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बलिया की बेटी ने किया सबको मंत्रमुग्ध, लखनऊ मंच पर पहुंचते ही जय बलिया का लगा नारा






बलिया।। 'कृति और कृतिकार' संवाद - 2 का आयोजन किन्नर विमर्श के सशक्त हस्ताक्षर कथाकार महेन्द्र भीष्म अपने साहित्यकार पिता पण्डित बृजमोहन अवस्थी की स्मृति में विगत माह अक्टूबर, 23 से कर रहे हैं। दिनाँक 16 नवम्बर, 2023 को स्थानीय क्लब एफिल, गोमतीनगर, लखनऊ में इस श्रृंखला का दूसरा आयोजन आयोजित हुआ।जिसमें बलिया की बेटी डॉ रिंकी रविकांत ने भी शिरकत किया। मंच पर पहुंचते ही तालियों के साथ जय बलिया का नारा लगने लगा।बता दें कि डॉ रिंकी सहतवार नगरपंचायत की ही निवासी हैं।

    

 'कृति और कृतिकार' जिसमें चार महिला साहित्यकार एवं चार पुरुष साहित्यकार अपनी नवीन प्रकाशित कृति एवं रचनाधर्मिता पर पाठकों के मध्य संवाद करते हैं। इसका उद्देश्य नव रचनाकारों को ख्यातिलब्ध रचनाकारों के साथ मंच साझा करने का अवसर देना भी है।

कृतिकारो ने अपनी कृतियों एवं रचनाधर्मिता के बारे में बताया । कृतिकार के रूप में शिशिर सिंह, तरुण निशांत, डॉ. निधि अग्रवाल, डॉ. मानसी द्विवेदी, सीमा मधुरिमा, डॉ. रिंकी रविकांत, विशाल मिश्रा एवं सौरभ सिंह बतौर रचनाकार उपस्थित रहे। आठों 'कृतिकारों' ने अपनी कृतियों के माध्यम से अपनी रचनाधर्मिता पर बात रखी। 

सभी आठों साहित्यकारों का सम्मान हुआ। डॉ विनय दास जी और अरुण सिंह जी का पूरे कार्यक्रम पर समीक्षात्मक वक्तव्य सराहनीय रहा।

श्री महेन्द्र भीष्म जी, श्री अनिल उपाध्याय जी एवं श्री शैलेन्द्र अवस्थी जी द्वारा कार्यक्रम का सुन्दर आयोजन। और सुश्री सरला शर्मा जी का शीरी संचालन। सब कुछ काबिले-तारीफ़ रहा।

सुश्री सीमा मधुरिमा ने स्त्री मन की छोटी सी अभिलाषा की बात करते हुए कहा कि 'सागर के जल को स्त्री के आसुओं ने खारा कर दिया...'

फिर कवि विशाल मिश्र जी ने गुनगुनाया- 'जो गीत तुम्हारे लिए लिखा, मेरा क्यों लोग समझते हैं?'

आगे योग्य पिता की योग्य पुत्री डॉ मानसी द्विवेदी ने कहा- 'मैंने देखा ही नहीं पाँव के छालों की तरफ...'

फिर उपन्यासकार तरुण निशांत जी 'महानिर्वात में कोलाहल' की बात करते हुए कहा- 'सभी प्यासे हैं, किसी कि प्यास एक लोटा पानी बुझा देता है और कोई सागर तक दौड़ कर भी प्यासा ही रह जाता है...'

झाँसी से पधारी कहानीकार डॉ निधि अग्रवाल का उद्बोधन 'अपना प्रश्न अपना उत्तर रहा, जो दूसरे के प्रश्न पर अपने उत्तर से कठिन होता है...'

श्री शिशिर सिंह जी ने 'काश! तुम न मिलते' कहकर जैसे सब कुछ कह दिया...यद्यपि उन्होंने और भी बहुत कुछ कहा...

डॉ रिंकी रविकांत ने साहित्य को शोध की तरफ मोड़ कर ऊँचाई प्रदान की। रिंकी रविकांत ने कथाकार महेन्द्र भीष्म के ही बहुचर्चित कहानी संग्रह ’बड़े साब ’ पर एक समीक्षात्मक पुस्तक का संपादन किया है। मूलरूप से बलिया निवासी रिंकी रविकांत ने कथा साहित्य पर अपना शोध हाल ही में पूरा किया। अपने वक्तव्य में बलिया की बेटी ने न केवल सर्वाधिक तालियां बटोरीं बल्कि जय बलिया का नारा लगाते हुए सभी प्रबुद्ध साहित्यकारों तथा अधिकारियों ने उनके विद्वता पूर्ण व्याख्यान को सराहते हुए आशीर्वचन दिया।



अथर्व फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष डॉ वी बी पाण्डेय जी ने सूत्र दिया- साहित्य, स्व-हित से सा-हित तक की यात्रा है।निष्कर्ष यह रहा कि साहित्य धंधा और धर्म के बीच का झूलता हुआ पुल है। इसे बचाये रखना और सावधानी के साथ इस पर चलना ही साहित्यकार की साधना है।लखनऊ, कोटा, नोयडा और झाँसी के साहित्य मनीषियों का स्वागत 'कृति और कृतिकार' की टीम ने लक्ष्मणजी की नगरी में लखनवी अंदाज़ में किया।





 इस अभिनव साहित्यिक कार्यक्रम पर डॉ विनय दास, बाराबंकी, श्री अरुण सिंह, संपादक, इंडिया इनसाइड ने अपने विचार रखे। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री अशोक चौधरी (पूर्व जनपद न्यायाधीश) एवं अध्यक्ष 'नवपरमिल' ने की जबकि बुन्देलखण्ड सहयोग परिषद की संरक्षिका एवं सेंट जोसफ विद्यालय समूह की संस्थापक  श्रीमती पुष्पलता अग्रवाल, मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं। विशिष्ट अतिथियों में वरेण्य साहित्यकार डॉ. अनिल मिश्र, साहित्यकार डॉ. सत्या सिंह, श्री विजय कुमार सिंह मुख्य अग्निशमन अधिकारी लखनऊ, अनिल उपाध्याय, महासचिव राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं शिक्षा संघ, श्री विजय भूषण पांडेय अध्यक्ष अर्थव फॉउंडेशन, साहित्यकार डॉ करुणा पांडेय, साहित्य भूषण श्री देवकीनन्दन शांत, सहयोग के महासचिव श्री कैलाश जैन नवपरमिल के महासचिव श्री उदयभान पांडे, भाखा के संपादक श्री गंगा प्रसाद शर्मा, पायल फाउंडेशन की अध्यक्षा किन्नर गुरु पायल सिंह, श्री नीरज तिवारी (पूर्व आईपीएस), श्री मृतुन्जय मिश्र निबन्धक उच्च न्यायालय लखनऊ पीठ, समीक्षक डॉ विनय दास, श्री अरुण सिंह संपादक इंडिया इनसाइड, श्री रविकांत शर्मा ज्योतिषाचार्य, समाजसेवी श्रीमती शिखा सिंह, श्री अमित पांडेय राष्ट्रीय अध्यक्ष सुभाष चन्द्र बोस संगठन, रेवांत पत्रिका की संपादक डॉ अनीता श्रीवास्तव, समालोचक श्रीमती विजय पुष्पम, कहानीकार किरण सिंह, कवयित्री शालू शुक्ला उपस्थित रहे।


 नगर के जाने माने साहित्यकारों एवं विज्ञजनों की उपस्थित रही।सभी आठों रचनाकारों को 'कृति और कृतिकार' सम्मान से अतिथियों द्वारा सम्मानित भी किया गया। साथ ही बुन्देलखण्ड सांस्कृतिक एवं सामाजिक परिषद के महासचिव श्री कैलाश जैन, श्री देवकीनन्दन शांत एवं संरक्षक श्रीमती पुष्पलता अग्रवाल द्वारा मोतियों की माला एवं पट्टिका पहनाकर आठों साहित्यकारों का सम्मान भी किया गया।धन्यवाद ज्ञापन डॉ अनिल मिश्र द्वारा किया गया।कार्यक्रम का सफल संचालन सरला शर्मा द्वारा किया गया जबकि रचनाकार के रूप में वार्ताकार की भूमिका में कथाकार महेन्द्र भीष्म स्वयं रहे।