चुनावी चंदा लेने में बीजेपी नंबर वन,टीएमसी दूसरे नंबर पर
नई दिल्ली।।चुनाव आयोग ने जैसे ही चुनावी बॉन्ड से जुड़ा डेटा शेयर किया हर कोई इसके विश्लेषण में जुट गया है। चुनावी चंदा पाने वालों में बीजेपी को सबसे ज्यादा 6,060 करोड़ रुपये मिले। इसके बाद तृणमूल कांग्रेस को 1,609.50 करोड़ और तीसरे नंबर कांग्रेस को 1,421.9 करोड़ रुपये मिले।
भारतीय निर्वाचन आयोग ने इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ा डेटा जारी कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने 12 मार्च को चुनाव आयोग से इलेक्टोरल बॉन्ड संबंधी डेटा उपलब्ध कराया था। चुनाव आयोग की ओर से डेटा जारी करने के बाद हर कोई ये जानना चाहता है कि किस पार्टी को सबसे ज्यादा चुनावी चंदा मिला, वहीं दूसरे और तीसरे नंबर पर कौन है। इस डेटा के मुताबिक, बीजेपी सबसे ज्यादा चुनावी चंदा हासिल करने वाली पार्टी बनी है। बीजेपी को 60 अरब से ज्यादा का चंदा मिला। हालांकि, दूसरे नंबर देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस नहीं है। अब आप ये जानना चाहते होंगे कि दूसरे नंबर पर कौन सी पार्टी है।
पहले बीजेपी, फिर टीएमसी तीसरे पर है कांग्रेस
बीजेपी चुनावी बॉन्ड पाने वाली सबसे बड़ी पार्टी है। उसे 12 अप्रैल, 2019 से 24 जनवरी, 2024 तक 6,060 करोड़ रुपये प्राप्त हुए। ये भुनाए गए कुल बॉन्ड का 47.5 फीसदी है। दूसरे नंबर पर ममता बनर्जी की पार्टी ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस (TMC) रही। टीएमसी ने चुनावी चंदे के तहत 1,609 करोड़ रुपये प्राप्त किए। उसके बाद कांग्रेस का नंबर रहा, जिसे 1,421 करोड़ रुपये मिले। इस लिस्ट में अगला नंबर भारत राष्ट्र समिति है। उन्हें 1214 करोड़ रुपये चुनावी बॉन्ड के तौर पर मिले। इसके बीजू जनता दल है, जिन्हें 775 करोड़ रुपये मिले। बीजेडी के बाद द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) है, जिसे 639 करोड़ रुपये चुनावी चंदे में मिला।
अप्रैल 2019 से फरवरी 2024 का है डेटा
भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) की ओर से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की ओर से साझा की गई डिटेल्स के बाद चुनावी बॉन्ड को लेकर यह डेटा जारी किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने 15 मार्च तक ECI की वेबसाइट पर इसे सार्वजनिक करने का आदेश दिया था। SBI ने रिपोर्ट में बताया कि अप्रैल 2019 से फरवरी 2024 के बीच अलग-अलग राजनीतिक दलों की ओर से 22,217 चुनावी बॉन्ड की खरीद और इस्तेमाल पर पूरा डेटा जारी किया है।
भारतीय निर्वाचन आयोग ने गुरुवार शाम इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ा डेटा जारी कर दिया है।अब तक मिली जानकारी के मुताबिक़, बीजेपी सबसे ज़्यादा चंदा हासिल करने वाली पार्टी बनकर सामने आई है.
इस जानकारी को दो हिस्सों में जारी किया गया है. पहले हिस्से में 336 पन्नों में उन कंपनियों के नाम हैं जिन्होंने इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदा है और उसकी राशि की जानकारी भी दी गई है. जबकि दूसरे हिस्से में 426 पन्नों में राजनीतिक दलों के नाम हैं और उन्होंने कब कितनी राशि के इलेक्टोरल बॉन्ड कैश कराए उसकी विस्तृत जानकारी है.यह जानकारी 12 अप्रैल, 2019 से 11 जनवरी, 2024 के बीच की है.
सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को 12 मार्च तक इलेक्टोरल बॉन्ड की ख़रीद से जुड़ी जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था.अदालत ने चुनाव आयोग से इस जानकारी को 15 मार्च की शाम पांच बजे तक अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करने का भी निर्देश दिया था.
इस जानकारी के अनुसार बीजेपी ने इस अवधि में कुल 60 अरब रुपये से अधिक के इलेक्टोरल बॉन्ड को भुनाया है. वहीं इस मामले में दूसरे नंबर पर तृणमूल कांग्रेस है, जिसने 16 अरब रुपये से अधिक के इलेक्टोरल बॉन्ड को इनकैश किया है.
वहीं सबसे ज्यादा इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाली कंपनी फ़्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज़ है. इस कंपनी ने कुल1368 बॉन्ड खरीदे, जिसकी क़ीमत 13.6 अरब रुपये से अधिक रही।
चुनाव आयोग की ओर से जारी चुनावी बॉन्ड इनकैश करवाने वालों की लिस्ट में बीजेपी पहले और ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस दूसरे नंबर पर है.
इस मामले में तीसरे नंबर पर अध्यक्ष, अखिल भारतीय कांग्रेस समिति है जिसने 14 अरब रुपये से अधिक के इलेक्टोरल बॉन्ड को इनकैश किया है. इसके बाद भारत राष्ट्र समिति ने 12 अरब रुपये और बीजू जनता दल ने 7 अरब रुपये से अधिक के इलेक्टोरल बॉन्ड को इनकैश किया है.इस मामले में पाँचवें और छठे नंबर पर दक्षिण भारत की पार्टियां डीएमके और वाईएसआर कांग्रेस (युवासेना) रहीं.
सूची में इन पार्टियों के बाद तेलुगु देशम पार्टी, शिवसेना (पॉलिटिकल पार्टी), राष्ट्रीय जनता दल, आम आदमी पार्टी, जनता दल (सेक्युलर), सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी, जनसेना पार्टी, अध्यक्ष समाजवादी पार्टी, बिहार प्रदेश जनता दल (यूनाइडेट), झारखंड मुक्ति मोर्चा, शिरोमणि अकाली दल, ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम, शिवसेना, महाराष्ट्रवादी गोमन्तक पार्टी, जम्मू और कश्मीर नेशनल कॉन्फ़्रेंस, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी हैं.
वहीं सबसे अधिक कीमत के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाली कंपनियों में फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज़ के बाद मेघा इंजीनियरिंग एंड इनफ़्रास्ट्रक्चर्स लिमिटेड दूसरे नंबर पर है.
फ़्यूचर गेमिंग ने कुल 1368 बॉन्ड खरीदे जिनकी कीमत 1368 करोड़ रुपये थी. वहीं मेघा इंजीनियरिंग ने 966 करोड़ रुपये के कुल 966 बॉन्ड खरीदे.
इनके बाद जिन कंपनियों ने सबसे अधिक बॉन्ड खरीदे उनमें क्विकसप्लायर्स चेन प्राइवेट लिमिटेड, हल्दिया एनर्जी लिमिटेड, वेदांता लिमिटेड, एसेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड, वेस्टर्न यूपी पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड, केवेंटर फूडपार्क इन्फ़्रा लिमिटेड, मदनलाल लिमिटेड, भारती एयरटेल लिमिटेड, यशोदा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, उत्कल अलुमिना इंटरनेशनल लिमिटेड, डीएलएफ़ कमर्शियल डेवलेपर्स लिमिटेड, जिंदल स्टील, आईएफ़बी एग्रो लिमिटेड, डॉ. रेड्डी लैबोरेटरीज़ आदि शामिल हैं।
सवाल उठने भी शुरू
चुनाव आयोग के जानकारी जारी करने के बाद वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने चुनावी बॉन्ड खरीदने वाली दूसरे नंबर पर रहे मेघा इंजीनियरिंग एंड इनफ़्रास्ट्रक्चर लिमिटेड को लेकर सवाल किए हैं.
प्रशांत भूषण ने ट्वीट में कहा है, "11 अप्रैल 2023 को मेघा इंजीनियरिंग ने 100 करोड़ के इलेक्टोरल बॉन्ड किसको दिए? लेकिन एक महीने के अंदर ही उसे बीजेपी की महाराष्ट्र सरकार से 14,400 करोड़ रुपये कॉन्ट्रैक्ट मिल जाता है. हालांकि, एसबीआई ने इस जानकारी में बॉन्ड के नंबर छिपा लिए हैं लेकिन फिर भी कुछ डोनर और पार्टियों के मिलान कर के एक अनुमान लगाया जा सकता है. ज़्यादातार चंदे 'एक हाथ दे, दूसरे हाथ ले' जैसे लग रहे हैं."
मेघा इंजीनियरिंग को लेकर अन्य सोशल मीडिया यूज़र्स भी सवाल कर रहे हैं.
एक एक्स यूज़र ने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का संसद में दिए एक बयान का वीडियो शेयर किया है. इसमें वह मेघा इंजीनियरिंग की सराहना करते हुए सुनाई दे रहे हैं. उन्होंने ये भी बताया कि मेघा इंजीनियरिंग हैदराबाद की कंपनी है.
एक और यूज़र ने लिखा है, "11 अप्रैल- मेघा इंजीनियरिंग ने कॉर्पोरेट्स बॉन्ड्स से बीजेपी को करोड़ों का चंदा दिया. 12 मई को मेघा इंजीनियरिंग को 14,400 करोड़ का ठेका मिला."
क्या है पूरा मामला?
इसी साल 15 फ़रवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया था.इसके साथ ही शीर्ष न्यायालय ने एसबीआई को निर्देश दिया था कि वह छह मार्च 2024 तक इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी चुनाव आयोग को दे.
एसबीआई इलेक्टोरल बॉन्ड बेचने वाला अकेला अधिकृत बैंक है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश में अप्रैल 2019 से लेकर अब तक खरीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड का डेटा देने के लिए कहा गया था.
हालांकि, छह मार्च आने से पहले ही एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर के जानकारी देने की तारीख़ को बढ़ाकर 30 जून करने की मांग की थी.
लेकिन 11 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई की ये याचिका ठुकरा दी और कहा कि वह 12 मार्च तक चुनाव आयोग को डेटा दे. साथ ही, शीर्ष न्यायालय ने चुनाव आयोग से 15 मार्च की शाम पाँच बजे तक सभी जानकारी वेबसाइट पर अपलोड करने के लिए भी कहा.
क्या थी एसबीआई की याचिका
एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में इसी महीने अर्ज़ी दी थी.एसबीआई ने कहा था कि वह अदालत के निर्देशों का "पूरी तरह से पालन करने करना चाहता है. हालांकि, डेटा को डिकोड करना और इसके लिए तय की गई समयसीमा के साथ कुछ व्यावहारिक कठिनाइयां हैं… इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदने वालों की पहचान छुपाने के लिए कड़े उपायों का पालन किया गया है. अब इसके डोनर और उन्होंने कितने का इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदा है, इस जानकारी का मिलान करना एक जटिल प्रक्रिया है."
बैंक ने कहा था कि दो जनवरी, 2018 को इसे लेकर "अधिसूचना जारी की गई थी." यह अधिसूचना केंद्र सरकार की ओर से साल 2018 में तैयार की गई इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना पर थी.
इसके क्लॉज़ 7 (4) में यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि अधिकृत बैंक हर सूरत में इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदार की जानकारी को गोपनीय रखे.
एसबीआई ने याचिका में कहा था, ''हमारी एसओपी के सेक्शन 7.1.2 में साफ़ कहा गया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदने वाले की केवाईसी जानकारी को सीबीएस (कोर बैंकिंग सिस्टम) में ना डाला जाए. ऐसे में ब्रांच में जो इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे गए हैं, उनका कोई सेंट्रल डेटा एक जगह पर नहीं है. जैसे ख़रीदार का नाम, बॉन्ड ख़रीदने की तारीख, जारी करने की शाखा, बॉन्ड की क़ीमत और बॉन्ड की संख्या. ये डेटा किसी सेंट्रल सिस्टम में नहीं हैं. ”
इलेक्टोरल बॉन्ड के ख़िलाफ़ हुए थे प्रदर्शन
इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय ज़रिया है. यह एक वचन पत्र की तरह है जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से ख़रीद सकता है और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीक़े से दान कर सकता है.
भारत सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा 2017 में की थी. इस योजना को सरकार ने 29 जनवरी 2018 को क़ानूनन लागू कर दिया था.इस योजना के तहत भारतीय स्टेट बैंक राजनीतिक दलों को धन देने के लिए बॉन्ड जारी कर सकता था.
इन्हें ऐसा कोई भी दाता ख़रीद सकता था, जिसके पास एक ऐसा बैंक खाता है, जिसकी केवाईसी की जानकारियां उपलब्ध हैं. इलेक्टोरल बॉन्ड में भुगतानकर्ता का नाम नहीं होता है.
योजना के तहत भारतीय स्टेट बैंक की निर्दिष्ट शाखाओं से 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, एक लाख रुपये, दस लाख रुपये और एक करोड़ रुपये में से किसी भी मूल्य के इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे जा सकते थे.भारत सरकार ने इस योजना की शुरुआत करते हुए कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड देश में राजनीतिक फ़ंडिंग की व्यवस्था को साफ़ कर देगा.
लेकिन पिछले कुछ सालों में ये सवाल बार-बार उठा कि इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए चंदा देने वाले की पहचान गुप्त रखी गई है, इसलिए इससे काले धन की आमद को बढ़ावा मिल सकता है.एक आलोचना यह भी है कि यह योजना बड़े कॉर्पोरेट घरानों को उनकी पहचान बताए बिना पैसे दान करने में मदद करने के लिए बनाई गई थी.हालांकि, अब सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक बताकर रद्द कर दिया है।
(यह सभी आंकड़े ऑन लाइन के विभिन्न स्रोतो से लिये गये है। कुछ आंकड़ों में भिन्नता हो सकती है )