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राज्यों की हार के लिए कर्मचारियों को कसूरवार ठहराना गलत, मात्र पुरी आबादी के 1.5-2 प्रतिशत होने के वावजूद कर्मचारियों की बदौलत लड़ाई रही कांटे की :समीर पांडेय

 


बलिया।। पुरानी पेंशन बचाओ मंच, बलिया के जिला संयोजक समीर कुमार पांडेय ने बीजेपी के प्रचंड जीत से पेंशन आंदोलन के भविष्य पर सवाल उठाने वालों और मीडिया में चल रही ख़बरों, जिसमें यह कहा जा रहा कि पेंशन लेने के बाबजूद कर्मचारियों ने कांग्रेस को वोट क्यों नहीं किया ? क्या इस चुनाव से यह सिद्ध नहीं हुआ कि कर्मचारी आंदोलन से सरकार नहीं डरने वाली ? अब पेंशन आंदोलन का भविष्य क्या होगा ? कोई एक कारण बताएं जिससे विपक्ष आपके मुद्दे पुरानी पेंशन बहाल करने पर साथ दे सके ? इन सारे सवालों पर अपना प्रतिरोध दर्ज करते हुए प्रेस को जारी एक बयान में कहा कि.... 

      पहला जो सवाल है वह तार्किक है,साथ ही एक आदर्श स्थिति है जो होनी चाहिए। जिस तरह राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने पेंशन बहाली करके कर्मचारियों के दिल जीते थे तो ऐसे में कर्मचारियों ने भी उन्हें जिताने का पूरा प्रयास किया। बीजेपी के पक्ष में वोट के जो आंकड़े मीडिया, सोशल मीडिया में आ रहे हैं उसमें कुछ परिवारवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद, धर्मवाद आदि और बहुत वोट सेना और वृद्धजनों के भी वैलेट वोट हैं। इसीलिए वोटों का यह अंतर कम दिखाई दे रहा है। सबको पता है कि 100% कुछ भी नहीं होता है। क्योंकि यह भी सच है कि जिस तरह जातिवाद चरम पर है, हम लगातार प्रयास के बावजूद कर्मचारीवाद के चरम विंदु तक नहीं पहुंच पाए हैं। इस अति जातिवाद को ही लें तो भी चुनाव में 80% से कम ही लोग किसी भी व्यक्ति या पार्टी के साथ जाते हैं, 20-25% फिर भी साथ नहीं जाते। एक बात और कहना है कि हमने जब कर्मचारियों को जगाना शुरू किया तो इधर 4 से 8, 8 से 80, 80 से 800 और 800 से 8000 कर्मचारियों को पेंशन आंदोलन के पक्ष में हर जिलों में खड़ा किया। रही बात इस चुनाव में सबको पेंशन के पक्ष में खड़े होने की तो उसमें कुछ खामियां रही हैं जिसमें आगे अभी और सुधारात्मक कार्य करने की जरूरत बनी हुई है, जिससे वैसी आदर्शात्मक स्थिति पैदा की जा सके... जिसकी जरूरत आज महसूस की जा रही है।

      भारतीय लोकतंत्र में देश के सारे कार्य कार्यपालिका, न्यायपालिका और व्यवस्थापिका से चलते हैं। कार्यपालिका कार्य योजना तैयार करती है जिसे जमीन पर व्यवस्थापिका ही उतारती है और कर्मचारी सरकार के आंख-कान, हाथ-पैर होते हैं। कुल मिलाकर कहें तो भारतीय लोकतंत्र का तीसरा धड़ा हम ही हैं जो सारे कार्य जमीन पर उतारने से लेकर, सीमा की रक्षा, आंतरिक प्रशासनिक व्यवस्था, मेडिकल सुविधा, आवागमन आदि के तमाम साधनों का संचालन आदि करते हैं। अतः कहा जा सकता है कि हम कहीं से भी कमजोर नहीं है। ऐसे जरूरी धड़े को पुरानी पेंशन न देकर उनके बुढ़ापे को बाजार के हवाले कर देना और खुद 4/5 पेंशन व भत्ते ले मौज करना कहीं से नैतिक नहीं है। बाजार का दुष्परिणाम अब तो दिखने भी लगा है जब रिटायर्ड कर्मचारी 700, 1700, 2900, 4300 ₹ पेंशन पर जीने को अभिशप्त हैं। ऐसा अन्याय बहुत दिनों तक बर्दास्त नहीं किया जाएगा। आने वाले दिनों में हमारी बात नहीं सुनी जाएगी तो हम चुप नहीं बैठने वाले... हमें कहीं से भी कमतर आंकना ठीक नहीं होगा। रही बात डराने की तो हमारा किसी भी पार्टी से कोई विरोध नहीं है जो हमारे बुढ़ापे को सुरक्षित करेगा, हमारी पेंशन बहाल करेगा उसी का गुणगान हमें करना है।

     जहां तक पेंशन आंदोलन के भविष्य को लेकर जो प्रश्न उठ रहे उसमें हमें यही कहना है कि पेंशन आंदोलन का भविष्य उस वक्त अंधकारमय था जब हमारे बार बार चिल्लाने के बावजूद हमारी बात कोई नहीं सुनता था... पुरानी पेंशन वापस पाना दूर की कौड़ी समझी जाती थी। अब तो स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है। तमाम संगठनों पुरानी पेंशन की लड़ाई लड़ने को विवश हो गए हैं। कई राज्य में सरकारें पुरानी पेंशन देने लगी हैं... सत्ता पक्ष का भी सुर बदल चुका है। इसलिए यकीन मानिए ऐसे कुछ चुनावी हार जीत से आंदोलन का भविष्य खतरे में नहीं पड़ने वाला है। Ops का भविष्य पूरी तरह से उज्ज्वल है।   





      अंतिम प्रश्न के जवाब में यही कहना है कि हम सब राज्यों के चुनावी परिणाम या सीटों की हर जीत के अंतर को देखें तो यही कहेंगे कि कहीं लड़ाई थी ही नहीं। यदि कांग्रेस ने पुरानी पेंशन बहाल की तो हमने भी उसके बदले जी तोड़ मेहनत करके ऐसा माहौल खड़ा किया कि चाहें सत्ता पक्ष हो, विपक्ष हो, मेन स्ट्रीम मीडिया हो या सोशल मीडिया हो सबको यह लगने लगा था कि राज्यों की लड़ाई काटें की है। यह हमारी दिन रात के संघर्ष व मेहनत की काबिलियत ही कही जाएगी कि पूरी आबादी का 1.5-2% होकर भी हमने ऐसा माहौल तैयार किया जिससे कौन जीतेगा और कौन हारेगा इसका निर्णय लेना मुश्किल हो गया था। ये अलग बात है कि जिनको इसका फायदा उठाना चाहिए वो उस माहौल को भुना नही पाए। हमें जो करना था उसमें हमने अधिकाधिक करके दिखाया बाकी हमारी ऐसी हैसियत नहीं कि हम किसी को उखाड़ फेंके या किसी को स्थापित कर दें। पर जितनी भी है उसे पूरी तरह से नकारने का प्रयास न सत्ता पक्ष करेगा ना ही विपक्ष।

       आने वाले वक्त में कुशल नेतृत्व, ईमानदार व सतत संघर्ष के धनी बन्धु जी के नेतृत्व में Atewa/Nmops का संघर्ष जारी रहेगा। अन्य राज्यों में पुरानी पेंशन बहाली का प्रयास जारी रहेगा... और आने वाले दिनों में हमें निश्चित रूप से सफलता भी प्राप्त होगी।