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घात प्रतिघात के दौर मे, वफ़ा की तलाश, कौन होगा पास, किसको मिलेगा ताज

 



मधुसूदन सिंह 

बलिया।। लोकसभा चुनाव का अंतिम चरण 1 जून कों है। 6 चरणों के चुनाव के सम्पन्न हो जाने के बाद सबकी निगाहें सातवें और अंतिम चरण मे लगी हुई है। इस चरण मे यूपी मे 13 सीटें है जिसमे दो अनुसूचित जाति के लिये आरक्षित है। 11 सीटे सत्तारूढ़ बीजेपी और विपक्ष दोनों के लिये नाक का सवाल बन गयी है।

72 लोकसभा बलिया की सीट इस समय सबसे हॉट सीट बन गयी है। यहां से बीजेपी ने राजयसभा सदस्य नीरज शेखर कों प्रत्याशी बनाया है तो वही इंडिया गठबंधन से समाजवादी पार्टी ने अपने पिछले उम्मीदवार सनातन पाण्डेय कों फिर से प्रत्याशी बनाकर बीजेपी के कोर वोट बैंक मे जबरदस्त सेंधमारी की है। वही बीजेपी ने भी सपा कों झटका देते हुए कद्दावर नेता व पूर्व मंत्री नारद राय और पूर्व विधायक रामइक़बाल सिंह कों सपा से निकाल कर बीजेपी मे शामिल कर लिया है। सपा के एक और कद्दावर नेता के बीजेपी मे जाने का कयास लगाये जा रहे है, लेकिन अभी तक ऐसा दिखा नहीं है।

ऐसे हालात मे कौन किसके साथ है, कौन कब साथ छोड़ देगा कहा नहीं जा सकता है। लेकिन प्रत्याशी तो प्रत्याशी है, उसे सब लोगों पर विश्वास करने की मजबूरी है।

घात प्रतिघात के इस दौर मे वफ़ा की तलाश दोनों प्रत्याशियों कों है। इनका कुछ समय तो रूठने वालों कों मनाने मे ही लग जा रहा है। इसकी स्थिति पर एक फ़िल्मी गाने की दो लाइनें याद आ गयी है - ओ दिलवर जानियां, रूठने मनाने मे न बीत जाये ये जवानिया। जीहां, अगर ऐसा ही रूठने मनाने का खेल चलता रहा तो जीत कोसों दूर चली जायेगी।

बीजेपी मे भी कम भीतरघात नहीं है। सबसे ज्यादे अगर बीजेपी कों कोई विधानसभा भीतरघात से परेशान की है तो वो है बैरिया विधानसभा। यहां वर्तमान सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त और पूर्व विधायक सुरेंद्र सिंह के बीच के छत्तीस के आंकड़े जगजाहिर है। यही नहीं नगर पंचायत चेयरमैन प्रतिनिधि मंटन वर्मा और पूर्व विधायक सुरेंद्र सिंह के बीच के रार कों कौन नहीं जानता है। ऐसे मे इस विधानसभा मे आपसी कही खींचतान पर अगर अंकुश नहीं लगा तो कुछ भी हो सकता है।

बलिया विधानसभा भी दोनों दलों के लिये घात प्रतिघात से सिरदर्द बना हुआ है। इस विधानसभा मे जातीय समीकरण सबसे अहम भूमिका निभा रहा है। सपा कों झटका इसी विधानसभा से नारद राय के रूप मे बीजेपी ने दिया है। इनके आने से बीजेपी जहां अपने वोट बैंक मे इजाफा देख रही है तो वही इसके ब्राह्मण मतदाताओं मे बिखराव चिंता का कारण बन गया है।बीजेपी मे भी यहां जमकर घात प्रतिघात चल रहा है। यही विधानसभा है जो जीत हार कों सुनिश्चित करेगा। जो भी दल अपने अंदर के भीतरघात कों रोकने मे सफल होगा, उसको यहां से बढ़त मिल जायेगी।

फेफना विधानसभा मे 50-50 का मैच चल रहा है। इस विधानसभा से समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष संग्राम सिंह यादव ही विधायक है। बीजेपी के पूर्व मंत्री उपेंद्र तिवारी की इस विधानसभा मे अच्छी पैठ है। अब देखना यह है कि उपेंद्र तिवारी इस चुनाव  मे बीजेपी कों इस चुनाव मे बढ़त दिलाकर संग्राम सिंह यादव से अपनी हार का बदला लेते है कि नहीं? वही समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता पूर्व मंत्री अम्बिका चौधरी की भी इस विधानसभा मे कम महत्वपूर्ण भूमिका नहीं है। अगर ये दिल दिमाग़ से जुट गये तो समाजवादी पार्टी यहां से आगे हो जायेगी।

गाजीपुर जनपद की दो विधानसभा जहुराबाद और मोहम्मदाबाद, बलिया लोकसभा मे अपना काफी दबदबा रखती है। इन दोनों विधानसभाओ मे स्व कृष्णानंद राय व स्व मुख़्तार अंसारी का फैक्टर काम करता है। पिछले लोकसभा चुनाव मे समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार सनातन पाण्डेय कों जबरदस्त लीड मिली थीं, तब अगर नगर विधानसभा ने साथ नहीं दिया होता तो बीजेपी के वीरेंद्र सिंह मस्त कों जीत की जगह हार मिली होती। यहां लीड दिलाने मे राजेश राय की महत्वपूर्ण भूमिका थीं। लेकिन इस बार राजेश राय की भूमिका पिछले चुनाव जैसे नहीं बतायी जा रही है। इस बार इन दोनों विधानसभाओ पर मुख़्तार अंसारी की जेल मे मौत का असर देखने कों मिलेगा, ऐसा बताया जा रहा है। समाजवादी पार्टी की जीत का सारा दारोमदार इन दोनों विधानसभाओं पर टीका हुआ है।

अंत मे यही कहूंगा कि बलिया लोकसभा मे बीजेपी और सपा के बीच 50-50 का मैच चल रहा है। भीतरघात पर जो नियंत्रण पा लेगा उसकी जीत निश्चित है। इतना तय है कि यहां न विकास पर, न धर्म पर,  वोट दिया जा रहा है, यहां सिर्फ जाति पर वोट दिया जा रहा है, जो भविष्य के लिये शुभ नहीं है।

फिर यही कहूंगा --

घात प्रतिघात के इस दौर मे, वफ़ा की तलाश मे 

कब साथ कौन छोड़ दे, स्वार्थ की तलाश मे