वाह रें नगर पालिका के निज़ाम, भूखे कराते रहे 6 माह तक काम, अब काम से भी रहे थे निकाल, संविदा कर्मी ने फांसी लगाकर दे दी अपनी जान
मधुसूदन सिंह
बलिया।। ज़ब नगर पालिका का चुनाव हो रहा था, तब सत्ता पक्ष का एक ही नारा था, विकास के लिये बने ट्रिपल इंजन की सरकार। जनता ने वादे पर विश्वास करते हुए नगर पालिका बलिया की कमान भी बीजेपी को सौप दी। सत्ता का मद भी किसी किसी को धतुरे के नशे से भी ज्यादे मदहोश कर देता है। यह कहा भी गया है ---
कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय
वा खाये बौराय नर, या पाये बौराय।।
जीहां, नये निज़ाम के कार्यभार ग्रहण करने के साथ ही शहर के लोगों को शुद्ध पेयजल की आपूर्ति की जिम्मेदारी अपने कंधो पर ढोने वाले ट्यूबेल और आरओ प्लांट्स ऑपरेटर्स के अपने जीवन का पानी उतने लगा। लगातार 6 माह से अधिक दिनों तक बिना मानदेय के कार्य करते करते और जनपद के सभी अधिकारियो से भी विनती करते करते ये सभी 28 ऑपरेटर्स थक गये। आज इन्ही में से एक ने अपने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। आर्थिक तंगी से परेशान होकर आत्महत्या करने वाले युवक की मौत के लिये कौन जिम्मेदार है नपा अध्यक्ष या अधिशाषी अधिकारी का चार्ज लिये एसडीएम सदर?
बता दे कि शहर कोतवाली क्षेत्र के महावीर घाट रोड पर स्थित के एक मकान में 28 वर्षीय युवक ने पंखे के हुक में फंदा लगाकर आत्महत्या कर लिया। सूचना पर पहुंची पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया।
शहर कोतवाली क्षेत्र के महावीर घाट निवासी शुभम रौनियार (28 साल) पुत्र भोला रौनियार नगर पालिका परिषद बलिया में संविदा पर नलकूप ऑपरेटर पर कार्य करता था। मिड्ढी स्थित ट्यूबेल पर मृतक की ड्यूटी थी। मृतक के परिजनों का आरोप है कि नगर परिषद पालिका में चल रही छंटनी के कारण करीब सात माह से उसका मानदेय बाकी था। जिससे वह बराबर परेशान रहता था। गुरुवार की शाम मृतक अपने घर के तीसरी मंजिल पर लगे पंखे के हुक में फंदा बनाकर आत्महत्या कर लिया।
क्यों नहीं मिल पा रहा है मानदेय
बलिया एक्सप्रेस को मिली सूत्रों से खबर के अनुसार पिछले चेयरमैन के कार्यकाल से कुल 28 ऑपरेटर संविदा पर कार्य कर रहे थे। नये चेयरमैन साहब के आने के बाद आउटसोर्सिंग के लिये टेंडर हुआ। इसके बाद अपने लोगों को समायोजित करने के चक्कर में 28 वाली संख्या 60 तक पहुंच गयी। जिस कम्पनी को इनका काम मिला है, वह 60 लोगों का भुगतान करने से हाथ खडे कर दिये। 28 ऑपरेटर के मानदेय निकालने में कम्पनी को कोई ऐतराज नहीं है। अब अपने लोगो को समायोजित करने के लिये पुरानो की छटनी होने की सूचना इन ऑपरेटर्स को लगने लगी। एक तो 6 माह से मानदेय नहीं मिल रहा था, दूसरे शुभम को अपनी छटनी होने का पता चला (अभी किसी की छटनी हुई नहीं है, सिर्फ चर्चा है )तो वह व्यथित हो गया और अपनी इहलीला को ही समाप्त करने में भलाई समझी। जबकि शुभम को ऐसा नहीं करना चाहिये था। छटनी की चर्चा है, लिस्ट जारी नहीं हुई है।
बलिया एक्सप्रेस का नगर पालिका प्रशासन से सीधा सवाल है कि ज़ब आपके पास बजट की कमी नहीं थी, ऑपरेटर्स लगातार काम कर रहे है, तो इनके वेतन / मानदेय भुगतान में देरी क्यों है? साथ ही नगर पालिका के चेयरमैन साहब और अधिशासी अधिकारी का चार्ज देख रहे एसडीएम साहब को प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से इस बात को बताना चाहिये कि 6 माह से बिना मानदेय के भुगतान किये, ये लोग इन गरीब नौजवानों से कैसे काम लें रहे है? और लोगों को काम देना था दे देते परन्तु इन बेचारों का मानदेय तो समय से दे देते। आखिर ये भी इंसान है, कब तक सहन कर सकते है।शुभम की मौत नगर पालिका में चल रहे...... की पोल खोल रही है।