सूख गई है तन की क्यारी
बांह न पकड़ोगे यदि मेरी
रह जाएगी साध कुंवारी
आओ प्रीत निभाओ साजन
कभी न मुझको ठुकरा देना
तुमको शपथ न दूंगी प्रियतम
पर मिलने की आश न लेना
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