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एक ऐसा सरकारी अस्पताल जहां प्राइवेट अस्पताल से भी ज्यादे होता है मरीजों का शोषण

 



अधीक्षक लिखते है सरकारी पर्ची पर बाहर की दवा व जांच 

मधुसूदन सिंह 

बलिया ।। स्वास्थ्य, शिक्षा व सुरक्षा ये तीन क्षेत्र ऐसे है जिससे आम जनमानस का सीधा जुड़ाव होता है। यही कारण है कि सरकार भी इन तीनो क्षेत्रों मे जनता कों अत्यधिक सुविधाओं कों देने के लिये तत्पर रहती है। स्वास्थ्य एक ऐसा क्षेत्र है जहां सरकार द्वारा प्रदत्त सुविधाओं के सहारे ही अधिकांश गरीब व सामान्य जन मानस बीमारियों के समय इलाज करा पाता है। यही कारण है कि सरकार ने जनपद मुख्यालय हो, तहसील मुख्यालय हो, ब्लॉक मुख्यालय हो, पर सरकारी अस्पतालों कों खोलने के साथ ही न्याय पंचायत व ग्राम पंचायत स्तर तक सहायक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व एएनएम सेंटर खोलकर लोगों कों स्वास्थ्य सुविधाएं निःशुल्क प्रदान करती है।

ऐसा ही सिकंदरपुर तहसील के खेजूरी मे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है। यह पूर्णतः सरकारी है। यहां की सारी सुविधाएं निःशुल्क है। लेकिन ज़ब चिकित्सक के मन मे येनकेन प्रकारेण धन कमाने की प्रवृत्ति जाग जाती है तो वह सीधे सीधे मरीजों का शोषण करना शुरू कर देता है। चिकित्सक की इस अभिलाषा कों पूर्ण करने मे दवा विक्रेता और जांच केंद्र संचालक जी जान से सहयोग करते है। प्रभारी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र खेजूरी भी इसी किस्म के चिकित्सक के रूप मे कुख्यात हो गये है। इनके पास जो भी मरीज चला जाय उसकी एक हजार से दो हजार की जांच, लगभग डेढ़ से दो हजार की बाहर की दवा जरूर लिखेंगे। साहब मात्र एमबीबीएस है लेकिन अपने पास आये मरीज कों कही बाहर के लिये रेफर नहीं करेंगे बल्कि खुद इलाज करेंगे।साहब का इलाज किसी भी प्राइवेट अस्पताल व चिकित्सक से बहुत महंगा होता है।नीचे की पर्चीयों पर देखिये, साहब कैसे सरकारी पर्ची पर बाहर की जांच व बाहर की दवा धड़ल्ले से लिखें हुए है -----











बता दे कि सरकार द्वारा सख्त निर्देश है कि सरकारी अस्पताल के चिकित्सक किसी भी सूरत मे न तो बाहर की दवाये लिखेंगे, न ही जांच बाहर से कराएंगे, सरकारी पर्ची पर तो एक दम से नहीं।लेकिन यहां के प्रभारी धड़ल्ले से सरकारी पर्ची पर न सिर्फ बाहर की दवाएं लिख रहे है बल्कि जांच भी करा रहे है। यह भी बता दे कि इनके द्वारा लिखी गयी दवाएं भारी कमीशन वाली है और जांच तो 50-50 मे होती है। अब आप लोग ही सोचिये कि इनसे इलाज कराने वाला तंदरुस्त होगा कि चिकित्सक, जांच करने वाला और दवा विक्रेता?

यह केवल एक ही जगह की नहीं है, यह प्रकरण जनपद भर मे मिल जायेगा। यहां सबसे अधिक है। यही नहीं देहात के अस्पतालों पर कुछ अस्पतालों कों छोड़कर रात कों चिकित्सक रहते ही नहीं है। प्रसव के बाद जबरिया ख़ुशीनामा लेना तो आम बात है। यही नहीं यहां जो निरीह कर्मचारी है उसके ऊपर सभी सरकारी बंदिशे लागू है लेकिन जो रसूखदार है वह जहां से नौकरी शुरू किया है वही से सेवनिवृत होने की भी चाह मे है। सरकार का शासनादेश ऐसे रसूखदारों पर नहीं लागू होता है। जिलाधिकारी अगर पूरे जनपद भर के अस्पतालों से तैनात कर्मचारियों का तैनाती का दिनांक व वर्ष मांग लें तो पूरी हकीकत सामने आ जायेगी, लेकिन अबतक तो ऐसा हुआ नहीं है। इस खबर के प्रकाशित होने के बाद देखते है सीएमओ बलिया और जिलाधिकारी बलिया क्या कार्यवाही करते है?