पुलवामा के शहीदों को नमन करती कविता :बोल रही जय हिंद लेखनी
आज याद करने का दिन है, भूलने का नही
प्रस्तुति डा सुनील कुमार ओझा
बलिया।।
कलम हमारी लिख सकती है,कंगन चूड़ी चोली पर।
लिख सकती है मादकता पर,और कलाई गोरी पर।।
लिखने को तो लिख सकती है,अल्हड़ता अमराई पर।
लिख सकती है प्रेम वफ़ा औ,यौवन की तरुणाई पर।।
लिख सकता हूँ बॉलीवुड पर,हॉलीवुड की गलियों पर।
लिख सकता हूँ चकाचौंध औ,बहुतों की रँगरलियों पर।।
लिख सकता हूँ मांसलता पर,नजर लगाये गिद्धों पर।
कलम हमारी लिख सकती है,इन बौराये बिद्धों पर।।
बोल रही जयहिंद लेखनी, पुलवामा की माटी को।
चौवालिस वीरों की यादें,दुख से फटती छाती को।।
कलम हमारी शीश झुकाती,और उन्हीं को लिखती है।
जिनके बलिदानों के चलते ,कायम जग में हस्ती है।।
कलम हमारी नित चलती है,ऐसे ही दीवानों पर।
फक्र जिसे होता है पढ़कर,वीरों के बलिदानों पर।।
इसीलिए तो अंगारों से,राख हटाया करता हूँ।
सो न जाओ मेरे लाडलों,तुम्हें जगाया करता हूँ।।
हम जागे तो किसकी हिम्मत,काशमीर की बात करें।
दो कौड़ी के चोर लफंगे,पुलवामा संघात करें।।
हम जागे तो पूरब पश्चिम, उत्तर दक्षिण डोलेगा।
समवेत स्वरों में बच्चा बच्चा , वंदेमातरम बोलेगा।।
(उदयराज मिश्र के वाल से)