एक जनवरी को जन्म दिन पर विशेष :साहित्यकारों व पत्रकारों के सम्मान के लिए ही है इनका पूरा जीवन समर्पित
राष्ट्रवादी भावनाओं के अनन्य पोषक डॉक्टर भगवान प्रसाद उपाध्याय
डॉ ० रामलखन चौरसिया ' वागीश '
प्रयागराज।।अपने जीवन के अड़सठ बसंत पूरे कर चुके राष्ट्रीय भावनाओं के प्रबल पक्षधर और अन्य पोषक डॉक्टर भगवान प्रसाद उपाध्याय अब किसी परिचय के मोहताज नहीं रह गए हैं । इनका पूरा जीवन साहित्यकारों पत्रकारों और रचनाकारो के लिए ही समर्पित है , जिनको सम्मानित होने से ये आत्म तुष्टि की अनुभूति करते हैं। माता पिता के अनुसार इनकी जन्मतिथि 1 जनवरी 1955 है लेकिन यह शैक्षणिक अभिलेखों में 15 जुलाई 1957 अंकित है। बहुत दिनों तक यह अपने शैक्षणिक अभिलेख के अनुसार लिखे गए जन्मदिन पर अनेक संस्थाओं को स्थापित करके उसको निरंतर आगे बढ़ाने में सतत प्रयत्नशील रहे। एक बार इनके पिता जी ने इन्हें बताया कि उनकी डायरी में जन्मतिथि लिखी हुई है वह 1 जनवरी 1955 है। तब से यह इसी जन्म दिवस को आत्मसात कर लिए और 15 जुलाई को अपनी विभिन्न संस्थाओं के स्थापना दिवस को पर्व के रूप में मनाने लगे। कई साहित्यिक संस्थाओं और विद्यालयों की स्थापना के बाद अब स्वतंत्र रूप से साहित्य लेखन और पत्रकारों के सम्मान के लिए सतत संघर्षशील हैं। इनके द्वारा एक हिन्दी दैनिक पवन प्रभात के नाम से प्रकाशित किया जाता है और ये साहित्यांजलि प्रकाशन के द्वारा अनेक पुस्तकों का प्रकाशन भी कर रहे हैं।
देशाटन साहित्य लेखन व अध्ययन में गहरी रूचि
देशाटन इनका साहित्य लेखन और विभिन्न संस्कृतियों के अध्ययन का प्रमुख उद्देश्य है। इनके साथ मैं कुशीनगर की आनंददाई यात्रा पर गया और उसके पश्चात लुधियाना , अमृतसर, दिल्ली लखनऊ खगड़िया सुलतानपुर अयोध्या प्रतापगढ़ श्रृंगवेरपुरधाम आदि स्थानों पर आयोजित पत्रकार सम्मान समारोह में प्रतिभाग करने का अवसर मिला।आपकी सरलता और बिना दिखावे के रहन-सहन को देखकर मैं इनका कायल हो गया और वैचारिक मतभेद के बावजूद मैं इन्हें बहुत अभिन्न मानता हूं। मेरे साहित्यिक जीवन को प्रोत्साहित और पुष्पित पल्लवित करने में इनका विशेष योगदान है। मेरी एक पुस्तक का संपादन भी इन्होंने किया और कुछ पुस्तकों पर प्रशस्ति पत्र और सम्मान पत्र भी दिलवाया। आज जब इनके जीवन वृत्त पर कुछ लिखने का विचार आया तो मुझे यह समझ में नहीं आया कि ऐसे राष्ट्रीयता के प्रबल पक्षधर के बारे में कहां से शुरू करूं। जीवन परिचय बताना इसलिए आवश्यक था कि यह आज भी पूरी उर्जा और निष्ठा के साथ प्रकाशन लेखन और अपनी संस्था के संवर्धन में लगे हुए हैं। इनकी दिनचर्या सुव्यवस्थित होने के कारण मैं इनका शुभेच्छु हूं।
साधारण सात्विक आडंबर रहित जीवन,साहित्यिक लेखन लक्ष्य
यह इनकी प्रशंसा नहीं अपितु इनके व्यक्तित्व की विशेषता पर आपको जानकारी दे रहा हूं। मैं यद्यपि किसी की सराहना करने का आदी नहीं हूं किंतु जीवन में कुछ ऐसे लोग आते हैं जिनके प्रति इतनी आत्मीयता हो जाती है और उनके कार्यों के प्रति इतनी निष्ठा हो जाती है कि उसे नकारा नहीं जा सकता। अत्यंत साधारण परिवार में जन्मे डॉक्टर भगवान प्रसाद उपाध्याय का जीवन भी पूरी तरह सात्विक और साधारण है। किसी तरह के आडंबर और उच्च भौतिक सुखों से दूर रहना इनकी विशेषता है।इनके श्रृंगार और राष्ट्रीयता से परिपूर्ण गीतों को पढ़कर इनकी भावनाओं का परिचय मिलता है। अत्यंत सरल और सुबोध भाषा में लिखी रचनाओं को हर कोई पढ़ना चाहेगा। अभी इन्होंने एक बाल कविताओं का संग्रह परी और पीहू दिया है जो निश्चित रूप से बच्चों को कंठस्थ करने में और उसमें दिए गए संदेशों को अपने जीवन में उतारने का आत्मविश्वास बढ़ाएगा। गीतों की पालकी नामक गीत संग्रह में इनके जो भी गीत संग्रहीत हैं , वह सब श्रृंगारपरक और उद्देश्यपरक हैं।अनेक वरिष्ठ और ख्यातिप्राप्त साहित्यकारों के साथ बिताये क्षणों को आपने आइना अतीत का नामक पुस्तक में बहुत सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है ।कई रचनाओं में राष्ट्रीयता का स्पष्ट दिग्दर्शन होता है।आपने बाल कहानियों पर भी अपनी लेखनी चलाई है और इन दिनों वरिष्ठ और स्मृति शेष पत्रकारों के संस्मरण की पुस्तक भी अंतिम चरण में है। लेखन की ओर आप समयाभाव के बावजूद भी कैसे उद्यत रहते हैं,यह जब मैंने इनसे पूछा तो कहा कि भैया यह मेरा मूल धर्म है और मूल में भूल नहीं करनी चाहिए, इसलिए कभी-कभी मैं रात में अपना लेखन कार्य पूरा करता हूं । यात्राओं में भी यदा-कदा समय मिल जाता है। कुछ साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े होने के कारण वहां से भी प्रेरित होता हूं। नवोदित लेखकों को मंच देना और अपनी मासिक पत्रिका साहित्यांजलि प्रभा के माध्यम से उन्हें प्रकाशित करना , साहित्यिक आयोजनों में उनको सम्मानित करना इनकी आदत में शुमार हो गया है।
मिलनसार स्वाभाव, जल्द बना लेते है लोगों क़ो अपना
जहां भी जाते हैं वहां कुछ लोगों को अपना बना कर ही आते हैं ।इनके शुभचिंतकों और मित्रों का दायरा निरंतर बढ़ रहा है। अपने आत्मीय जनों के सुख-दुख में शामिल रहना इनका विशेष गुण है। केवल प्रयागराज ही नहीं अपितु देश प्रदेश के साहित्यकारों के बीच इनकी अलग पहचान है। निंदा और मान अपमान से दूर सिर्फ अपनी योजनाओं को फलीभूत करने में लगे रहते हैं। कौन क्या कह रहा है ?कौन क्या कर रहा है ? उस पर ये विशेष ध्यान नहीं देते।आगामी योजनाओं पर उन्होंने बताया कि पत्रकारिता पर दो पुस्तकें तैयार हो रही हैं,गीतों का एक और संग्रह विचाराधीन है तथा साहित्य की विभिन्न विधाओं में यदि कुछ कर सका तो अवश्य करूंगा। धर्मनिष्ठ होने के नाते यह प्रतिवर्ष धार्मिक यात्राओं पर अवश्य जाते हैं। इतना ही नहीं पिछले कई वर्षों से यह प्रयागराज में माघ मेले के अवसर पर मास पर्यंत कल्पवास करते हैं और वहां भी यह साहित्यिक आयोजनों में निरंतर सक्रिय रहते हैं।
धोखेबाज इनको नहीं है पसंद
इनके कुछ अवगुणों पर भी चर्चा कर ली जाय जो इनके सामाजिक जीवन के अनुकूल नहीं है। फिर भी यह एक बार जिससे दूरी बना लेते हैं फिर उसकी ओर मुड़कर नहीं देखते वह चाहे जितना बड़ा अरबपति या खरबपति हो , यदि इनके सम्मान को उसने आहत किया तो वह तत्क्षण परित्याग का भागी बन जाता है। दुबारा वह फिर इनके जीवन में नहीं आता। इनके एक अभिन्न और आत्मीय मित्र ने मात्र कुछ रूपये की कमी के कारण इनकी अति महत्वपूर्ण परियोजना (वेबसाइट ) का काम आधा अधूरा करके एक वर्ष से लंबित कर दिया है जिसका इनको बहुत ही दुख है।अपने साथ रहने वाले को यह यत्र तत्र सम्मानित होने का अवसर देने से कभी नहीं चूकते। अपवाद स्वरूप दो चार को छोड़कर कभी कोई दुबारा इनके जीवन में नहीं आया। सीमा से अधिक समझौतावादी होने के बाद भी ये कभी-कभी ऐसा नहीं कर पाते हैं। यह सब भाव पक्ष इनकी रचनाओं में भी दिखाई पड़ता है।आगे इनका संकल्प है कि राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसा न्यास बनाया जाए जो विभिन्न नगरों और महानगरों में साहित्यकारों पत्रकारों के सम्मान व सम्मेलन के लिए सुव्यवस्थित भवन का निर्माण कराए।
हाँ एक बात और ,मैं जब भी इनको देखता हूँ तो मेरे अंतरात्मा में इनके भीतर युग प्रवर्तक साहित्यकार महावीरप्रसाद द्विवेदी जी की छवि दिखाई देती है जिनकी छत्रछाया में अनेकों साहित्यकारों का उदय हुआ ।इनके शतायु और दीर्घजीवी होने की कामना मेरे साथ-साथ इनके सभी शुभचिंतक करते रहते हैं।
डॉ रामलखन चौरसिया वागीश
हिमानी मेडिकल स्टोर्स
हिमानी चौराहा , कालिन्दीपुरम, प्रयागराज ,उ० प्र०
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